अभी तक भाजपा प्रत्याशी ने 18.34 लाख, तो कांग्रेस प्रत्याशी ने 14 लाख ही चुनावी खर्च बताया
इंदौर। कोरोना संक्रमण के मद्देनजर अभी बीते दिनों ही भारत निर्वाचन आयोग ने प्रत्याशियों के चुनावी खर्च की सीमा में 10 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। इसके चलते विधानसभा के प्रत्याशी 33 लाख 30 हजार की राशि खर्च कर सकते हैं, लेकिन सभी चुनावों में उम्मीदवार कभी भी आयोग द्वारा निर्धारित पूरा खर्च नहीं करते हैं। अभी सांवेर उपचुनाव में भी दोनों प्रमुख प्रत्याशियों ने मिलकर भी 33 लाख रुपए की राशि खर्च नहीं की।
वैसे तो लोकसभा और विधानसभा से लेकर नगरीय निकायों और पंचायतों तक के चुनाव अब अत्यंत महंगे हो गए हैं। अभी सांवेर सहित सभी 28 सीटों के उपचुनाव पर भी प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों ने जमकर पैसा बहाया है और अधीकृत रूप से मामूली खर्च ही बताया जाता है। सांवेर क्षेत्र में ही दोनों प्रमुख प्रत्याशियों ने 20 से 30 करोड़ रुपए तक खर्च किए हैं। हालांकि अधीकृत रूप से इसका खुलासा कोई नहीं करता है। अलबत्ता प्रत्याशियों को जो खर्च का ब्यौरा अनिवार्य रूप से आयोग के निर्देश पर जिला निर्वाचन कार्यालय को देना पड़ता है उसमें बहुत कम खर्च बताया जाता है। हालांकि आयोग ने हर तरह के चुनावी खर्च के रेट भी फिक्स कर रखे हैं और उसी के मान से प्रत्याशी के खाते में खर्चा डाला जाता है। अभी तक जो चुनावी खर्च का ब्यौरा सांवेर के प्रत्याशियों ने दिया है उसके मुताबिक भाजपा के तुलसीराम सिलावट ने 18 लाख 34 हजार रुपए खर्च करना बताए, तो कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू ने 14 लाख रुपए खर्च किए हैं। वहीं बसपा के विक्रमसिंह गहलोत भी खर्च करने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने अधिकृत रूप से 6 लाख 47 हजार रुपए का खर्च बताया है। इसमें अधिकांश राशि रैली, जनसम्पर्क पर खर्च करना बताई गई और भोजन, चाय, नाश्ते पर कोई खर्च ही नहीं बताया। यानी उम्मीदवारों से लेकर सारे कार्यकर्ताओं ने भूखे-प्यासे रहकर जनसम्पर्क किया। वहीं वाहनों पर भी श्री सिलावट ने 2 लाख 7 हजार, तो श्री गुड्डू ने 3 लाख 51 हजार खर्च करना बताए। आयोग ने प्रत्येक प्रत्याशी की खर्च सीमा 33 लाख रुपए तय की है, जबकि अभी तक दोनों प्रमुख कांग्रेस-भाजपा के प्रत्याशियों ने मिलकर भी इतनी राशि खर्च नहीं की है और इससे कई गुना अधिक खर्चा अलग-अलग तरीकों से आयोग की नजरें बचाकर किया जा चुका है।
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