भोपाल। टाइगर कॉरिडोर की तर्ज पर प्रदेश में अब हाथी कॉरिडोर बनाया जाएगा। प्रदेश में लगभग 14 साल से जंगली हाथियों की आवाजाही हो रही है। पिछले पांच साल से हालात ये हैं कि करीब 45-50 हाथियों का समूह स्थाई डेरा जमाए हुए हैं। इससे हाथी-मानव संघर्ष बढ़ रहा है। ढाई साल में 15 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। जंगली हाथियों का झुंड छत्तीसगढ़ के कोरिया, बिलासपुर, मुंगेली और कबीरधाम की तरफ से मध्य प्रदेश में आता है। ये झुंड सीधी, सिंगरौली, डिंडोरी, अनूपपुर, शहडोल, मंडला, उमरिया होते हुए बालाघाट पहुंचता है। इसके बाद नरसिंहपुर, नर्मदापुरम, छिंदवाड़ा होते हुए कुछ हाथी लौट जाते हैं। पिछले चार-पांच साल से देखा जा रहा है कि हाथी प्रदेश की उत्तरी सीमा के जिलों को स्थाई ठिकाना बनाते हुए यहीं रहने लगे हैं। अगस्त-सितंबर से फिर हाथियों का झुंड प्रदेश मेें आने लगता है। पिछले दो साल से करीब 100 से ज्यादा हाथियों की आवाजाही शुरू हुई है।
…इसलिए रुके यहीं
हाथियों की पसंद घास, बांस, गन्ना व छोटी झाडिय़ां हैं। उन्हें महुआ बहुत पसंद है। इन क्षेत्रों में महुआ के जंगल हैं। चारे-पानी की उपलब्धता व व्यवधान कम होने से ये इन जिलों के जंगलों में आते हैं। अब कॉरिडोर में पडऩे वाले गांवों तक हाथी न पहुंचें, इसके लिए चुनिंदा स्थानों पर हाथीरोधक खाई खोदी जाएगी। सोलर फेंसिंग होगी ताकि करंट उन्हें दूर रखे। गांव में हाथी मित्र दल गठित होंगे।
हाथियों को बसाने की तैयारी में सरकार
मध्यप्रदेश में हाथी पहले भी आते रहे हैं, लेकिन 2008 से यहां डेरा डाल लिया। वर्तमान में बांधवगढ़, कान्हा और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व में 52 हाथी हैं। सरकार ने अब हाथियों को प्रदेश में बसाने की तैयारी की है।
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