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    गुर्जर आंदोलन : मतलब, राजस्थान सरकार से टकराव, यातायात व जनजीवन ठप

  • November 03, 2020

    जयपुर । राजस्थान में एक बार फिर गुर्जर आरक्षण की मांग को लेकर कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में रेल की पटरियों पर आ गए हैं। गुजरे दो दिनों से आंदोलनकारियों ने रेल की पटरियों पर बैठे हैं। इसकी वजह से न सिर्फ कई ट्रेनों के रूट डायवर्ट किए गए हैं, बल्कि रोडवेज से यात्रा करने वाले यात्री भी प्रभावित हुए हैं। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला से वार्ता करने के लिए सरकार तैयार है, लेकिन बैंसला अब सरकार से बातचीत नहीं करना चाहते हैं।

    पिछले दिनों गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति और गहलोत सरकार के बीच 14 बिंदुओं पर सहमति बनी थी, लेकिन इस वार्ता में संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला शामिल नहीं हुए थे। इसमें गुर्जर नेता हिम्मत सिंह के गुट के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, जिसमें सरकार की तरफ से कई मुद्दों पर फैसला किया गया है। असल में, गुर्जरों की नाराजगी के पीछे असली वजह भी यही बताई जा रही है कि गुर्जर बैकलॉग में 5 फीसदी विशेष आरक्षण की मांग कर रहे हैं। पिछले दिनों जिस तरह से मराठा आरक्षण पर हाईकोर्ट का हथौड़ा चला, उसे देखते हुए गुर्जर सतर्क हो गए हैं और एमबीसी आरक्षण को 9वीं अनुसूची में डालने की मांग कर रहे हैं।

    आरक्षण के लिए 6 बार पटरी व सडक़ पर उतरा गुर्जर समुदाय

    प्रदेश में गुर्जर आंदोलन की शुरुआत 2006 से हुई। गुर्जर 2006 में पहली बार एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर करौली के हिंडौन में सडक़ों और रेल की पटरियों पर उतरे थे। तब तत्कालीन भाजपा सरकार महज एक कमेटी बना सकी। तब से लेकर अब तक कई बार बड़े आंदोलन हो चुके हैं। इस दौरान भाजपा और कांग्रेस की सरकारें रहीं, लेकिन किसी भी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी हल नहीं निकला। गुर्जर समाज ने दूसरी बार 2007 में आंदोलन किया। 21 मई 2007 को आंदोलन के लिए पीपलखेड़ा पाटोली को चुना गया। इस दौरान यहां से गुजरने वाले राजमार्ग को बाधित कर जाम कर दिया गया था। तब आंदोलन के दौरान 28 लोगों की मौत हुई थी और करोड़ों रुपए की सरकारी और निजी संपत्तियों का नुकसान हुआ था। तीसरा गुर्जर आंदोलन 23 मार्च 2008 को शुरू हुआ। इस दौरान गुर्जरों ने भरतपुर के बयाना में पीलूपुरा ट्रैक पर ट्रेनें रोकी थीं। इस दौरान पुलिस को फायरिंग तक करनी पड़ी और 7 आंदोलनकारियों ने जान गंवाई थी। इन मौतों से गुस्साए गुर्जरों ने दौसा जिले के सिंकदरा चौराहे पर हाईवे को जाम कर दिया था। इस दौरान भी 23 प्रदर्शनकारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। गुर्जर आंदोलन में 2008 तक मौतों का आंकड़ा 28 से बढक़र 58 पर पहुंच गया था। गुर्जर आरक्षण में अब तक 72 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

    आंदोलन का मुख्य केंद्र बना पीलूपुरा

    इसके बाद 2010 और 2015 में भी गुर्जरों ने आंदोलन का बिगुल बजाया। दोनों ही बार भरतपुर का पीलूपुरा गांव आंदोलन का मुख्य केंद्र रहा। इस आंदोलन के बाद ही 5 फीसदी आरक्षण का समझौता हुआ था। 8 फरवरी 2018 को भी गुर्जरों ने आरक्षण के लिए आंदोलन शुरू किया था। इस दौरान गुर्जरों ने सवाई माधोपुर के मलारना डूंगर में ट्रैक पर डेरा डाला था। इसके बाद गहलोत सरकार ने गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण देने के लिए विधानसभा में गुर्जर आरक्षण बिल पारित किया था, लेकिन अभी तक गुर्जरों की मांगों का समाधान सरकारें नहीं कर पाई हैं। (हि.स.)

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