भोपाल। मध्यप्रदेश शासन ने हाई कोर्ट में ओबीसी का डाटा पेश कर दिया है। कोर्ट के निर्देश पर राज्य में ओबीसी का ये डाटा प्रस्तुत किया गया है। अब इसे रिकार्ड पर लेकर कोर्ट द्वारा दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। डेटा में प्रदेश में सरकारी नौकरियों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बताया गया है। इसके अनुसार प्रदेश में सरकार में कुल स्वीकृत पदों की संख्या 321944 है। इनमें से ओबीसी वर्ग के मात्र 43978 पद हैं।
मध्य प्रदेश सरकार ने शुक्रवार को हाईकोर्ट में ओबीसी का डाटा पेश कर दिया है। सरकार ने बताया कि शासकीय सेवाओं में ओबीसी का 13.66 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है। कुल स्वीकृत पद 3 लाख 21 हजार 944 में से ओबीसी के लिए 43,978 पद यानी 13.66 प्रतिशत आरक्षित है। प्रदेश में ओबीसी की 51 प्रतिशत आबादी है। गौरतलब है कि तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने जनसंख्या का डेटा पेश किया था। इसके बाद शिवराज सरकार ने प्रतिनिधित्व का डेटा पेश किया है। अभी पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश होना बाकी है। मंडल कमीशन की अनुशंसा पर मध्य प्रदेश में 1994 से पहली बार ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। लेकिन तत्कालीन कमलनाथ ने कांग्रेस सरकार में इसे 27 प्रतिशत कर दिया था। जिसके बाद हाईकोर्ट में कई याचिकाएं लगाई गई है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में ओबीसी आरक्षण से संबंधित कई मामले विचाराधीन हैं। 16 अगस्त 2022 की तारीख को फाइनल सुनवाई के लिए नियत की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की मंशा के अनुरूप ओबीसी आयोग का गठन कर क्वांटीफेविल डाटा कलेक्ट किए जाने के सुझाव पर अमल की प्रक्रिया चालू की गई थी। प्रदेश में शासकीय सेवाओं में ओबीसी के प्रतिनिधित्व के डाटा कलेक्ट कर न्यायालय में प्रस्तुत करने का सुझाव भी दिया गया था। इसके अनुसार प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग ने डेटा का संग्रह किया है। ये डेटा मध्यप्रदेश शासन की ओर से हाई कोर्ट में प्रस्तुत किए जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट अभी हाईकोर्ट में प्रस्तुत की जानी है।
ओबीसी संयुक्त मोर्चा ने जताई आपत्ति
इधर सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश किए गए आंकड़ों को लेकर ओओबीसी संयुक्त मोर्चा ने आपत्ति जताई है। ओबीसी संयुक्त मोर्चा ने कहा कि कर्मचारियों की संख्या गलत बताई गई है। प्रदेश में साढ़े छह लाख से अधिक सरकारीकर्मी है। ओबीसी वर्ग संयुक्त मोर्चा के प्रदेश संरक्षक भुवनेश पटेल ने कहा कि रिपोर्ट में निगम मंडल, निकाय कर्मचारियों को नहीं जोड़ा गया है। उन्होंने मांग की है कि नए सिरे से ओबीसी कर्मचारियों की गणना हो। साथ ही बिना आरक्षण सरकारी सेवा में पहुंचे ओबीसी कर्मचारियों को अलग रखा जाए। रिपोर्ट में ऐसे कर्मचारियों को भी शामिल कर लिया गया है। वहीं स्पीक संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. केएस तोमर ने कहा कि आरक्षण के नियमों में भेदभाव है। कुछ वर्ग की जितनी आबादी उतना आरक्षण, जबकि दूसरे वर्ग को आबादी से कम आरक्षण मिल रहा है। इस प्रक्रिया से कर्मचारियों को लाभ नहीं मिलेगा। नए सिरे से आरक्षण प्रक्रिया हो पूरी।
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