भोपाल। केंद्रीय कर्मियों की संपत्ति पर सरकार की पैनी नजर है। कौन सा कर्मचारी, कहां से प्रॉपर्टी खरीद रहा है, उसके लिए पैसे कहां से जुटाए, ये सब जानकारी अपने विभाग को देनी होगी। कई विभागों में देखने को मिल रहा है कि कर्मचारी यह सूचना देने से बच रहे हैं। वे न तो लेनदेन करने से पहले और न ही उसके बाद अपने विभाग को कुछ बताते हैं। जो कर्मचारी लेनदेन की पूर्व सूचना देते हैं, वह आधी-अधूरी होती है। केंद्र सरकार अब सभी विभागों में इस बात को लेकर सख्ती बरत रही है। सभी अधिकारी-कर्मचारी सीसीएस (कंडक्ट) रुल्स 1964 के अनुसार उक्त जानकारी देना सुनिश्चित करें। आचरण नियमों का उल्लंघन करने पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की जा सकती है।
लेन-देन की सूचना देनी होगी
कार्यालय रक्षा लेखा प्रधान नियंत्रक द्वारा 25 नवंबर को इसे लेकर एक पत्र जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि सभी केंद्रीय कर्मचारियों को चल-अचल संपत्ति से संबंधित लेन-देन की सूचना अपने कार्यालय में देनी होगी। यह सूचना देना एवं उसकी पूर्व मंजूरी लेना अनिवार्य है। इस संदर्भ में मुख्य कार्यालय द्वारा जब जांच पड़ताल की गई, तो पाया गया कि सभी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा नियमों का ठीक से पालन नहीं किया जा रहा। कई मामलों में लेनदेन के पूर्व में न कोई सूचना दी जाती है, और न उसके लिए विभाग की मंजूरी ली जाती है, जो सूचना मिलती है, उसमें कई खामियां व त्रुटियां पाई जाती हैं। इससे अनावश्यक पत्र-व्यवहार को बढ़ावा मिलता है।
पूर्व सूचना देना, मंजूरी लेना जरूरी
विभागों से कहा गया है कि लेनदेन से संबंधित जो फार्म संख्या-1 और 2 जारी किए गए हैं, उन्हें ठीक तरह से भरकर विभाग के पास जमा कराया जाए। वे फार्म निर्धारित प्रारूप में होने चाहिए। इनमें अचल संपत्ति व चल संपत्ति के लिए अलग-अलग फार्म हैं। भूखंड, फ्लैट आदि की बुकिंग करना भी लेनदेन माना जाता है, इसलिए यह जानकारी भी विभाग को देनी होगी। चल संपत्ति के संबंध में ट्रांजेक्शन पूर्ण होने की तिथि के एक माह के भीतर ही अधिकारी, कर्मचारी द्वारा उसकी सूचना दी जानी है। अगर ऐसा ट्रांजेक्शन किसी आधिकारिक संबंध रखने वाले व्यक्ति से हो रहा है, तब उसकी कार्यालय में पूर्व सूचना देना, मंजूरी लेना अनिवार्य है।
धनराशि के स्रोत का स्पष्ट ब्यौरा देना जरूरी
अधिकारी-कर्मचारी के लिए ट्रांजेक्शन में लगने वाली धनराशि के स्रोत का स्पष्ट ब्यौरा देना जरूरी है। धन स्रोतों के समर्थन में कई तरह के दस्तावेजों को प्रस्तुत किया जा सकता है। इनमें बैंक ऋण की फोटो कॉपी, जिसमें लोन की राशि एवं उसे वापस चुकाने के निबंधन स्पष्टतया प्रकाशित हों। रिश्तेदार से ऋण के संबंध में अलग प्रावधान किया गया है। रिश्तेदार द्वारा लोन के संबंध में प्राप्त सहमति पत्र, जिसमें यह स्पष्ट हो कि ऋण ब्याज सहित है या ब्याज मुक्त है। उसमें ऋण को चुकाने के निबन्धन एवं रिश्तेदार (जिस से ऋण लिया गया है) की कमाई का स्रोत भी स्पष्ट होना चाहिए। जीवन साथी के परिवार के सदस्यों के योगदान को लेकर कई सूचनाएं देनी होंगी। जैसे रोजगार का स्रोत आदि। स्रोत से जुड़े दस्तावेज जमा कराने होंगे।
प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक
किसी भी स्थिति में गृह निर्माण के लिए दूसरी बार पैसा निकालना सही नहीं है। इसी क्रम में आवेदक (कर्मचारी-अधिकारी) द्वारा एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है, जिसमें धन का एक स्रोत दर्शाया गया हो। यह भी स्पष्ट किया गया हो कि उन्होंने पूर्व में कभी भी मकान-निर्माण (प्लॉट या बने-बनाए फ्लैट की खरीद आदि) के लिए जीपीएफ से पैसा नहीं निकलवाया है। आवेदक के द्वारा प्रमाण पत्र में दिये गए कथन को संबंधित अधिकारी द्वारा उनके रिकॉर्ड जांच के उपरांत ही सत्यापित कर अनुमोदित करना है। यह बिंदु अधिकारियों द्वारा किसी भी आवेदन को अग्रसारित करते समय ध्यान में रखा जाना है। यदि किसी अधिकारी-कर्मचारी के जीवन साथी या घर के किसी अन्य सदस्य द्वारा उनकी निजी राशि (जिसमें स्त्रीधन, उपहार, विरासत आदि शामिल हैं) में से कोई लेनदेन किया जाता है जिसपर खुद अधिकारी-कर्मचारी का कोई अधिकार न हो और न ही जो अधिकारी-कर्मचारी की निधि से किया गया हो, तो ऐसे लेनदेन की सूचना देने की जरुरत नहीं है। अगर कोई अधिकारी-कर्मचारी अपनी किसी अचल या चल संपत्ति (जो कि निर्धारित मौद्रिक सीमा से अधिक हो) को अपने घर के किसी अन्य सदस्य के नाम पर स्थानांतरित करता है, तो उनके द्वारा रूल 18 (2) & (3) के प्रावधानों के अनुसार सक्षम अधिकारी को ऐसे लेनदेन की सूचना देना या उनसे इसकी पूर्व में मंजूरी लेना अनिवार्य है।
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