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    कमांडर इस्‍माइल की हत्‍या के बाद क्‍या घटेगी हमास की ताकत? जानें भारत पर कितना असर

  • August 01, 2024

    नई दिल्‍ली(New Delhi) । हमास के राजनीतिक कमांडर(Hamas political commander) इस्माइल हनियेह (Ismail Haniyeh)की हत्या के बाद मध्य पूर्व क्षेत्र में तनाव (tension in the middle east region)का दायरा बढ़ सकता है। इसके पीछे कई कारण हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यह इजरायल की कार्रवाई मानी जा रही है। यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देश इजरायल पर युद्ध विराम के लिए दबाव डाल रहे हैं।

    रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजरायल के हमले के कई पहलू हैं। हनियेह कतर में रहता था। वह ईरान के नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने तेहरान आया हुआ था। इजरायल ने तेहरान के भीतर उसे खत्म किया है जिस पर तेहरान की तीखी प्रतिक्रिया हुई है। ईरान इस मामले में इजरायल के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकता है। सिंह के अनुसार, तुर्की का हालिया बयान भी महत्वपूर्ण है जिसमें उसने कहा था कि इजरायल अगर हमलों से बाज नहीं आया तो वह इजरायल के भीतर भी घुस सकते हैं। इस हमले के बाद तुर्की भी आक्रामक है। ध्यान रहे कि तुर्की के अमेरिका से गहरे रिश्ते हैं और वह नाटो का सदस्य भी है।

    हमास की ताकत पर असर नहीं

    इस घटना के बाद जहां ईरान, तुर्की समेत कई देशों की तीखी प्रतिक्रिया हुई है, वहीं हमास के जवाबी हमले भी इजरायल पर बढ़ सकते हैं। क्योंकि हनियेह राजनीतिक कमांडर था, वह मिलिट्री कमांडर नहीं था। उसके मरने के बाद भी हमास की ताकत में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। उधर, हिजबुल्ला के हमले भी शुरू हो सकते हैं। लेबनान में उसकी मजबूत पकड़ है। इजरायल ने हाल में हिजबुल्ला के भी एक कमांडर को मार गिराया था। कुल मिलाकर यह घटना मध्य पूर्व के देशों में अशांति को आने वाले दिनों में बढ़ावा दे सकती है। विश्व के अन्य देशों खासकर बड़े देशों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी होगी।

    क्षेत्रीय अशांति का दायरा बढ़ेगा

    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह के अनुसार, यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि विश्व की बड़ी शक्तियां, संयुक्त राष्ट्र और अन्य कई संगठन इजरायल-फलस्तीन संघर्ष को रोक पाने में नाकाम रहे हैं। इस घटना के बाद अगर इसमें और देश कूद जाते हैं तो मध्य पूर्व देशों से भी बाहर भी असर पड़ सकता है। इससे क्षेत्रीय अशांति का दायरा बढ़ेगा।

    इसी के साथ एक प्रश्न यह भी उठता है कि यदि दो देशों के बीच संघर्ष को विश्व के संगठन या बड़े देश रोक नहीं पाते हैं तो वह कैसे खत्म होगा? यह देखना होगा की संघर्ष की जड़ में क्या है, क्या वह सिर्फ एक समस्या है या फिर किसी बड़े नेता की वजह से ऐसा है। जैसे यह कहा जाता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के पीछे पुतिन, इजरायल-फलस्तीन संघर्ष में नेतन्याहू की नीति भी जिम्मेदार है। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या घरेलू स्तर पर इन नीतियों के विरुद्ध कोई मजबूत आवाज उठती है, जो फिर आगे समाधान के रूप में युद्ध विराम की तरफ बढ़े?

    भारत पर असर

    जहां तक भारत पर असर पड़ने की बात है तो सीधे तौर पर प्रभाव नहीं है पर निश्चित रूप से यदि मध्य पूर्व में अशांति बढ़ती है तो वहां रह रहे हमारे नागरिकों को वापस लौटना पड़ेगा। दूसरे, इनमें से कई देशों के साथ भारत का व्यापार भी होता है, वह भी प्रभावित होगा। लेकिन भारत एक बड़ा देश है, उसके सामने एक मौका भी होगा कि वह इस संघर्ष को रोकने या कम करने में अपनी भूमिका निभा सके।

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