अहमदाबाद। गुजरात विधानसभा चुनाव के अंतर्गत आज पहले चरण का मतदान हो रहा है। गुरुवार को सुबह मतदान शुरू हो चुका है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (Bharatiya Janata Party (BJP)) के लिए गुजरात (Gujarat Polls) में पहले चरण का मतदान (first phase polling) काफी अहम है, क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकांश सीटें सौराष्ट्र से आती हैं। यहां पिछली बार भाजपा को कांग्रेस (Congress) ने कड़ी चुनौती दी थी। इसके अलावा दक्षिण गुजरात और कच्छ में भी इसी चरण में चुनाव है। दक्षिण गुजरात में सबसे महत्वपूर्ण सूरत है जहां पर आम आदमी पार्टी इस बार प्रभावी दस्तक देने की तैयारी में है।
गुजरात में दो चरणों में होने वाले मतदान में पहले चरण के लिए गुरुवार को वोट डाले जा रहे है। इस चरण में 89 सीटों पर मतदान (Voting on 89 seats) हो रहा है। भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने सभी दिग्गजों को इस चरण में उतारा और कोई भी ऐसी विधानसभा सीट नहीं रही, जहां भाजपा का स्टार प्रचारक न पहुंचा हो। दरअसल भाजपा की कोशिश पहले चरण के मतदान वाली सीटों पर ही अपने विरोधियों पर भारी बढ़त हासिल करने की है, लेकिन यहां पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) भी काफी अहम है। सूरत और आसपास के शहरी क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी और गांवों में कांग्रेस की मजबूती देखी जा सकती है।
सामाजिक समीकरणों के लिहाज से भी यहां पर पटेल, आदिवासी, ओबीसी मतदाता अहम भूमिका में हैं। सौराष्ट्र में पाटीदार समुदाय और दक्षिण गुजरात में आदिवासी समुदाय कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में भी हैं। पिछले 2017 के चुनाव के आंकड़े देखे जाएं तो इन 89 सीटों में भाजपा ने 48 और कांग्रेस ने 38 सीटें जीती थी, जबकि बीटीपी को दो और एनसीपी को एक सीट मिली थी। क्षेत्र वार देखा जाए तो सौराष्ट्र और कच्छ की 54 सीटों में कांग्रेस को 28 ,भाजपा को 20 और अन्य को 3 सीट मिली थी। इस क्षेत्र में कांग्रेस, भाजपा पर काफी भारी पड़ी थी, लेकिन दक्षिण गुजरात को भाजपा ने साध लिया था और वहां की 35 सीटों में से भाजपा मो 27 और कांग्रेस को 8 सीटें ही मिली थी। सबसे महत्वपूर्ण सूरत रहा, जहां की अधिकांश सीटें भाजपा के खाते में गईं थीं, जबकि वहां पर जीएसटी के मुद्दे पर काफी विरोध देखने को मिला था।
प्रचार के दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भाजपा और गुजरात सरकार पर हमले तो किए लेकिन वह ऐसा कोई प्रभावी मुद्दा नहीं उठा सके। असरकारक मुद्दों की कमी वाले इस चुनाव में काफी कुछ जमीनी संपर्क पर निर्भर करेगा। यही वजह है कि भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी और जनसंपर्क से लेकर बड़ी सभाओं तक और कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े नेताओं तक सभी को झोक रखा है।
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