अंतिम समय में नेपानगर में दो बड़े गुट एक होने का फायदा मिलेगा भाजपा को
इन्दौर, संजीव मालवीय। निमाड़ की नेपानगर विधानसभा में एक मिथक पिछले 43 सालों से चला आ रहा है। यहां से जो भी विधायक जीता है, उसकी प्रदेश में सरकार बनी है और अब सबकी निगाहें इस सीट पर हैं कि यहां से कौन जितेगा?
मालवा-निमाड़ की सातों सीटों में से एक नेपानगर की चर्चा भी राजनीतिक हलकों में चल रही है। 2018 के चुनाव में यहां से कांग्रेस की सुमित्रा कास्डेकर ने भाजपा की मंजु दादू को हराया था और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन बाद में कास्डेकर भाजपा में आ गईं और उपचुनाव लड़ा है। अब कास्डेकर जीतती हैं या कांग्रेस के रामकिशन पटेल। इस सीट को लेकर जो मिथक है वो पिछले 43 साल से कायम है और कौन यहां से जीतेगा, जिसकी सरकार बनेगी इस पर सबकी निगाहें हैं। 1977 में इस विधानसभा सीट से भाजपा के बृजमोहन मिश्रा जीते और प्रदेश में वीरेन्द्रकुमार सकलेचा की सरकार बनी। 1980, 1985 और 1993 के चुनाव में कांग्रेस के तनवंतसिंह कीर यहां से विजयी हुए और तीनों बाद कांग्रेस की सरकार बनी, जिसमें क्रमश: अर्जुनसिंह, मोतीलाल वोरा और दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने। 1990 में फिर यहां बृजमोहन मिश्रा जीते और सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने। 1998 के चुनाव में कांग्रेस के रघुनाथ चौधरी जीते और उस समय दिग्गी ही मुख्यमंत्री बने। 2003 में अर्चना चिटनीस जीतीं तो उमा भारती, 2008 और 2013 में राजेन्द्र दादू जीते तो शिवराजसिंह चौहान ही मुख्यमंत्री रहे। दादू के निधन के बाद उनकी बेटी मंजु दादू को चुनाव लड़ाया गया और 2016 में वे उपचुनाव जीतीं, तब भी प्रदेश में शिवराज सरकार रही। 2018 के चुनाव में यहां कांग्रेस की सुमित्रा कास्डेकर ने जीत हासिल की तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार और मुख्यमंत्री कमलनाथ बने। अभी तक तो यह मिथक चल रहा है और इस बार देखना है कि ये टूटता है या नहीं। हालांकि भाजपाइयों का दावा है कि ये सीट भाजपा ही जीतेगी और शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री बने रहेंगे। हालांकि नेपानगर में चुनाव की शुरुआत में नंदकुमारसिंह चौहान और अर्चना चिटनीस के साथ पूर्व विधायक मंजु दादू की गुटबाजी भाजपा के लिए मुसीबत बनी थी, लेकिन आखिरी सप्ताह में यहां संगठन की रणनीति ने गुटबाजी को दूर कर दिया और अब चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आने की बात कही जा रही है।
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