• img-fluid

    तो क्या सरकार निठल्ले और दलाल किसानों से वार्ता करती रही है ?

  • March 30, 2021


    -निर्मल रानी
    विश्व इतिहास का सबसे बड़ा व सबसे लंबा चलने वाले किसान आंदोलन का दिनों दिन विस्तार होता जा रहा है। सत्ता,सत्ता समर्थक नेताओं व सत्ता के भोंपू बन चुके मीडिया तथा पूंजीवादी विचारधारा के पोषकों द्वारा जिस किसान आंदोलन पर शुरू से ही तरह तरह के आक्षेप लगाकर उसे बदनाम करने तथा उसकी अनदेखी करने की कोशिश की जा रही थी वही आंदोलन अब पंजाब,हरियाणा,उत्तर प्रदेश राजस्थान से आगे निकल कर बिहार बंगाल से लेकर महाराष्ट्र ,कर्नाटक जैसे कई दक्षिण भारतीय राज्यों तक पहुँच चुका है।

    सरकार,उसके सलाहकारों व भाजपाई नेताओं को यह भली भांति समझ लेना चाहिए कि जिस किसान आंदोलन में कई किसान सरकार के कृषि क़ानूनों का विरोध करते हुए आत्म हत्या कर चुके,जिस आंदोलन में अब तक 260 से अधिक किसान धरना देते हुए वीरगति को प्राप्त हो चुके जहां सभी आंदोलनकारी ‘पहले सरकार द्वारा कृषि क़ानून की वापसी -फिर किसानों की घर वापसी’ जैसे अपने संकल्प पर एक स्वर से अडिग नज़र आ रहे हों वह आंदोलन बिना अपनी जायज़ मांगों को पूरा कराये हुए समाप्त होने की संभावना नहीं है।


    किसानों के इसी आंदोलन का असर है कि भले ही सरकार विश्व व्यापर संग्ठन (WTO) और पूंजीपतियों के भारी दबाव के चलती कृषि क़ानून वापस न ले पा रही हो परन्तु इसी आंदोलन के सन्दर्भ में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह तक तथा अनेक केंद्रीय मंत्रियों व भाजपाई मुख्यमंत्रियों द्वारा बार बार यह प्रचारित किया जा रहा है कि सरकार किसानों की शुभचिंतक है,और यह भी कि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिये दिन रात काम कर रही है।

    रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह का पिछले दिनों किसानों के आंदोलन के सन्दर्भ में बी बी सी को दिया गया एक साक्षात्कार यदि आप सुनें तो ऐसा लगेगा कि भाजपा से अधिक किसान हितैषी सरकार तो कोई हो ही नहीं सकती। ‘अन्नदाताओं’ की प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे हैं। उनके प्रति अथाह सहानुभूति जताई जा रही है। मगर कृषि क़ानून की वापसी की किसानों की मांगों का कोई ज़िक्र नहीं। किसानों के प्रति चिंता जताने वाले नेताओं की ओर से दिल्ली के धरना स्थलों पर मिलने अब तक कोई सरकारी प्रतिनिधि नहीं गया। आंदोलन के दौरान मरने व आत्महत्या करने वाले किसानों के प्रति संसद में श्रद्धांजलि देना तो दूर,सरकार की ओर से दो शब्द भी नहीं बोले गए। परन्तु किसानों का अपमान करने में सरकार की ओर से कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी गयी। यहां तक कि किसानों को अपमानित करने का सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है।

    अभी पिछले दिनों एक बार फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खतौली के विधायक विक्रम सैनी ने आंदोलनकारी किसानों को दलाल व निठल्ला बता डाला। ग़ौर तलब है कि खतौली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का वह क्षेत्र है जहाँ भारतीय किसान यूनियन का सबसे अधिक प्रभाव है। इसी क्षेत्र से लगते हुए शामली इलाक़े में किसानों ने केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान का विरोध करते हुए उन्हें वापस भेज दिया था। अब विधायक के किसान को अपमानित करने वाले बयान के बाद किसानों में भारी रोष व्याप्त है। किसान नेता विधायक को आईना दिखाने वाले कई बयान दे रहे हैं।

    इसके पहले भी सत्ता के अनेक ज़िम्मेदार लोगों द्वारा इस आंदोलन व इसमें शामिल किसान नेताओं को बदनाम करने व उन्हें डराने धमकाने के तमाम प्रयास किये गये। यहां तक कि आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों तक के प्रति अमर्यादित व अपमानजनक बातें कही गयीं। ख़ालिस्तानी,पाकिस्तानी,नक्सल,अर्बन नक्सल,शाहीन बाग़ ग्रुप,कांग्रेस व कम्युनिस्ट समर्थित,राजनैतिक,विदेशी फ़ंडिंग से चलने वाला और न जाने क्या क्या कहा गया। यहाँ तक कि एक विधायक स्वयं अपने समर्थक सैकड़ों गुंडों को लेकर आंदोलन पर बैठे किसानों पर चढ़ाई कर बैठा और हिंसा का तांडव करने लगा। इसके विपरीत इन सभी हथकंडों का सामना करने के बावजूद कुल मिलाकर आंदोलनकारी किसान गाँधी जी के सत्य-अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए आंदोलन में शांति व सहनशीलता का पालन कर रहे हैं। परन्तु किसानों की मांगों व कृषि क़ानूनों की बारीकियों से इतर यह सवाल बार बार ज़ेहन में पैदा होता है कि जब सत्ता पक्ष के ज़िम्मेदार लोग किसान आंदोलन पर तरह तरह के टैग लगाकर उसकी उपेक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं।

    इस आंदोलन को देश के किसानों का आंदोलन स्वीकार करने को ही तैयार नहीं हैं फिर आख़िर यही सरकार उन्हीं आंदोलनकारी किसानों के साथ आख़िर बार बार वार्ता क्यों करती रही ? और सरकार व किसान प्रतिनिधियों की दस दौर तक की केवल वार्ता ही नहीं हुई बल्कि इन वार्ताओं के दौरान केंद्र सरकार के प्रतिनिधि कृषि क़ानून में अनेक संशोधन करने व किसानों की वर्तमान कृषि क़ानून वापस लेने संबंधी मांगों के अतिरिक्त उन्हें ख़ुश करने वाली लंबे समय से की जा रही कई मांगों को भी मानने के लिए राज़ी हो गयी।

    ऐसा नहीं लगता कि किसानों को निठल्ला,दलाल कहने और उन्हें अपमानित करने वाले बयान देने के लिए सरकार या पार्टी की ओर से कहा जाता हो। भारतीय राजनीति में विवादित बोलों के द्वारा सुर्ख़ियां बटोरने का एक चलन सा बन चुका है। इसी ओछी शोहरत हासिल करने का शिकार कोई भी मंत्री, सांसद,विधायक या अन्य कोई भी नेता हो सकता है। परन्तु विरोधाभासी बात तो यह है कि जब प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री जैसे बड़े ज़िम्मेदार किसानों के प्रति पूरी गंभीरता के साथ हमदर्दी का इज़हार कर रहे हों ,जब इन्हीं आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों के साथ बार बार सरकार मेज़ पर बैठ रही हो और उनकी मांगोंके प्रति गंभीर हो फिर आख़िर किसी विधायक को इन्हीं किसानों को दलाल व निठल्ला कहने का क्या अर्थ है ?

    यदि उसने या उस जैसे अन्य कई मानसिक रोग से पीड़ित प्रतीत हो रहे नेताओं ने किसानों को बार बार अपमानित किये जाने वाले बयान दिए हों तो भाजपा है कमान ऐसे बड़बोले नेताओं के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं करती ? और यदि कार्रवाई नहीं करती फिर तो इसका सीधा सा अर्थ है कि सत्ता व पार्टी का ऐसे तत्वों को मूक समर्थन हासिल है। ज़ाहिर है फिर तो यह भी ज़रूर पूछा जायेगा कि यदि आंदोलनकारी किसान निठल्ला और दलाल है तो क्या सरकार अब तक निठल्ले और दलाल किसानों से ही वार्ता करती रही है ?

    Share:

    इंदौर में अलग-अलग सडक़ हादसे, 3 की जान गई

    Tue Mar 30 , 2021
      इंदौर। अलग-अलग जगह हुए सडक़ हादसों में एक नाबालिग सहित दो युवकों की मौत हो गई। भंवरकुआं पुलिस (Bhanwarkuan Police) ने बताया कि पालदा (Palada) का रहने वाला 16 वर्षीय नितिन पिता सतेंद्र कल भंवरकुआं की तरफ से बाइक पर सवार होकर एक साथी के साथ घर जा रहा था। तीन इमली ब्रिज (Tin […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    मंगलवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved