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सरकार तो सरकार… जनता कौन सी समझदार…

April 30, 2021

 


यह देश भी बड़ा अजीब हैं… सोते हैं तो सब सोते हैं… और रोते हैं तो सारे रोते हैं… जब देश में सरकार वैक्सीनेशन के लिए योजना बना रही थी… बुजुर्गों को पहले लगा रही हैं थी… उम्र के मानकों के हिसाब से हिफाजत की तारीखें बता रही थी… प्रशासन हाथ जोड़ रहा था… तब कोई नहीं आ रहा था… वैक्सीनें सड़ती जा रही थी… नियमों के बंधन के चलते दूसरों को भी लग नहीं पा रही थी… विज्ञापन दिए जा रहे थे… वैक्सीनेशन महोत्सव आयोजित किए जा रहे थे… तब सारे के सारे होशियार वैक्सीन पर सवाल उठाते हुए बवाल बचा रहे थे… देखो और चलो की नीति अपना रहे थे… जिसे लगे उससे सवाल पूछ-पूछकर लगाए या न लगाएं जैसे फैसलों में वक्त गवां रहे थे… नेताओं से लेकर जनप्रतिनिधि भी कोई रूचि नहीं दिखा रहे थे… वैक्सीन उत्पादन करने वाली कंपनियां भी निराश थी… उत्पादन सीमित कर दिया गया… जो मांगे उसे दिया गया… कीमतों को लेकर मोल भाव होने लगे… सरकारी तंत्र सस्ती वैक्सीन के लिए हाथ पैर मारने लगे… मौत का हराने और देश को बचाने का उपक्रम जहां ठंडा पड़ा था वहीं लापरवाही का आलम यह था कि पूरा देश भीड़ से ठसाठस भरा था… रात की पार्टियां… होटलों की महफिलें… वार-त्यौहार के उत्सव… धार्मिक यात्राएं… जिससे जो बन पड़ा उसने वो कोरोना को चिढ़ाते-बुलाते और दो-दो हाथ करने के लिए न्यौतें भिजवाने के लिए किया… लोगों की बेफ्रिकी से बेसुध सरकार ने भी खुद को जहां बेपरवाह किया… वहीं देश को चुनाव की आग में झोंककर सारे नेताओं और महकमें को सत्ता की कशमकश में झोंक दिया… फिर जो हुआ वो तूफान था… सुनामी थी.. न समझ पाने वाली हैरानी थी कोई तैयार नहीं था… कोरोना से लडऩे के लिए कोई हथियार नहीं था… जब मौतों की कतारें लगी… शमशानों में जगह नहीं मिली… हर दूसरा मिलने वाला बिछडऩे लगा… पूरा देश त्राही-त्राही करने लगा… तब सरकारी तंत्र लाशों से जिंदगियों की तलाश में जुटा और कोरोना से लडऩे के साथ बचने के लिए एक बार फिर वैक्सीनेशन का ऐलान किया गया… अब लोग कतार लगा रहे हैं… बिना बुलाए चले आ रहे हैं… युवाओं के क्रम में अधेड़ और बुजुर्ग घुसे जा रहे हैं… जब बुलाया था तब कोई नहीं आया था… अब उंगलियां उठा रहे हैं… वैक्सीन के लिए मरे जा रहे हैं… सरकार तो सरकार यह सारे पढ़े-लिखे जिंदगी के अनुभवी, उम्रदराज कौन से समझदार थे, जिन्होंने खुद को तो खुद, खुद के परिवार के संकट में डाला… एक महामारी से लडऩे में देश को कमजोर बना डाला… अब पता नहीं इंतजार की यह कतार कितनी लंबी होगी… पता नहीं कब महफूज करने वाली वैक्सीन सभी को लगेगी… पता नहीं उत्पादन की गति कितनी बढ़ेगी… लेकिन यह सच है कि वक्त रहते हम सब सोते हैं और वक्त निकलने पर जी भरकर रोते और कोसते हैं…

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