नई दिल्ली (New Dehli)। देश में 561 कैदी ऐसे हैं, जिन्हें निचली अदालतों (lower courts)ने मौत की सजा सुनाई है. 2023 में 120 दोषियों को मृत्युदंड (death penalty)मिला. खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)से किसी भी दोषी को मौत की सजा (Punishment)नहीं मिली है. मृत्युदंड यानी मौत की सजा. हत्या, बलात्कार या आतंकवाद जैसे किसी जघन्य अपराध के लिए इंसान को मौत की सजा देना एक कानूनी व्यवस्था है. 2023 में निचली अदालतों की ओर से दी गई मौत की सजाओं में 28 फीसदी की कमी आई है.
2023 में निचली अदालतों (ट्रायल कोर्ट) ने कुल 120 दोषियों को मौत की सजा दी. जबकि इससे पिछले साल 167 कैदियों को मृत्युदंड दिया गया था. खास बात ये है कि अपीलीय अदालतों की ओर से मौत की सजा को बरकरार रखने के फैसले में काफी कमी आई है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में किसी व्यक्ति की भी मौत की सजा को बरकार नहीं रखा. कर्नाटक हाईकोर्ट ने सिर्फ एक हत्या के मामले में मौत की सजा बरकरार रखी. हाईकोर्ट में ऐसे फांसी की सजा के मामलों को निपटाने की रफ्तार 15 फीसदी घटी है.
दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने प्रोजेक्ट 39A नाम से अपनी आठवीं रिपोर्ट जारी की है. 2016 से हर साल मौत की सजा पाने वाले कैदियों की रिपोर्ट जारी की जा रही है. इसके अनुसार, दिसंबर 2023 के अंत तक कुल 561 कैदियों को मृत्युदंड दिया गया. ये आंकड़ा 2016 के मुकाबले 45 फीसदी ज्यादा है.
सुप्रीम कोर्ट ने किसी की सजा नहीं रखी बरकरार
2023 में ट्रायल कोर्ट की ओर दी गई मौत की सजा के खिलाफ जब सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई तो पाया गया कि पुलिस जांच में खामियां थी और सबूतों का अभाव था. इस कारण कई आरोपियों को बरी कर दिया गया या उनकी सजा कम कर दी गई. 87% मौत की सजा सुनाए जाने से पहले आरोपी की पृष्ठभूमि या परिस्थितियों को समझे बिना दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते समय ये भी देखा कि ये लोग जेल में कैसे रहे और उनकी मानसिक परिस्थितियां कैसी हैं. केरल और तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी अब ऐसे 13 मामलों में इसी तरह की रिपोर्ट मांगी है.
2023 सुप्रीम कोर्ट ने 5 मामलों में छह कैदियों को रिहा कर दिया और दो कैदियों से जुड़े दो मामलों को ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट में वापस भेज दिया. इन सभी फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जांच और ट्रायल में चूक की आलोचना की. एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी पाया कि नारायण चेतनराम चौधरी अपराध के समय नाबालिग थे, जबकि उन्हें 28 साल जेल में रहना पड़ा, जिसमें से 25 साल उन्होंने फांसी की सजा मिलने के बाद बिताए.
हाईकोर्ट ने 36 अपराधियों को कर दिया बरी
इसी तरह हाईकोर्ट ने 36 कैदियों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया और 5 कैदियों से जुड़े तीन मामलों को ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया. ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि फोरेंसिक रिपोर्ट की जिरह में गंभीर चूक हुई थी और सजा सुनाने की प्रक्रिया भी लापरवाही से की गई थी.
2023 में हाईकोर्ट ने 80 कैदियों से जुड़े 57 मृत्युदंड के मामले निपटाए थे, जबकि 2022 में 101 कैदियों से जुड़े 68 मामलों का निपटारा किया गया. 2023 के आखिर तक 488 कैदियों से जुड़े 303 मामले 23 हाईकोर्ट के समक्ष लंबित थे.
दुर्भाग्य से जितेंद्र उर्फ पप्पू शिंदे ने 9 सितंबर 2023 को महाराष्ट्र के यरवदा जेल में आत्महत्या कर ली. जितेंद्र को एक नाबालिग से बलात्कार और हत्या मामले में नवंबर 2017 में दोषी ठहराया गया था और उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी. उसने फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील कर रखी थी. जितेंद्र सात साल से जेल में था, जिसमें से छह साल उसने फांसी की सजा के खिलाफ अपीलीय फैसले के इंतजार में बिताए.
फांसी देने के तरीके को चुनौती
सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने फांसी की सजा से जुड़े कानून की समीक्षा और उसमें कमियों को दूर करने के लिए संविधान पीठ का गठन किया था. दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित पक्षों से अपना पक्ष रखने के लिए कहा है. संभावना है कि साल 2024 में इस पर सुनवाई हो सकती है.
वहीं मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी देने के तरीके की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक कैदी की याचिका पर विचार किया. कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि एक विशेषज्ञ समिति बनाकर फांसी के दूसरे विकल्प और अधिक मानवीय तरीकों की जांच करें जो संविधान के अनुरूप हों.
दोष साबित होने और फांसी की सजा सुनाए जाने के बीच कितने समय का अंतर?
2023 में यह पाया गया कि निचली अदालतें अक्सर दोष साबित होने के बाद फांसी की सजा सुनाने के बीच बहुत कम समय देती हैं. कुछ मामलों में तो उसी दिन भी सजा सुनाई जा चुकी है. यह चिंताजनक है क्योंकि अपराधी के जीवन-इतिहास की गहन जांच के बिना न्यायपालिका को यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि उसे फांसी दी जाए या आजीवन कारावास.
कुछ सुप्रीम कोर्ट फैसलों ने उसी दिन सजा सुनाए जाने की वैधता पर संदेह जताया है, जबकि अन्य फैसलों में इसे उचित सुनवाई का उल्लंघन नहीं माना गया है. आंकड़ों के अनुसार, 2023 में निचली अदालतों द्वारा सुनाई गई फांसी की सजाओं में से 37.14% मामलों में उसी दिन या दोषसिद्धि के एक दिन बाद सजा सुनाई गई. 45.71% मामलों में दो से सात दिनों के भीतर सजा दी गई. केवल 17.14% मामलों में ही दोषसिद्धि के एक हफ्ते बाद सजा सुनाई गई.
नए कानून में क्या हुआ बदलाव?
अगस्त 2023 में संसद ने भारत की कानून व्यवस्था से जुड़े तीन नए बिल (BNS, BNSS और BSB) पारित किए. राष्ट्रपति ने 25 दिसंबर 2023 को तीनों बिलों पर अपनी मंजूरी दे दी. इसके बाद ये तीनों बिल कानून बन गए, हालांकि अभी गृह मंत्रालय को यह अधिसूचित करना बाकी है कि ये बिल कब से लागू होंगे. जल्द ही ये कानून मौजूदा दंड संहिता आईपीसी, सीआरपीसी, आईईए की जगह ले सकते हैं.
IPC की जगह लेने वाले भारतीय न्याय सहिंता कानून (BNS) में मौत की सजा वाले अपराधों की संख्या 18 है, जबकि भारतीय दंड संहिता में संख्या 12 थी. नए कानून में फांसी की सजा पाए कैदियों की ओर से दया याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया को व्यवस्थित किया गया है. साथ ही फांसी की सजा कम करके आजीवन कारावास किए जाने पर दी जा सकने वाली सजाओं के दायरे को भी सीमित किया गया है.
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2023 में दुनियाभर में मृत्युदंड पर किए गए बड़े बदलाव
मृत्युदंड को लेकर सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि 2023 में दुनियाभर के कई देशों में बदलाव देखने को मिले हैं.
मलेशिया: अप्रैल 2023 में मलेशियाई संसद ने कुछ विशिष्ट अपराधों के लिए अनिवार्य मृत्युदंड को खत्म करने के लिए एक विधेयक पारित किया. इसके तहत हत्या, ड्रग तस्करी, देशद्रोह और आतंकवाद सहित 12 अपराधों के लिए अनिवार्य मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा को खत्म कर दिया गया. एक अन्य विधेयक पारित किया गया, जिससे पहले जो लोग मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा पा चुके थे, उनकी सजा पर पुनर्विचार किया जा सकेगा.
घाना: जुलाई 2023 में घाना की संसद ने सामान्य अपराधों के लिए मृत्युदंड को खत्म करने के लिए एक विधेयक पारित किया. इस विधेयक का उद्देश्य सामान्य अपराधों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान खत्म करना है. हत्या, नरसंहार, समुद्री लूट और तस्करी जैसे अपराधों के लिए आजीवन कारावास से बदलना है. हालांकि, देशद्रोह के गंभीर अपराधों के लिए अभी भी फांसी की सजा का प्रावधान है. घाना में आखिरी बार फांसी की सजा 1933 में दी गई थी.
केन्या: अक्टूबर 2023 में केन्या के राष्ट्रपति ने ‘पावर ऑफ मर्सी एडवाइजरी कमेटी’ की सिफारिश के आधार पर 21 नवंबर 2022 से पहले देश में सुनाई गई सभी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. इससे पहले 2009 और 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपतियों ने 4000 और 2655 कैदियों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था.
साल 2017 में केन्या के सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के अपराध के लिए अनिवार्य मृत्युदंड को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. यहां केन्या में आखिरी बार फांसी की सजा 1987 में दी गई थी.
अमेरिका: 21 अप्रैल 2023 को वॉशिंगटन स्टेट के गवर्नर जे इंसली ने एक विधेयक पर हस्ताक्षर किए, जिसने राजकीय स्तर पर मृत्युदंड को खत्म कर दिया. गवर्नर ने 2014 में मृत्युदंड पर रोक लगा दी थी. 2018 में वॉशिंगटन सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें राज्य में फांसी की सजा को असंवैधानिक घोषित किया गया था.
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