नई दिल्ली। आपने कई ऐसे परिवारों को देखा होगा, जहां भुजिया के बिना खाना पूरा नहीं होता। कई घरों में दिन की शुरुआज ही चाय और भुजिया से होती है। नाश्ते में भुजिया, चाय के साथ भुजिया, चाट के साथ भुजिया, लंच-डिनर में भुजिया… यह है ही ऐसी चीज कि हर किसी को पसंद आती है। भुजिया का जब नाम आता है तो बीकानेर की बात जरूर होती है।
बीकानेरी भुजिया (Bikaneri Bhujia) अपने स्वाद के लिए दुनियाभर में मशहूर है। बरसों पहले राजस्थान के बीकानेर में भुजिया की एक छोटी सी दुकान खोली गई थी। यह दुकान मारवाड़ी भीखाराम अग्रवाल की थी। भाखाराम का 11 साल का पोता गंगा बिशनजी अग्रवाल दुकान में उनका हाथ बंटाता था। गंगा बिशनजी का दूसरा नाम हल्दीराम (Haldiram) भी था। इसी नाम पर दुकान का नाम हल्दीराम भुजिया वाला (Haldiram Bhujiya Wala) रखा गया। बिशनजी अग्रवाल सिर्फ 8वीं पास थे, लेकिन उनके पास गजब की मार्केटिंग स्किल थी।
हल्दीराम बड़े ध्यान से अपने दादा को भुजिया बनाते हुए देखते थे। चने के आटे और बेसन से भुजिया बनाई जाती थी। हल्दीराम कुछ बड़ा और अलग करना चाहते थे। वे चाहते थे कि उनकी बनाई भुजिया दूसरों से अलग हो। वे भुजिया में कई सारे फ्लेवर्स भी लाना चाहते थे। वे इसी प्रयास में लग गए। हल्दीराम ने कई प्रयास किये। अलग अलग सामग्रियों और मसालों के साथ भुजिया बनाना जारी रखा। काफी वक्त और मेहनत जाया होने के बाद उन्होंने एक ऐसी भुजिया बनाई, जो उन्हें काफी पसंद आई। यह भुजिया मोठ के आटे से बनी थी।
जब हल्दीराम अपने मन मुताबिक भुजिया बना लिये तो उन्होंने कंपनी खोलने का फैसला लिया। इस तरह साल 1937 में हल्दीराम के नाम से कंपनी खोली। हल्दीराम अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपने भुजिया का नाम बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर डूंगर सेव रख लिया। इससे लोग समझने लगे कि शायद भुजिया का महाराजा से कोई रिलेशन होगा। साथ ही हल्दीराम ने सामान्य रेट 2 पैसा प्रति किलो के स्थान पर अपने भुजिया का रेट 5 पैसा प्रति किलो रखा। ग्राहकों को लगा कि यह महाराजा के नाम वाली भुजिया प्रीमियम क्वालिटी की होगी, इसलिए वे इसे खरीदने लगे। इस तरह साल 1941 आते-आते बीकानेर के बाहर तक हल्दीराम का जायका फैल चुका था।
धीरे-धीरे हल्दीराम एक बड़ा ब्रैंड बन गया। इसने कमाई के रेकॉर्ड तोड़ दिये। हल्दीराम में कई प्रोडक्ट लॉन्च हो गए थे। बीकानेर के बाहर सबसे पहले यह कंपनी कोलकाता गई। अपने बेटों सत्यनारायण और रामेश्वरलाल के साथ हल्दीराम कोलकाता पहुंचे। यहां हल्दीराम भुजिया वाला की ब्रांच खोली गई। वहीं, बीकानेर में हल्दीराम के बेटे मूलचंद दुकान संभाल रहे थे। जब बेटों में बनी नहीं, तो 60 के दशक में बीकानेर और कोलकाता के बिजनस अलग हो गए।
धीरे-धीरे हल्दीराम ने मिठाइयों और साउथ इंडियन खाना भी अपने प्रोडक्ट्स में शामिल किया। फिर रेस्टोरेंट्स खोले गए। हल्दीराम के पास आज 410 से भी ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं। साल 1993 में हल्दीराम ने अमेरिका में अपने प्रोडक्ट्स का निर्यात शुरू कर दिया था। आज 80 से अधिक देशों में कंपनी का बिजनेस है। इसके अलावा भारत के स्नैक्स मार्केट में कंपनी की हिस्सेदारी 38 फ़ीसदी से ज्यादा है। कंपनी के देशभर में 400 से ज्यादा स्टोर्स हैं।
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