नागदा (प्रफुल्ल शुक्ला)। दिन भर चले अढ़ाई कोस, खोदा पहाड़ निकली चुहिया और ढांक के तीन पात जैसे मुहावरे कहावते छोटी पड़ जाए..हाल ही में स्कूली बच्चों की दुर्घटना में हुई दु:खद मौत के बाद हुए विरोध प्रदर्शन और आंदोलन के परिणाम को देखते हुए न फोरलेन का आश्वासन, न जानलेवा मोड़ों को ठीक करने की बात और न ही स्पीड राडारगन लगाने की मांग मानी गई। स्कूल वही पुराने समय पर चल रहे हैं..भारी वाहन स्कूल समय में बेरोकटोक शहर में प्रवेश कर रहे है और आरटीओ ने एक दिन कार्यवाही कर अपने कर्तव्य का निर्वाह कर लिया। जनता की नब्ज अच्छे से समझने वाले क्षेत्र के नेता, जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों पर पूरे मामले में जूं तक नहीं रेंगी। सभी का पूरा ध्यान कैसे भी मामले को शांत करना था जिसमें वे सफल भी हो गए अनशन समाप्ति के साथ। नेता अधिकारी जानते है कितना भी बड़ा मामला हो जनता चार दिन में भूल जाएगी, कब तक आंदोलन करेगी, आखिर सभी को अपने घर परिवार को पालना भी तो है और जब कुछ विरोध होगा ही नहीं तो मीडिया भी रोज-रोज क्या खबर लगाएगी? इसी नब्ज को पकड़कर नेता, जनप्रतिनिधि और अधिकारी मामले को ठण्डा कर समस्या को जस का तस रखते हैं। जनता भी चुनाव आते-आते सब भूल जाती है और याद भी रहे तो करे भी क्या? सभी चोर-चोर मौसेरे भाई जो है। ना सत्तापक्ष ने पूरे मामले में कुछ किया और ना ही विपक्ष के चुने हुए जनप्रतिनिधियों ने कुछ किया।
आज नहीं तो कल जनता जागेगी जरुर
जनता की नब्ज समझने वाले चुने हुए जनप्रतिनिधियों को यह ही याद रखना ही होगा कि हर अति का अंत जरूर होगा। जनता आज नहीं तो कल जागरूक होगी ही, तब आप मिट्टी में मिल चुके होंगे। उन्हेल क्षेत्र जहाँ के चार मासूम बच्चे नियमों को ताक में रखकर बनाई गई सड़क का शिकार हो गए जैसे गंभीर मामले में भी विपक्ष कांग्रेस के विधायक रामलाल मालवीय ने महज मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर राजनैतिक नौटंकी की है। जितना मुआवजा माँगा मिला? जो माँगे आपने रखी मिली? यही प्रश्न नागदा खाचरौद विधायक दिलीप सिंह गुर्जर से भी है। आपने कितना मुवावजा दिए जाने की मांग की थी अपने पत्र में? मांग का 10 प्रतिशत भी मिला? जब आपकी मांग और समस्या के हल करने के निवेदन पत्र को सरकार ने विचार तक नहीं किया तो आपने विरोध में आंदोलन खड़ा क्यों नहीं किया? एक दिन पहले ही आप कांग्रेस नेता चेतन यादव के अनशन आंदोलन का समर्थन करने जाते है और दूसरे दिन प्रशासन सख्ती से आंदोलन समाप्त भी करा देता है, तब भी आप मैदान में नहीं आते? सांसद अनिल फिरोजिया जो कि पहले ही टू लेन को फोर लेन किए जाने का दावा कर रहे थे पर प्रदेश और केंद्र में स्वयं की सरकार होने के बाद भी गतिरोध दूर नहीं कर पा रहे तो इसका दोषी कौन? भाजपा में वर्तमान में एक दर्जन से अधिक नेता अपने आप को भाजपा का अगला उम्मीदवार और विधायक मान रहा है। ऐसे सभी पूर्व वर्तमान और भविष्य के विधायक के कानों तक दर्द से कराहते बच्चों की चीखे नहीं पहुँची। जनता आज नहीं तो कल जागेगी जरूर तब अति का अंत भी होकर रहेगा।
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