इन्दौर। विधायक कैलाश विजयवर्गीय के मंत्री बनने के बाद अब उन्हें कोई बड़ा विभाग मिलने की बात कही जा रही है, लेकिन एक बात तो तय है कि विजयवर्गीय के पहले विधायक बनने और उसके बाद मंत्री बनने से प्रशासनिक मशीनरी पर कसावट आएगी। नहीं तो जिस तरह से स्थानीय अधिकारियों का ढर्रा पिछले दो से तीन सालों में देखने को मिल रहा था, उससे पार्षदों तक को तवज्जो नहीं मिल रही थी। एक-एक काम के लिए पार्षदों को अधिकारियों के आगे-पीछे घूमना पड़ता था, लेकिन अब अधिकारी खुद पार्षदों के कार्यालय पर जाकर समस्याएं पूछ रहे हैं और उनका प्राथमिकता के तौर पर निराकरण करवा रहे हैं।
विजयवर्गीय का रवैया प्रशासनिक मशीनरी के खिलाफ शुरू से ही सख्त रहा है। आम लोगों के काम न होने के चलते कई बार उन्होंने अफसरों को सरेआम डांटा भी और काम को पूरा करने के आदेश दिए। जब 2003 में उमा भारती की सरकार प्रदेश में आई थी, तब विजयवर्गीय शेडो सीएम के रूप में माने जाने लगे थे। उस समय इंदौर की प्रशासनिक मशीनरी भी उनके एक आदेश पर काम करने के लिए तैयार हो जाती थी, लेकिन बीते कुछ सालों में स्थानीय मशीनरी, विशेष तौर पर नगर निगम पर जनप्रतिनिधियों की पकड़ ढीली होती गई और लोगों से संबंधित कामों में लापरवाही नजर आने लगी। इसी को लेकर कई बार विभागीय बैठकों में खुले तौर पर जनप्रतिनिधियों और पार्षदों ने अधिकारियों के समक्ष नाराजगी जताई, लेकिन अधिकारियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उसके बाद जब निगम में परिषद का कार्यकाल समाप्त हुआ तो अधिकारियों यहां तक कि निचले स्तर तक के अधिकारियों के हौंसले और बढ़ गए। हालांकि अब सरकार बनने के बाद अधिकारी सूत-सावल में नजर आने लगे हैं। कई अधिकारी तो पार्षदों के कार्यालयों पर जाकर उनसे समस्याएं पूछ रहे हैं और बचे हुए काम करवाने में भिड़ गए हैं। डेढ़ साल के कार्यकाल के बाद जिस तरह से महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने हाल ही में मैदान पकड़ा है, उससे आम लोग भी खुश हैं। हालांकि विजयवर्गीय को विभाग मिलने के बाद और कड़ी प्रशासनिक कसावट के आसार नजर आ रहे हैं।
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