नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि किसी पुलिस अधीक्षक (एसपी) (Superintendent of Police (SP) या सुरक्षा बल के कमांडेंट (Commandant of Security Force) को ठोस आधार के बगैर उसकी निगरानी और नियंत्रण वाले क्षेत्र के हर अपराध या भूल के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यह कर्तव्य के निर्वहन के सिद्धांत का चरम व बेतुका विस्तार होगा। जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने राष्ट्रपति पदक से सम्मानित बीएसएफ कमांडेंट बीएस हरि (82) (BSF Commandant BS Hari) को दी गई 10 साल की सजा को रद्द (Cancellation of 10 year sentence) कर दिया। उन्हें यह सजा फिरोजपुर सीमा पर एसिटिक एनहाइड्राइड (प्रतिबंधित सामग्री) की बरामदगी के मामले में हुई थी।
पीठ ने 12 सप्ताह के भीतर उन्हें सेवानिवृत्ति से अब तक के पूर्ण लाभों का भुगतान करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि यह नहीं समझा जाना चाहिए कि अपीलकर्ता, कमांडेंट होने के नाते, इस तरह की घटना को रोकने के लिए कोई जिम्मेदारी या कर्तव्य नहीं रखता, लेकिन उसे एक सक्रिय भागीदार या ऐसे अपराध के सूत्रधार के रूप में लेबल करने की हद तक फैलाना पूरी तरह से अनुचित है।
आनुपातिकता का सिद्धांत अहम
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, हम इस बात से सचेत हैं कि भारत के सशस्त्र बलों (अर्धसैनिक बलों समेत) में अत्यधिक अनुशासन, कमांड की एकता अनिवार्य हैं। आनुपातिकता का सिद्धांत अब भी मायने रखता है।
एक व्यक्ति के बयान पर दोषसिद्धि नहीं
पीठ ने कहा, 1995 में हुई घटना में एक सूबेदार के बयान को छोड़कर अपीलकर्ता के खिलाफ कोई सामग्री नहीं थी। अकेले एक व्यक्ति के बयान से, इस मामले में उसकी दोषसिद्धि नहीं होनी चाहिए।
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