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Gyanvapi Survey: मस्जिद निर्माण से पहले वहां था विशाल मंदिर, ASI की रिपोर्ट में 12 बड़े खुलासे

January 26, 2024

नई दिल्‍ली (New Dehli)। वाराणसी की जिला अदालत(Varanasi District Court) ने जुलाई 2023 में ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque)परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) को सौंपा था। उसने अपनी रिपोर्ट सौंप (submit report)दी है, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले उस स्थान पर एक हिंदू मंदिर मौजूद था।” आपको बता दें कि हिंदू पक्ष लगातार दावा करता है कि मस्जिद 17वीं शताब्दी में मूल काशी विश्वनाथ मंदिर के विनाश के बाद उसके स्थान पर बनाई गई थी।

एएसआई को यह पता लगाने का काम सौंपा गया था कि क्या मस्जिद एक हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर बनाई गई थी। एएसआई ने पिछले महीने एक सीलबंद कवर में अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी थी। इसकी प्रतियां गुरुवार को अदालत ने हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को सौंप दीं हैं। रिपोर्ट में कहा गया है: “वैज्ञानिक अध्ययन, वास्तुशिल्प अवशेषों, उजागर विशेषताओं और कलाकृतियों, शिलालेखों, कला और मूर्तियों के अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले एक हिंदू मंदिर मौजूद था।”


रिपोर्ट में लिखा है, “एक कमरे के अंदर पाए गए अरबी-फारसी शिलालेख में उल्लेख है कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के 20वें शासनकाल (1667-77) में किया गया था। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले से मौजूद संरचना को 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान नष्ट कर दिया गया था। इसके कुछ हिस्से को संशोधित किया गया था और मौजूदा संरचना में पुन: उपयोग किया गया था।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “मौजूदा वास्तुशिल्प अवशेष, दीवारों पर सजाए गए सांचे, केंद्रीय कक्ष के कर्ण-रथ और प्रति-रथ, एक बड़ा सजाया हुआ प्रवेश द्वार, पश्चिमी कक्ष की पूर्वी दीवार पर तोरण, लालताबिम्बा, पक्षियों की विकृत छवि वाला एक छोटा प्रवेश द्वार और अंदर और बाहर सजावट के लिए उकेरे गए जानवरों से पता चलता है कि पश्चिमी दीवार एक हिंदू मंदिर का शेष हिस्सा है। पहले से मौजूद संरचना को एक हिंदू मंदिर के रूप में पहचाना जा सकता है।”

रिपोर्ट के मुताबिक, तहखाने में फेंकी गई मिट्टी के नीचे हिंदू देवताओं की मूर्तियां और नक्काशीदार वास्तुशिल्प दबे हुए पाए गए। चबूतरे के पूर्वी हिस्से में तहखाने बनाते समय पहले के मंदिरों के स्तंभों का पुन: उपयोग किया गया था। घंटियों से सजाया गया एक स्तंभ और चारों तरफ दीपक रखने के लिए जगहें भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं।

एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में आगे लिखा है, एएसआई के पास एक ढीले पत्थर पर उत्कीर्ण एक शिलालेख का रिकॉर्ड था, जिसमें हजरत आलमगीर यानी मुगल सम्राट औरंगजेब के 20वें शासनकाल में एएच 1087 (1676-77 सीई) के अनुरूप मस्जिद का निर्माण दर्ज किया गया था। शिलालेख में यह भी दर्ज है कि वर्ष एएच 1207 (1792-93 सीई) में, मस्जिद की मरम्मत की गई थी। इस पत्थर के शिलालेख की तस्वीर वर्ष 1965-66 में एएसआई रिकॉर्ड में दर्ज की गई थी।

रिपोर्ट में लिखा है, “हाल के सर्वेक्षण के दौरान शिलालेख वाला यह पत्थर मस्जिद के एक कमरे से बरामद किया गया था। हालांकि, मस्जिद के निर्माण और उसके विस्तार से संबंधित पंक्तियों को हटा दिया गया है।”

यह बात बादशाह औरंगजेब की जीवनी मासीर-ए-आलमगिरी से भी सामने आती है। इसमें उल्लेख है कि, ”औरंगजेब ने सभी प्रांतों के राज्यपालों को काफिरों के स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था। यह बताया गया कि सम्राट के आदेश के अनुसार उनके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था।”

एएसआई ने कहा कि “सर्वेक्षण के दौरान, मौजूदा और पहले से मौजूद संरचनाओं पर कई शिलालेख देखे गए। वर्तमान सर्वेक्षण के दौरान कुल 34 शिलालेख दर्ज किए गए और 32 शिलालेख लिए गए। ये वास्तव में पहले से मौजूद हिंदू मंदिरों के पत्थरों पर शिलालेख हैं, जिनका मौजूदा ढांचे के निर्माण या मरम्मत के दौरान पुन: उपयोग किया गया है। इनमें देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों में शिलालेख शामिल हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि “इन शिलालेखों में जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर जैसे देवताओं के तीन नाम पाए जाते हैं। तीन शिलालेखों में उल्लिखित महा-मुक्तिमंडप जैसे शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं।”

 

ASI की रिपोर्ट में 12 बड़े खुलासे

श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर (Srikashi Vishwanath Temple) से सटे ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की सर्वे रिपोर्ट की नकल गुरुवार को पांच लोगों को मिल गई है। सर्वे रिपोर्ट की नकल मिलने के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने एक होटल में प्रेस कांफ्रेंस की। जिसमें दावा किया है कि एएसआई रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है कि वहां 32 ऐसे जगह प्रमाण मिले हैं जिससे हिंदू पक्ष का दावा मजबूत होता है।

एएसआई की सर्वे रिपोर्ट पढ़ते हुए अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि एएसआई रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां 32 ऐसे जगह प्रमाण मिले हैं कि जो बता रहे हैं कि वहां हिंदू मंदिर था। देवनागरी, ग्रंथा, तेलुगु, कन्नड़ के इंस्क्रिप्शन (पुरालेख) मिले हैं। इसके अलावा जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के इंस्क्रिप्शन मिले हैं। रिपोर्ट में एक जगह महामुक्ति मंडप लिखा है। एएसआई कह रहा है कि यह बहुत महत्वपूर्ण बात है।

एएसआई ने सर्वे के दौरान एक पत्थर पाया जो टूटा हुआ था। जदूनाथ सरकार की फाइंडिंग को सही पाया। जो पिलर थे पहले के मंदिर के उनका इस्तेमाल किया गया है। जो तहखाना S2 है, उसमें हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मिली हैं।

विष्णु शंकर जैन ने बताया कि एएसआई रिपोर्ट में कहता है कि पश्चिमी दीवार एक हिंदू मंदिर का हिस्सा है। उसे आसानी से पहचाना जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, 17वीं शताब्दी में मंदिर तोड़ा गया था, फिर उसे मस्जिद बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया। एएसआई ने रिपोर्ट में कहा है कि यहां मस्जिद से पहले हिंदू मंदिर का स्ट्रक्चर था। वहीं हिंदू पक्षकारों का कहना है कि अब सील वजूखाना की एएसआई सर्वे की मांग सुप्रीम कोर्ट से करेंगे।

जानिए सर्वे रिपोर्ट में क्या-क्या लिखा, पढ़ें 12 बड़ी बातें
– ASI ने 839 पन्ने की रिपोर्ट तैयार की है, जो बताती है कि मस्जिद से पहले वहां हिंदू मंदिर था।
– सर्वे में 32 ऐसे जगह प्रमाण मिले हैं, जो बताते हैं कि वहां पहले हिंदू मंदिर था।
ASI ने जदुनाथ सरकार के इस निष्कर्ष पर भरोसा जताया है कि 2 सितंबर 1669 को मंदिर ढहा दिया गया था।
– देवनागरी, ग्रंथा, तेलुगु, कन्नड़ में लिखे पुरालेख मिले हैं।
– जनार्दन, रुद्र और विश्वेश्वर के बारे में पुरालेख मिले हैं।
– एक जगह महामुक्ति मंडप लिखा है, जो ASI के मुताबिक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है।
मंदिर ढहाए जाने के बाद उसके स्तंभों का इस्तेमाल मस्जिद बनाने में किया गया।
तहखाना S2 में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं।
– ज्ञानवापी की पश्चिमी दीवार एक हिंदू मंदिर का हिस्सा थी, उसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
– तहखाने में मिट्टी के अंदर दबी ऐसी आकृतियां मिलीं जो उकेरी हुई थीं।
एक कमरे में अरबी और फारसी में लिखे पुरालेखों में मिले हैं जो बताते हैं कि मस्जिद औरंगजेब के शासनकाल के 20वें वर्ष यानी 1667-1677 में बनी।
– सर्वे में जो पुरालेख मिले हैं, उनमें तीन नामों का जिक्र प्रमुखता से है- जनार्दन, रूद्र, उमेश्वर।

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