भोपाल। चंबल नदी के जिन घाटों से रेत का अवैध उत्खनन कर माफिया मालामाल हो गए, उनकी रेत बेचकर सरकार भी हर साल कम से कम 75 करोड़ रुपये कमाएगी। सीमित दायरे में वैध उत्खनन से घडिय़ाल, कछुआ व अन्य जलीय जीव भी बचे रहेंगे, जो माफिया के अवैध कारोबार की भेंट चढ़ जाते थे।
राज्य सरकार के इस प्रस्ताव के बाद भारत सरकार व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने चंबल नदी के छह घाटों को चंबल घडिय़ाल अभयारण्य से बाहर कर दिया है। इनमें मुरैना के राजघाट व बरवासिन क्षेत्र के चार व श्योपुर के बड़ौदिया बिंदी व कुहांजापुर क्षेत्र के दो घाट हैं। इन घाटों से अब तक माफिया अवैध रेत उत्खनन कर रहे थे। इन घाटों की 207.05 हेक्टेयर जमीन से रेत उत्खनन के लिए खनिज विभाग ने पांच मई तक टेंडर बुलाए हैं।
विभाग के अनुसार मुरैना के चार घाटों से 28 लाख 21 हजार 8 घनमीटर रेत बेचकर सरकार को हर साल 70 करोड़ 52 लाख 52 हजार रुपये व श्योपुर के दो घाटों से एक लाख 70 हजार 802 घनमीटर रेत बेचकर हर साल चार करोड़ 27 लाख रुपये से ज्यादा का राजस्व मिलेगा। जिला खनिज अधिकारी एसके निर्मल ने बताया कि रेत खदान बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। प्राथमिक तौर पर आकलन के हिसाब से 75 करोड़ रुपये का अनुमानित राजस्व माना है, टेंडर में इससे अधिक राशि ही सरकार को मिलेगी।
वैध रेत उत्खनन से जलीय जीवों पर खतरा होगा कम
चंबल नदी के घाटों पर कुछ साल पहले तक घडिय़ाल व कछुए अंडे दिया करते थे, लेकिन माफिया ने ज्यादा से ज्यादा रेत निकालने के लिए इन घाटों को बेतरतीब ढंग से खोदना शुरू कर दिया। इस कारण कछुए व घडिय़ालों ने इन क्षेत्रों में अंडे देना बंद कर दिया था। कुछ साल पहले तक राजघाट के आसपास डाल्फिन भी दिखतीं थीं, वे यहां से पलायन कर गई है।
चंबल घडिय़ाल अभयारण्य के डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया कि वैध रेत उत्खनन सीमित दायरे में और शासन व प्रशासन की निगरानी में होगा। ऐसे में चंबल के घाटों पर इंसानी गतिविधियां कम होने से जलीय जीवों को सुरक्षित माहौल मिलेगा। जिन घाटों को घडिय़ाल, कछुए छोड़ चुके थे, वहां फिर लौटने लगेंगे।
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