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15 माह से नहीं मिला अनुदान, बैंक एफडी, खेती और चंदे से पाल रहे 533 गायें

March 04, 2022


गायों की मौत पर राजनीति तो शुरू, मगर मैदानी हकीकत किसी ने नहीं जानी, आज कलेक्टर को मिलेगी जांच रिपोर्ट… अफसरों ने किया गौशाला का दौरा
इंदौर।
सीहोर (Sehore) की कथा के बाद अब इंदौर (Indore) के पेडमी (Pedmi) स्थित गौशाला (Gaushala) में गायों की मौत (Death) को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। जबकि मैदानी हकीकत (Ground Reality) इन सबके विपरित ही है। शासन (Governance) द्वारा 20 रुपए प्रति दिन प्रति गाय अनुदान गौशालाओं को दिया जाता है, लेकिन 15 महीने से अनुदान के ही पते नहीं हैं, जबकि प्रदेश की सरकार (Government) खुद को घनघोर गौ भक्त मानती है। बैंक (Bank)  में रखी एफडी (FD), खाली पड़ी जमीन (Land) पर हो रही खेती, जिससे सालाना 15 लाख रुपए मिलते हैं के अलावा दान और चंदे से 533 गायों को ट्रस्ट (Trust) पाल रहा है। चूंकि बीमार-बूढ़ी गायों को गांव वाले भी छोड़ जाते हैं और रोजाना ही गायों की मौत होती है। यह अवश्य है कि ट्रस्टियों ने गायों की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर लापरवाही बरती। कलेक्टर के निर्देश पर एसडीएम और उनकी टीम इस पूरे मामले की जांच कर रही है। कल गौशाला जाकर भी वस्तु स्थिति जानी और आज कलेक्टर को विस्तृत जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।


गौशाला में गायों की मौत और उससे संबंधित चित्रों के सामने आने के बाद हल्ला मचा और साधु-संतों के साथ-साथ राजनीतिक दलों के लोग भी गौशाला पहुंचकर बयान देने लगे। वहीं कलेक्टर मनीष सिंह (Collector Manish Singh) ने कल ही एसडीएम प्रतुल्ल सिन्हा (SDM Pratul Sinha) को जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए। कल श्री सिन्हा के साथ तहसीलदार पल्लवी पुराणिक, नायब तहसीलदार अर्चना गुप्ता सहित अन्य ने दौरा भी किया और गौशाला की मैदानी हकीकत जानी। एसडीएम श्री सिन्हा के मुताबिक गौशाला में चूंकि बीमार और बूढ़ी गायों को भी रखा जाता है और गांव के लोग भी छोड़ देते हैं। इनके अंतिम संस्कार व कुछ अन्य मामलों में लापरवाही अवश्य सामने आ रही है। पूर्व में मिले एक करोड़ 90 लाख रुपए के अनुदान का हिसाब-किताब भी लिया जा रहा है। पशु चिकित्सा विभाग की टीम भी मौके पर थी। कई गायों के शवों पर खाल तक नहीं मिली, तो डेढ़ दर्जन से ज्यादा पुराने कंकाल भी मिले, तो इन गायों पर लगे टैग की भी जांच की जा रही है। कीचड़ में गायों के शव पड़े होने और प्लास्टिक मिलने की बात भी सामने आई। इस संबंध में पता चला कि चूंकि कई गायों की मौत प्लास्टिक खाने से भी हुई और चूंकि उनके शव पड़े-ड़े कंकाल हो गए। चूंकि प्लास्टिक नष्ट नहीं होता इसलिए वह वैसा ही शव के साथ पड़ा नजर आ रहा है। इस संबंध में गौशाला (Gaushala) चलाने वाले ट्रस्ट अध्यक्ष रामेश्वर असावा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बीते 15 महीने से शासन का अनुदान नहीं मिला है। दिसम्बर-20 से ही गौशालाओं को अनुदान नहीं प्राप्त हुआ। बैंक में जमा एफडी और खेती के अलावा दान-चंदे से मिलने वाली राशि से गौशाला का संचालन किया जा रहा है।


क्लॉथ मार्केट की जमीन बेचकर मिले थे सवा 2 करोड़
ट्रस्टी रामेश्वर असावा का कहना है कि जीवदया ट्रस्ट की जमीन क्लॉथ मार्केट को बेची गई थी, जिसके एवज में सवा 2 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त हुई। ट्रस्ट ने इस राशि को बैंक में एफडी करवा दिया, जिसके ब्याज से भी गौशाला (Gaushala) का खर्चा चलता है। लगभग 100 एकड़ जमीन मौजूद है, जिसके एक बड़े हिस्से में खेती भी कराई जाती है, उससे भी ट्रस्ट को सालाना 15 लाख की आमदनी होती है। इसके अलावा दान और चंदे से मिलने वाली राशि से भी गौशाला का संचालन किया जाता है। कई लोग विशेष त्यौहार या पर्व पर चारा भी लेकर आते हैं। वहीं शासन से 20 रुपए प्रति गाय जो अनुदान मिलता है वह बीते 15 महीने से ट्रस्ट को हासिल नहीं हुआ।


मृतक गायों के अंतिम संस्कार का कोई नियम ही नहीं
एक तरफ शासन गौ भक्त होने का दावा करता है, दूसरी तरफ बूढ़ी-बीमार गायों के मरने पर उनका अंतिम संस्कार किस तरह किया जाए इसकी कोई गाइडलाइन या नियम ही नहीं तय किए गए। जीवदया ट्रस्ट की ही अन्य गौशाला चलाने वाले ट्रस्टी रवि सेठी का कहना है कि 6 फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें 4 फीट गोबर का पानी, नमक-चूना डाला जाता है और फिर मृतक गायों को दफना दिया जाता है और इससे समाधि खाद भी बनती है, जो काफी उपजाऊ भी साबित होती है।


बूढ़ी और बीमार गायों की रोजाना ही होती है मौत
दरअसल, जितनी भी गायें हैं, वहां पर आवारा पशुओं के साथ-साथ बीमार और बूढ़ी गायों को भी रखा जाता है, जो दूध देने लायक नहीं बचती। इन गायों को पालने वाले किसान या ग्रामीण दूध ना मिलने पर इन्हें गौशालाओं में छोड़ जाते हैं और इनकी उम्र पूरी होने पर सामान्य मृत्यु ही होती है और गौशाला में रोजाना ही किसी ना किसी गाये की मौत होती है। पेडमी स्थित गौशाला में ही 533 गायें हैं, जिनमें से अधिकांश बूढ़ी और बीमार हैं। यह अवश्य है कि संचालन में लापरवाही बरती गई।


पेडमी की गोशाला में बचीं 533 गायों में भी कई बीमार और उम्रदराज
पेडमी स्थित अहिल्या माता गोशाला (Gaushala) में अभी भी 533 गाय हैं, जिनमें से कुछ जहां बीमार हैं, वहीं कई उम्रदराज भी हैं। इसके अलावा 3 गाय अंधी भी हैं। इन गायों की उचित देखभाल करने के साथ ही इलाज की भी सख्त जरूरत है। जांच अधिकारी प्रतुलचंद्र सिन्हा ने जांच पूरी कर ली है। आज दोपहर वे कलेक्टर मनीष सिंह को रिपोर्ट सौंपेंगे।
गायों की मौत के बाद बवाल मचने पर कल जिला प्रशासन, पशुपालन विभाग व पुलिस की टीम दोपहर से लेकर शाम तक वहीं पर रही और आसपास के पूरे इलाकों की छानबीन की, जिसमें 67 कंकाल मिले। पशुपालन विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर गुलाबसिंह डावर के मुताबिक इन कंकाल में 40 कंकाल 1 साल पुराने तथा 22 कंकाल डेढ़ से दो माह पुराने तथा पांच कंकाल 1 सप्ताह के अंदर के थे। अधिकारियों के साथ सरपंच राधेश्याम दांगी सहित कई ग्रामीण मौके पर पहुंचे और जेसीबी से गोशाला के पीछे गड्ढे खुदवाकर डेढ़ क्विंटल नमक व एक क्विंटल चूना डालकर अंतिम संस्कार किया गया। पेडमी की अहिल्या माता गोशाला स्थित भूसा गोदाम में लगभग डेढ़ सौ क्विंटल भूसा भरा हुआ है, यानी गायों को पेट भरने के लिए पर्याप्त भूसा वहां मौजूद था। जिन गायों की मौत हुई है वे बीमारी या उम्रदराजी के कारण मरी हैं। जीवदया मंडल ट्रस्ट के प्रकाशचंद्र सोडानी ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि बीमार व बुजुर्गों गायों की देखभाल के लिए डॉक्टरों की टीम समय-समय पर आकर इलाज करती है, लेकिन गायों की उम्र ज्यादा होने के कारण कुछ की मौत हो चुकी है।

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