ब्‍लॉगर

राज्यपाल मलिक की हिम्मत

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के तौर पर सतपाल मलिक ने जो अद्भुत काम किया है, मेरी स्मृति में इतना साहसिक कार्य किसी अन्य राज्यपाल ने भारत में पहले कभी नहीं किया। उन्होंने 300 करोड़ रुपये की रिश्वत को ठोकर मार दी। यदि वे उन दो फाइलों पर अपनी स्वीकृति के दस्तखत भर कर देते तो अनिल अंबानी की एक कंपनी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक नेता उन्हें 300 करोड़ रुपये आसानी से दिलवा देते। जब मलिक ने छह-सात माह पहले इस प्रकरण को सार्वजनिक जिक्र किया तो मुझे एकाएक विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि आरएसएस के कार्यकर्ता इस तरह के अनुचित कार्यों से प्राय: दूर ही रहते हैं। उनके और मेरे कुछ मित्रों ने कहा कि उन्हें पहले कश्मीर से गोवा और फिर वहां से मेघालय भेज दिया गया तो वे बस इस तबादले पर अपनी नाराजी निकाल रहे हैं।

मैं सतपाल मलिक को उनके छात्रकाल से जैसा जानता हूं, मुझे लगता था कि उनके जैसा सत्यनिष्ठ और निर्भीक नेता ऐसे निराधार आरोप कैसे लगा सकता है। सतपाल मलिक की हिम्मत ने अब रंग दिखा दिया। जम्मू-कश्मीर के वर्तमान उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने जो कि खुद मलिक की तरह लोकप्रिय छात्रनेता रहे हैं, दोनों मामले सीबीआई को सौंप दिए हैं। जम्मू-कश्मीर में भ्रष्टाचार के ऐसे मामलों की लंबी परंपरा है। जब शासन मुख्यमंत्रियों के हाथ में होता है तो वे बेलगाम होकर भ्रष्टाचार करते हैं। कश्मीर में भ्रष्टाचार का दूसरा नाम शिष्टाचार है। जिन दो मामलों की जांच चल रही है, उनमें एक जम्मू का कीरू हाइडल पाॅवर प्रोजेक्ट है और दूसरा प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के स्वास्थ्य बीमे से संबंधित है। इन दोनों मामलों में जम्मू-कश्मीर के हजारों करोड़ रुपये खपने थे। पहले तो इनके टेंडर जारी करने में घपले हुए और फिर जब टेंडर जारी किए गए तो उनमें कई शर्तों का पालन नहीं किया गया।

अंबानी की कंपनी को 61 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान भी हो गया। लगभग चार हजार करोड़ रुपये के दूसरे प्रोजेक्ट में भी पता नहीं कितना घपला होता। सरकारी अफसरों ने सारी अनियमितताओं की अनदेखी कर दी और टेंडर भी पास कर दिए। यदि राज्यपाल आपत्ति नहीं करते तो हमेशा की तरह सारा खेल आराम से चलता रहता लेकिन विभागीय जांच से पता चला कि इन दोनों कंपनियों को हरी झंडी दिखाने के काले काम में सरकार के ऊंचे अफसरों की भी मिलीभगत है।

जाहिर है कि उन्होंने भी रिश्वत खाई होगी। उन अफसरों के खिलाफ पुलिस ने रपट लिख ली है और केंद्रीय जांच ब्यूरो ने जांच शुरू कर दी है। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने पर्याप्त सख्ती और मुस्तैदी दिखाई, वरना जम्मू-कश्मीर को भारी नुकसान भुगतना पड़ता। भ्रष्टाचारी व्यवसायी और अफसरों की तो जेबें भरतीं लेकिन कश्मीरी नौजवानों को रोजगार के नाम पर कोरा अंगूठा मिलता। यदि अन्य प्रदेशों के राज्यपाल भी ऐसी ही सतर्कता का परिचय दें तो भ्रष्टाचार पर थोड़ा-बहुत अंकुश जरूर लग सकता है।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

Share:

Next Post

शेयर मूल्यों की तेजी के कारण 250 अरब डॉलर की कंपनी बनी रिलायंस

Fri Apr 29 , 2022
नई दिल्ली। घरेलू शेयर बाजार (domestic stock market) से मिले सपोर्ट के कारण रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (Reliance Industries Limited) का बाजार पूंजीकरण (Market capitalization) आज पहली बार 250 अरब डॉलर के स्तर ($250 billion level for the first time) को पार कर गया। इस तरह अब रिलायंस इंडस्ट्रीज 250 अरब डॉलर के मार्केट कैप वाली […]