नई दिल्ली (New Dehli) । आज गुरु नानक देव (Guru Nanak Dev) की पुण्यतिथि है. ये उनकी 481वीं पुण्यतिथि (Death Anniversary) है. उन्होंने करतारपुर (Kartarpur) में प्राण त्यागे थे. उनका जीवन सादगी (life simplicity)से भरा था तो वो ताजिंदगी भाईचारे, समानता और प्यार का उपदेश देते रहे. उन्हीं से जुड़ी खास बातें
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iसिख धर्म की स्थापना करने वाले 10 गुरुओं में पहले गुरु नानक देव की आज पुण्यतिथि है. उन्होंने 22 सितंबर 1539 में करतारपुर में प्राण छोड़े थे. करतारपुर अब पाकिस्तान में है वहां गुरुद्वारा दरबार ग्रंथ साहिब में हजारों-लाखों सिख श्रृद्धालु उन्हें मत्था टेकने जाते हैं. इसी के मद्देनजर भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने आपस में बात करके करतारपुर कॉरीडोर को अमलीजामा पहनाया. गुरु नानक देव ताजिंगी प्यार, समानता, भाईचारा की बातें करते रहे. गुरु नानक (Guru Nanak) से जुड़ी 10 बातें –
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गुरु नानक देव के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था. नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था. नानक जी के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा. वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में है. गुरु नानक हिंदू घर में पैदा हुए लेकिन वो हमेशा मानते रहे कि वह ना तो हिंदू हैं और ना ही मुस्लिम.
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नानक जब कुछ बड़े हुए तो उन्हें पढने के लिए पाठशाला भेजा गया. उनकी सहज बुद्धि बहुत तेज थी. वे कभी-कभी अपने शिक्षको से विचित्र सवाल पूछ लेते जिनका जवाब उनके शिक्षको के पास भी नहीं होता. जैसे एक दिन शिक्षक ने नानक से पाटी पर ‘अ’ लिखवाया. तब नानक ने ‘अ’ तो लिख दिया किन्तु शिक्षक से पूछा, गुरुजी! ‘अ’ का क्या अर्थ होता है? यह सुनकर गुरुजी सोच में पड़ गए.
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गुरु नानक बचपन से सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे. तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे. गुरु नानक के बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व वाले मानने लगे.
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‘उदासी’ (विचरण यात्रा) 1507 ई. में 1515 ई. तक रही. गुरु नानक जी का विवाह बटाला निवासी मूलराज की पुत्री सुलखनी से नानक का विवाह से हुआ. सुलखनी से नानक के दो पुत्र पैदा हुए. एक का नाम था श्रीचंद और दूसरे का नाम लक्ष्मीदास था. गुरु नानक के बेटे श्रीचंद ने उदासी रिलीजन की स्थापना की.
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गुरु नानक (Guru Nanak Ji) ने बचपन से ही रूढ़िवादिता के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत कर दी थी. वे धर्म प्रचारकों को उनकी खामियां बतलाने के लिए अनेक तीर्थस्थानों पर पहुंचे और लोगों से धर्मांधता से दूर रहने का आग्रह किया.
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गुरु नानक अपने जीवन में लंबी लंबी यात्राएं करते रहे. वो मक्का गए. इसके अलावा उन्होंने कश्मीर, तिब्बत, बंगाल, मणिपुर, रोम आदि जगहों की यात्रा पैदल ही की. इसमें उनके साथ उनके मुस्लिम सहयोगी भाई मरदाना होते थे.
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गुरु नानक देव ने ही इक ओंकार का नारा दिया यानी ईश्वर एक है. वह सभी जगह मौजूद है. हम सबका “पिता” वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए.
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गुरु नानक का सोच-विचार में डूबे रहते थे. तब उनके पिता ने उन्हें व्यापार में लगाया. उनके लिए गांव में एक छोटी सी दुकान खुलवा दी. एक दिन पिता ने उन्हें 20 रुपए देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने को कहा. नानक ने उन रुपयों से रास्ते में मिले कुछ भूखे साधुओं को भोजन करा दिया और आकर पिता से कहा की वे ‘खरा सौदा’ कर लाए है.
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गुरु नानक जी का कहना था कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में बसता है, अगर हृदय में निर्दयता, नफरत, निंदा, क्रोध आदि विकार हैं तो ऐसे मैले हृदय में परमात्मा बैठने के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं. गुरु नानक देव जी ने कहा था कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंदों की भी मदद करनी चाहिए.
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गुरु नानक जीवन के अंतिम चरण में करतारपुर बस गए. उन्होंने 22 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्याग दिया. मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए.
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