भोपाल। मप्र में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा लगातार रणनीतिक मोर्चे पर काम कर रही है। पार्टी मैदानी सक्रियता के साथ ही टिकट वितरण के लिए भी फॉर्मूलों पर भी चिंतन-मनन कर रही है। इस बीच गुजरात में हुए टिकट वितरण फॉर्मूले ने प्रदेश के मंत्रियों और भाजपा विधायकों की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, भाजपा ने गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए 30 प्रतिशत स्टेंडिंग विधायक व मंत्रियों के टिकट काट दिए हैं। यदि मप्र में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारी तय करने के लिए यह फार्मूला अपनाया जाता है, तो प्रदेश के कई मंत्रियों व स्टेंडिंग विधायकों के टिकट कट सकते हैं। गौरतलब है कि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा के 41 मंत्री चुनाव हार गए थे। इनमें मप्र के 13, राजस्थान के 20 और छत्तीसगढ़ के 8 मंत्रियों ने अपनी सीट गंवाई। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा गुजरात फॉर्मूला अपना सकती है।
आंतरिक रिपोर्ट में कईयों की स्थिति अच्छी नहीं
भाजपा की आंतरिक रिपोर्ट में वर्तमान में प्रदेश के कई मंत्रियों व विधायकों की स्थिति अच्छी नहीं हैं। इस कारण टिकट कटने की आशंका से कई मंत्री व विधायक अभी से चिंतित नजर आ रहे हैं। इनमें कुछ मंत्री व विधायक कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वाले भी हैं। गुजरात को भाजपा की बड़ी प्रयोगशाला माना जाता है। हर नए फार्मूले को राष्ट्रीयस्तर पर लागू करने के लिए भाजपा पहले उसका प्रयोग गुजरात में करती है। पिछले डेढ़ दशक से भाजपा में नए चेहरों व युवाओं को आगे लाने के लिए संगठन निरंतर कार्य कर रहा है। संगठन ने गुजरात विधानसभा चुनाव में 30 प्रतिशत नए चेहरों को मैदान में उतारा है, जबकि कई दिग्गज मंत्रियों व विधायकों के टिकट नहीं दिए हैं। सबसे बड़ी बात यह रही है कि टिकटों की घोषणा के बाद बगावत का एक भी स्वर नहीं फूटा है। अगर इस फार्मूले से भाजपा गुजरात में एक बार सरकार बनाने में सफल होती है तो पार्टी अगले वर्ष मप्र सहित चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में नए चेहरों को चुनाव में उतारने पर विचार कर सकती है।
मध्य प्रदेश में गुजरात से भिन्न परिस्थितियां हैं
प्रदेश में गुजरात से परिस्थितियां भिन्न हैं। गुजरात में केंद्रीय मंत्री अमित शाह का दबदबा है। उनके फैसले के सामने गुजरात का कोई नेता बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता है। वहीं प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को छोड़ दिया जाए तो क्षेत्रवार दमदार नेता हैं। मालवा-निमाड़ में कैलाश विजयवर्गीय, ग्वालियर-चंबल अंचल में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का वर्चस्व है। सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आए विधायक भी टिकट मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
कारगर हो सकता है गुजरात का फार्मूला
गुजरात के फार्मूले पर मप्र में भी भाजपा अमल कर सकती है, क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने जिन मंत्रियों को चुनाव में उतारा था। उनमें से अर्चना चिटनीस, उमाशंकर गुप्ता, ललिता यादव, शरद जैन, जयंत मलैया, अंतर सिंह आर्य, जयभान सिंह पवैया, लालसिंह आर्य, रुस्तम सिंह, दीपक जोशी, नारायण सिंह कुशवाह, ओमप्रकाश धुर्वे और बालकृष्ण पाटीदार चुनाव हार गए।
जानकारी के अनुसार सिंधिया के साथ भाजपा में आए मंत्री व विधायक ज्यादा चिंतित हैं, क्योंकि उनसे किए गए वादे भाजपा पूरे कर चुकी है। आगामी चुनाव में कोई शर्त टिकट आवंटन में आड़े नहीं आएगी, उन्हें संगठन का फैसला मानना होगा। फिलहाल इस संबंध में कोई भी नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।
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