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    नदियों को बचाने में सरकार व जनता की भागीदारी जरूरी

    April 14, 2021

    डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

    भारत में राष्ट्रीय जल दिवस 14 अप्रैल तो विश्व संरक्षण दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। इस आलोक में देखें तो भारत एक जल समृद्ध देश है, किंतु नदियों के संरक्षण-संवर्धन एवं उनके अविरल प्रवाह को बनाए रखने हेतु कोई नीति-योजना न होने के कारण  नदियां, वैज्ञानिक प्रगति, अंधाधुंध शहरीकरण एवं तथाकथित राष्ट्रीय विकास के नाम पर किये जा रहे कार्यों से प्रभावित होकर निरंतर प्रदूषित होती जा रही हैं। देश की बड़ी- बड़ी नदियां तो किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व बचाए हुए हैं किंतु उनको जल की आपूर्ति करने वाली करीब 4 हजार, 500 से अधिक छोटी-छोटी नदियां सूखकर विलुप्त हो गई हैं।

    आज जल प्रबंधन राष्ट्र एवं सरकार के समक्ष एक बड़ी समस्या है, जिसके सुनियोजित उपक्रम से देश में उपलब्ध जल की अगाध राशि का सुचारू उपयोग कर जल संकट से निदान पाया जा सकता है। डब्ल्यू आर आई के मुताबिक, जल संकट के मामले में भारत विश्व में 13वें स्थान पर है। भारत के लिए इस मोर्चे पर चुनौती बड़ी है, क्योंकि उसकी आबादी जल संकट का सामना कर रहे अन्य समस्याग्रस्त 16 देशों से 3 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के उत्तरी भाग में जल संकट भूजल स्तर के अत्यंत नीचे चले जाने के कारण अत्यंत गंभीर है। यहां जल संकट ‘डे जीरो’ के कगार पर है। इस स्थिति में नलों का पानी भी सूख जाता है। विगत दिनों बंगलौर एवं चेन्नई में यह स्थिति उत्पन्न हो गयी थी।

    कम हो रही वर्षा तथा निरन्तर गिरते भूगर्भ जलस्तर को देखते हुये निकट भविष्य में सम्पूर्ण भारत, विशेष रूप से उत्तर भारत में पानी की अत्यन्त कमी अतिशीघ्र होने वाली है, जिसे भांपकर ही प्रधानमंत्री मोदी ने द्वितीय बार शपथ ग्रहण करने के पश्चात अपनी पहली ‘मन की बात’ में जल समस्या से निजात पाने के लिए जल संरक्षण हेतु जनान्दोलन चलाने की बात कही। आज देश के अनेक भागों में जल की अनुपलब्धता के कारण आंदोलन और संघर्ष हो रहे हैं। देश के लगभग 70% घरों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। लगभग 4 करोड़ लोग प्रतिवर्ष प्रदूषित पानी पीने से बीमार होते हैं तथा लगभग 6 करोड़ लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने के लिए विवश हैं।

    देश में प्रतिवर्ष लगभग 4000 अरब घनमीटर पानी वर्षा के जल के रूप में प्राप्त होता है किंतु उसका लगभग 8% पानी ही हम संरक्षित कर पाते हैं, शेष पानी नदियों, नालों के माध्यम से बहकर समुद्र में चला जाता है। हमारी सांस्कृतिक परंपरा में वर्षा के जल को संरक्षित करने पर विशेष ध्यान दिया गया था, जिसके चलते स्थान स्थान पर पोखर, तालाब, बावड़ी, कुआं आदि निर्मित कराए जाते थे, जिनमें वर्षा का जल एकत्र होता था तथा वह वर्ष भर जीव-जंतुओं सहित मनुष्यों के लिए भी उपलब्ध होता था। अब वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर इन्हें संरक्षण न दिए जाने के कारण अबतक लगभग 4 हजार, 500 नदियां तथा 20 हजार तालाब झील आदि सूख गई हैं। भारत की कृषि पूर्णतया वर्षा जल पर निर्भर है। वर्षा पर्याप्त होने पर सिंचाई के अन्य साधन सुलभ हो जाते हैं किंतु वर्षा न होने पर सभी साधन जवाब दे देते हैं और कृषि सूखे का शिकार हो जाती है। चीनी उत्पादक महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश के किसान निरंतर गन्ने की खेती पर बल दे रहे हैं और सरकार भी गन्ना उत्पादन के लिए उन्हें प्रोत्साहित कर रही है। धान की खेती के लिए पंजाब, छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश इत्यादि अनेक राज्य धान की फसल का क्षेत्रफल निरंतर बढ़ाते जा रहे हैं किंतु उसके लिए पानी प्राप्त न होने के कारण पानी भूगर्भ से निकाल कर खेतों को सींचा जा रहा है। इससे भी भूगर्भ जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है।

    स्पष्ट है कि जल प्रदूषण के अनेक स्रोत हैं जो सामूहिक रूप से जल को प्रदूषित करते हैं। इनमें प्रमुख हैं शहरीकरण के परिणाम घरेलू सीवेज, अनियंत्रित तथा हरित क्रांति के परिणामस्वरूप पानी पर अवलंबित खेती एवं औद्योगिक अपशिष्ट तथा कृषि कार्यों में अत्यधिक प्रयोग में लाए गए कीटनाशक, जल में घुल मिलकर भूगर्भ के जल को अत्यधिक मात्रा में प्रदूषित कर रहे हैं। इन स्थितियों से निजात पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान यह घोषणा की थी कि पुनः सत्ता में आने पर खेती को पानी तथा हर घर को सन 2024 तक नल  के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध कराया जायेगा। इसे दृष्टि में रखते हुए हर खेत को पानी के साथ हर घर को भी नल के माध्यम से पेयजल उपलब्ध कराने तथा सूख रही नदियों को पुनर्जीवित करने, नदियों में विद्यमान प्रदूषण को समाप्त करने तथा स्वच्छ जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जन सहयोग के साथ सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत जल संरक्षण योजना को मूर्त रूप देने का कार्य विचाराधीन है। संभव है वह निकट भविष्य में मूर्त रूप ले।

    पानी की गंभीर समस्या को देखते हुए आज जल संरक्षण हेतु जन आंदोलन की प्रबल आवश्यकता है क्योंकि पानी की कमी से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों की सीमा निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री का मानना है कि देशवासियों  के सामर्थ्य, सहयोग और संकल्प से  मौजूदा जल संकट का समाधान प्राप्त कर लिया जाएगा, किंतु जल संरक्षण के तौर-तरीकों को प्रयोग में लाने के लिए सरकारी तंत्र की भूमिका बहुत आशाजनक नहीं है। यद्यपि सरकार ने विभिन्न राज्यों में जल संरक्षण संबंधी नियम कानून बना रखे हैं लेकिन व्यवहार में वे नियम कानून कागजों तक ही सीमित हैं। उधर, देश के अनेक बड़े हिस्सों में जनता चाहकर भी इस कार्य में हिस्सेदार नहीं बन पाती। फलस्वरूप बारिश का अधिकांश जल बहकर समुद्र में चला जाता है। आज आवश्यकता है कि जल संरक्षण हेतु जन आंदोलन का रूप देने के लिए न केवल सरकार सक्रिय हो बल्कि राज्य सरकारों के साथ उनकी विभिन्न एजेंसियों को भी सक्रिय करें, जिससे न केवल बारिश के जल को तो संरक्षित किया ही जा सके अपितु पानी की बर्बादी रोकी जा सके।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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