– डॉ. प्रभात ओझा
बिहार में सरकार गठन की कवायद के बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर पटना भेजा गया, तभी राजनीतिक समीक्षकों को समझ लेना चाहिए था कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व बिहार के बारे में कुछ नया करने जा रहा है। बिहार में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार नहीं बनी और कभी पार्टी नेतृत्व को पर्यवेक्षक भेजने की भी जरूरत नहीं पड़ी। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का ही पार्टी नेतृत्व पर प्रभाव है और आमतौर पर उनके फैसले चौंकाने वाले हुआ करते हैं।
पटना में भी यही हुआ। शुरू में भारतीय जनता पार्टी के राज्यस्तरीय कुछ नेता जरूर उत्साह में थे कि अब विधानसभा में जेडीयू से बड़ी पार्टी बनने के बाद भाजपा का ही सीएम होना चहिए। पहले ही नीतीश कुमार को नेता घोषित कर चुकी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए इसमें बदलाव कहीं से भी मुनासिब नहीं होता। पीएम नरेंद्र मोदी ने जल्द समझा दिया कि बिहार के कार्यकर्ता नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही ‘संकल्प सिद्धि’ करेंगे। मोदी का यह कथन चौंकाने वाला नहीं था, पर पटना में नीतीश कुमार को एनडीए विधायकों की संयुक्त बैठक में नेता चुने जाने के बाद दूसरी खबर चौंकाने वाली बन गई। भाजपा विधायकों की बैठक में तारकिशोर प्रसाद और रेनू देवी को क्रमशः विधायक दल का नेता और उपनेता निर्वाचित किया गया।
भाजपा विधायकों में ही नहीं, तेज घटनाक्रम पर नजर रखने वालों में भी निवर्तमान डिप्टी सीएम सुशील मोदी के भविष्य के बारे में ऊहापोह बरकार था। हालांकि ऐसे सभी लोगों को विधायक दल का नया नेता और उपनेता चुने जाने के बाद ही इसके निहितार्थ को समझ लेना चाहिए था। मुख्यमंत्री का पद साथी दल को देने के बाद दूसरी बड़ी पार्टी का नेता मंत्रिपरिषद में गया तो कोई बड़ा पद ही हासिल करेगा। आखिर सुशील मोदी के ट्वीट से ऊहापोह में रहे लोगों का भ्रम दूर हुआ। उनके ट्वीट के अंत में है कि करीब 40 साल तक पार्टी और संघ ने उन्हें बहुत कुछ दिया। पार्टी में कार्यकर्ता का पद उनसे नहीं छीना जा सकता।
अभी चर्चा होती रहेगी कि सुशील मोदी का भविष्य क्या है। लगता है इसपर विचार का अभी सही वक्त नहीं है। सुशील मोदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं। सुशील मोदी को आगे नहीं कर बड़े मोदी ने साफ कर दिया है कि सबकुछ नीतीश कुमार के हिसाब से नहीं होगा। भाजपा नेतृत्व चौंकाने वाले फैसले करता ही रहता है और अभी बहुत कुछ तय होना है। फिलहाल सुशील मोदी को कहीं से भी मंत्रिपरिषद में शामिल करने की संभावना खत्म हो गई है।
अब कटिहार के तारकिशोर प्रसाद और बेतिया की रेनू देवी के साथ पूर्व विधायक और राममंदिर ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल के नाम उभरे हैं, तो इसके भी मायने हैं। तारकिशोर प्रसाद सुशील मोदी के जातीय समुदाय से ही आते हैं, जबकि रेनू देबी दलित वर्ग से हैं। दलित समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने रामजन्म भूमि निर्माण के लिए पहली ईंट रखी थी। हालांकि उन्होंने डिप्टी सीएम पद पर अपनी चर्चा को सिर्फ कयास बताया है। बहरहाल, पिछड़े और अति दलित के साथ सामाजिक सामंजस्य साधने के लिए भाजपा में मंगल पाण्डेय भी हैं।
जहां तक उपमुख्यमंत्री पद की बात है, भाजपा ने चौंकाने वाला निर्णय कर लिया है। रक्षा मंत्री से सवाल होने पर जवाब भी यही था कि फैसले में देर नहीं हुई है। फैसले की जानकारी समय पर दे दी जायेगी। वह समय भी कल 16 नवंबर ही है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका `यथावत’ के समन्वय सम्पादक हैं।)
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