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    गुजरात: BJP ने फिर ‘गुमनाम’ नेता के नाम पर चला दांव, कई राज्यों में पहले भी आजमा चुका है ये फार्मूला

  • September 13, 2021

    नई दिल्ली। भाजपा (Bjp) के शीर्ष नेतृत्व ने गुजरात (Gujarat) में एक बार फिर ‘गुमनाम’ नेता (‘anonymous’ leader) के नाम पर दांव चला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने ज्यादातर राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए चल रहे नामों को नजरअंदाज कर लो प्रोफाइल और सुर्खियों से बाहर चल रहे व्यक्ति को चुना। इतना ही नहीं, पार्टी नेतृत्व प्रभावशाली जातियों के नेता को न चुनकर अन्य को भी चुन चुकी है।

    दरअसल गुजरात में सीएम पद के लिए केंद्रीय मंत्रियों पुरुषोत्तम रूपाला, मनसुख मंडाविया, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, सौरभ पटेल, गोवर्धन झाड़पिया और प्रफुल्ल पटेल के नाम चर्चा में थे।


    इसी तरह की कयासबाजी उत्तराखंड और कर्नाटक में मुख्यमंत्रियों के नामों पर भी लग रही थी लेकिन सीएम उस नेता को बनाया गया जिसका नाम कोई नहीं ले रहा था। इसी तरह से हरियाणा और झारखंड में मनोहर लाल खट्टर और रघुवर दास को चुनकर पार्टी ने सभी को चौंकाया। ये दोनों नेता अपने राज्यों में सियासी तौर से प्रभावशाली जातियों से नहीं आते हैं।

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में भी योगी आदित्यनाथ का चुना जाना आश्चर्यजनक था जबकि नाम मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा सबसे आगे था। त्रिपुरा में विप्लप कुमार देव और महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाना भी लोगों को खटका था।

    दूसरी बार चूके नितिन पटेल
    आनंदीबेन पटेल के 2016 में इस्तीफे के बाद पाटीदार समुदाय में अच्छी पकड़ रखने वाले नितिन पटेल का नाम सीएम पद के लिए सबसे आगे चल रहा था। इतना ही नहीं, उन्होंने टीवी चैनलों के सामने खुद को सीएम चुना जाना पक्का मानकर मिठाई भी खा ली थी लेकिन अंत में उनका पत्ता काटकर पार्टी आलाकमान ने जैन समुदाय के विजय रुपाणी को चुना।

    रुपाणी के इस्तीफे के बाद भी उनका ही नाम सबसे आगे चल रहा था। विधायक दल की बैठक से पहले विश्वास से भरे नितिन ने कहा था कि विधायक दल का नेता लोकप्रिय, मजबूत, अनुभवी और सभी को स्वीकार्य होना चाहिए।

    नए सीएम का चुनाव केवल एक खाली पद भरने की कवायद नहीं है। प्रदेश को एक सफल नेतृत्व की जरूरत है ताकि राज्य सबको साथ लेकर विकास कर सके। इससे उनके नाम की अटकलें तेज हो गई थीं लेकिन एक बार फिर उनकी किस्मत धोखा खा गई।

    शाह, राजनाथ, नड्डा समेत पार्टी नेताओं ने दी बधाई
    केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने भूपेंद्र पटेल को गुजरात में भाजपा विधायक दल का नेता चुने जाने पर बधाई दी। शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और पटेल के नेतृत्व में राज्य की विकास यात्रा को नई ऊर्जा और गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि गुजरात सुशासन और लोक कल्याण कार्यों में अग्रणी राज्य बना रहेगा।

    गुजरात में आरक्षण आंदोलन से बिदके पाटीदार समुदाय को रिझाने के लिए भाजपा ने पांच साल बाद फिर इसी समाज के विधायक भूपेंद्र पटेल को सत्ता की कमान सौंपी है।

    इससे पहले आनंदीबेन पटेल इसी समुदाय थी और आरक्षण आंदोलन को सही ढंग से न संभालने के चलते 2016 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। प्रदेश में पाटीदार समुदाय धन, बल से काफी ताकतवर है और सियासत में काफी दखल है। भाजपा के राज्य में विजय अभियान में में इसकी अहम भूमिका है।

    पाटीदार समुदाय प्रदेश की 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों का परिणाम बदलने की ताकत रखता है। विधानसभा की 182 सीटों में से 71 में करीब 15 फीसदी या इससे ज्यादा इस समुदाय के मतदाता हैं।

    गुजरात की करीब 6 करोड़ आबादी में पाटीदार 1.5 करोड़ हैं। यह अनुमानित आबादी का 12-14 फीसदी है। 2012 में भाजपा को मिले 48 फीसदी वोट शेयर में से 11 फीसदी पाटीदारों का हिस्सा था। खुद को भगवान राम का वंशज बताने वाले यह समुदाय पूरे प्रदेश में फैला है लेकिन उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र में इनकी जनसंख्या अधिक है।

    पहले कांग्रेस समर्थक
    पहले यह समुदाय कांग्रेस का समर्थक था। 1980 के दशक में कांग्रेस द्वारा क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिमों को ज्यादा तवज्जो देने से यह समुदाय नाराज हो गया। इसके बाद इसने भाजपा को समर्थन देना शुरू किया। 2015 मेें हार्दिक पटेल जैसे नेताओं के नेतृत्व में समुदाय ने अपने लिए अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण के लिए आंदोलन चलाया। कई जगह हिंसक घटनाएं हुई और इस समुदाय के कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे समुदाय भाजपा से छिटकने लगा।

    मोहभंग का चुनाव में दिखा असर
    भाजपा से समुदाय के मोहभंग का असर चुनाव परिणाम में दिखा। 2012 के चुनावों में 115 सीटें जीतने वाली भाजपा को 2017 में 99 सीटें ही मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव से इनके वोट शेयर में भी कमी आई। 2014 में पाटीदारों के 60 फीसदी वोट मिले तो 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र 49.1 फीसदी।

    मोदी मंत्रिमंडल में ज्यादा जगह दी गई
    इस साल मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में प्रदेश से सात लोगों को जगह दी गई। इनमें पाटीदार समुदाय से आने वाले मनसुख मंडाविया और पुरुषोत्तम रूपाला को राज्यमंत्री से केंद्रीय मंत्री बनाया गया।

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