वाशिंगटन। गूगल (Google) की हैकिंग टीम (Hacking Team) ने एक हैकिंग कार्रवाई का पता लगाया है, जो अब रहस्यमय बन गया है। ये हैकिंग अमेरिका (Hacking America) के एक सहयोगी देश से जुड़े विशेषज्ञों की टीम कर रही थी। गूगल ने इस बारे में जारी जानकारी में ज्यादातर बातें छिपा ली हैं। मगर सामने आई जानकारी के आधार पर विशेषज्ञों (Experts)ने कहा है कि साइबरस्पेस(Cyberspace) में कौन दोस्त है और कौन दुश्मन, अब ये कहना मुश्किल हो गया है।
गूगल(Google) के प्रोजेक्ट जीरो (Project zero) और थ्रेट एनालिसिस ग्रुप (Threat Analysis Group) की हैकिंग टीमों(Hacking Teams) ने इस हैकिंग कार्रवाई को पकड़ा। उन्होंने इसे रोक दिया। इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के टेक रिव्यू जर्नल में छपी है। उसके आधार पर मीडिया में ये खबर आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक जब इस जवाबी आतंकवाद (काउंटर टेररिज्म) हैकिंग कार्रवाई का गूगल को पता चला, तो उसके विशेषज्ञों के बीच इस पर लंबी बहस चली कि इसके बारे में कितनी जानकारी सार्वजनिक की जाए। जानकारों के मुताबिक इस खुलासे ने भविष्य में साइबर जासूसी के स्वरूप को लेकर नई बहस खड़ी कर दी है।
गूगल की प्रोजेक्ट जीरो टीम तकनीकी सुरक्षा संबंधी कमजोरियों की जांच करती है। थ्रेट एनालिसिस ग्रुप सरकारों की तरफ से की जाने वाली हैकिंग पर नजर रखता है। उनकी इस जांच के दौरान देखा गया कि एक ‘दोस्त’ देश की तरफ से मलवेयर (जासूसी सॉफ्टवेटर) हमला किया गया है। ऐसा नौ महीनों में 11 बार हुआ। उसके जरिए आईओएस, एंड्रॉयड और विंडोज से चलने वाले उपकरणों को निशाना बनाया गया। एमआईटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह हमला ऐसा था, जैसा उसके पहले कभी नहीं देखा गया। खबरों के मुताबिक एमआईटी ने शुक्रवार को यह बताया कि ये कार्रवाई कर रहे हैकर एक पश्चिमी देश की सरकार से जुड़े हैं। वे एक काउंटर टेरेरिज्म ऑपरेशन चला रहे थे। गूगल ये कार्रवाई रोकने में सफल रहा। लेकिन उसने जो जानकारी दी, उसमें यह नहीं बताया गया कि इस कार्रवाई के लिए कौन जिम्मेदार है और इसके निशाने पर कौन था। उसने मलवेयर के तकनीकी पहलुओं के बारे में भी पूरी नहीं जानकारी नहीं दी है। गौरतलब है कि गूगल के प्रोजेक्ट जीरो और थ्रेट एनालिसिस ग्रुप की रिपोर्टों की बड़ी साख है। टेक्नोलॉजी की दुनिया में इन दोनों समूहों की ऊंची प्रतिष्ठा है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी नेटवर्कों की सुरक्षा निगरानी करते समय अकसर साइबर सिक्योरिटी टीमें एक दूसरे की कार्य प्रक्रिया से टकरा जाती हैं। इसलिए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने आपस में एक समझौता कर रखा है, जिसके तहत ये प्रावधन है कि हैकर अगर दोस्त देश के हों, तो वे उसके बारे में जानकारियां सार्वजनिक नहीं करेंगे। लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक इस बारे में कुछ साफ नीतियां बनाने की जरूरत है, ताकि हैकिंग के जिम्मेदार देश की स्पष्ट पहचान की जा सके। जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि अमेरिका पश्चिम एशिया में अपना सबसे बड़ा सहयोगी देश इजराइल को मानता है। इसके बावजूद गुजरे वक्त में अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी और सीआईए इजराइल को अमेरिका के लिए जासूसी का सबसे बड़ा खतरा बता चुकी हैं। अब ताजा खुलासे के बाद यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े ऐसे मामलों में जिनमें हैकर किसी देश की सरकार से जुड़े हैं, उसकी जांच का भार गूगल जैसी एक प्राइवेट कंपनी पर छोड़ा जाना चाहिए।