भारत के कुछ सबसे बड़े स्टार्ट-अप्स और गूगल के बीच, गूगल प्ले-स्टोर के नियमों में हुए हालिया बदलावों को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है और जानकारों के अनुसार, भारत के इंटरनेट उद्योग पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है।
गूगल के नए नियमों के अनुसार, ऐप डेवलपर्स के लिए इन-ऐप्स की ख़रीदारी कंपनी के अपने बिलिंग सिस्टम से करना अनिवार्य कर दिया गया है. इससे भारतीय स्टार्ट-अप्स के संस्थापकों में काफ़ी नाराज़गी है जिनका आरोप है कि ‘गूगल कंपनी अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग कर रही है.’
कुछ न्यूज़ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ‘भारतीय स्टार्ट-अप्स में उस 30 प्रतिशत कमीशन को लेकर भी चिंता है जो गूगल लेने की बात करता है.’
कई भारतीय स्टार्ट-एप्स का कहना है कि ‘जो शुल्क तय किया गया है, वो बहुत अधिक है’ और ये लोग गूगल प्ले-स्टोर को बाय-पास करने यानी उसका एक विकल्प तैयार करने की बात कर रहे हैं।
भारत के एंटी-ट्रस्ट नियामक की टिप्पणी से भी भारतीय स्टार्ट-अप्स का हौसला बढ़ा है जिसने नवंबर में कहा कि ‘वो भारतीय बाज़ार में अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने के लिए गूगल की जाँच करेगा.’
हालांकि, कंपनी गूगल इन आरोपों को सही नहीं मानती. कंपनी का कहना है कि वो अग्रणी भारतीय स्टार्ट-अप्स के साथ अपनी चिंताओं को साझा करने के लिए तैयार हैं. इसके लिए कंपनी ने कुछ सत्र आयोजित करने की बात कही है।
एक वैकल्पिक ऐप-स्टोर बनाने के बारे में जानकारी फ़िलहाल स्पष्ट नहीं है, मगर पर्याप्त कंपनियाँ इसमें रुचि लेती हैं, तो भारत सरकार इस पर गंभीरता से विचार करना चाहती है।
लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि एक वैकल्पिक ऐप-स्टोर बनाना आसान नहीं होगा और अगर इसमें सरकार को शामिल किया गया तो इससे भारतीय फ़र्म्स और उपभोक्ताओं, दोनों की परेशानी बढ़ेगी।
राष्ट्रवाद या अवसरवाद?
गूगल पर लंबे वक़्त से भारत में छोटे प्रतिद्वंद्वियों की बाँह मरोड़ने का आरोप लगता रहा है. यह एक ऐसा आरोप है जिससे गूगल हमेशा इनकार करता है।
लेकिन भारतीय स्टार्ट-अप्स अब खुलकर कह रहे हैं कि ऐप-स्टोर के नियमों को बदलकर गूगल ने भारतीय कंपनियों को एक कोने में धकेल दिया है।
भारत में बिकने वाले अधिकांश स्मार्टफ़ोन गूगल के एंड्रॉय्ड प्लेटफ़ॉर्म पर चलते हैं. ऐपल भी इसी तरह की कटौती करता है, लेकिन गूगल की तुलना में भारत के स्मार्टफ़ोन बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी बहुत कम है।
कुछ 150 उद्यमियों ने गूगल की नई नीति का विरोध करने के लिए एक गठबंधन तैयार किया है.
भारत के सबसे मूल्यवान स्टार्ट-अप पेटीएम, ऑनलाइन टिकट बुकिंग सेवा मेक माय ट्रिप और ऑनलाइन मैचमेकिंग सेवा भारत मैट्रिमोनी जैसी कुछ कंपनियाँ इस समूह का हिस्सा हैं।
वैश्विक स्तर पर भी सॉफ़्टवेयर डेवलपर बड़ी टेक कंपनियों द्वारा एकत्र किये जाने वाले उच्च कमीशन के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं।
सितंबर में, म्यूज़िक स्ट्रीमिंग ऐप स्पॉटिफ़ाय, गेमिंग कंपनी एपिक गेम्स और अन्य कंपनियों ने एक नॉन-प्रॉफ़िट गठबंधन की शुरुआत की, ताकि ऐपल और गूगल द्वारा बदले गए ऐप स्टोर के नियमों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई जा सके।
भारत मैट्रिमोनी के संस्थापक मुरुगावल जानकीरमन ने कहा कि “गूगल ने भारतीय इंटरनेट पारिस्थितिकी-तंत्र को उपनिवेशित किया है, ऑपरेटिंग सिस्टम से लेकर ऐप तक. और अब हम सब गूगल की दया पर हैं.”
शायद गूगल के सबसे कड़े आलोचक विजय शेखर शर्मा हैं जिनकी पेमेंट कंपनी पेटीएम को गूगल-पे से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल, गूगल ने गैम्बलिंग पर अपनी नीतियों का उल्लंघन करने के लिए सितंबर में अपने ऐप स्टोर से पेटीएम को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था।
उन्होंने ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ अख़बार को दिये एक इंटरव्यू में कहा था कि “एक अमेरिकी या विदेशी कंपनी को भारतीय स्टार्ट-अप की नियति को नियंत्रित नहीं करना चाहिए.”
फ़िटनेस ऐप गोकी के संस्थापक विशाल गोंडल ने भी अपने एक ट्वीट में गूगल की तुलना ब्रिटिश इंडिया कंपनी से की और लिखा कि ‘बदलाव आ रहा है.’
Britain’s Salt Act of 1882
Indian citizens were forced to buy the vital mineral from their British rulers, who, in addition to exercising a monopoly over the manufacture and sale of salt, also charged a heavy salt tax. Sounds Familiar ?
Change is coming @Google @vijayshekhar
— Vishal Gondal (@vishalgondal) October 11, 2020
हालांकि, कुछ लोग इसे व्यापक खेल के एक हिस्से का रूप में देखते हैं।
टेक्नोलॉजी पॉलिसी में विशेषज्ञता रखने वाली समाचार वेबसाइट, मीडियानामा के एक टिप्पणीकार और संपादक, निखिल पाहवा कहते हैं, “यह सिर्फ़ व्यवसाय है.”
उन्होंने कहा कि “भारतीय कंपनियों को अगर यह गूगल के ‘प्रभुत्व का दुरुपयोग’ लग रहा है, तो वो उसे जवाब दे सकती हैं, लेकिन उनकी राष्ट्रवादी बयानबाज़ी में मौक़ा है, अवसरवाद है.”
वैकल्पिक ऐप-स्टोर का विचार
वैसे भारतीय कंपनियों की इस तरह की भाषा कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद स्थानीय व्यवसायों से विदेशी कंपनियों पर अपनी निर्भरता कम करने का आग्रह करते रहे हैं। चीन के साथ सीमा विवाद के बाद, पीएम मोदी ने इस बात पर और अधिक ज़ोर दिया है।
पीएम मोदी 264 बिलियन डॉलर के बचाव पैकेज की घोषणा कर चुके हैं।
वहीं अक्टूबर में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ अपनी बैठक में शर्मा और भारतीय स्टार्ट-अप समूह के अन्य सदस्यों ने गूगल के प्रभुत्व को कम करने के लिए अन्य उपायों के बीच एक वैकल्पिक ऐप-स्टोर विकसित करने का आह्वान किया।
बहरहाल, इस पर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि सरकार द्वारा समर्थित ऐप-स्टोर के विचार में संरक्षणवाद की प्रतिध्वनि है, जो वैश्विक बाज़ारों में भारतीय फ़र्मों को प्रतिस्पर्धी नहीं बनाने जा रही है।
पब्लिक पॉलिसी के एक्सपर्ट प्रणय कोटस्थाने ने कहा, “यह ग़ैर-भारतीय ऐप्स के सामने बाधाएं खड़ी कर, भारतीय उपभोक्ताओं की पसंद को प्रतिबंधित करेगा.”
बंगलुरू स्थित थिंक टैंक ‘द तक्षशिला इंस्टीट्यूट’ में हेड ऑफ़ रिसर्च कोटस्थाने ने कहा, “यह घरेलू एकाधिकार की स्थिति भी पैदा कर सकता है.”
डेटा सुरक्षा का सवाल
एक ऐप स्टोर चलाने के लिए डेटा सिक्योरिटी बहुत महत्वपूर्ण आवश्यकता है। गूगल ने बीते सालों में अपने यूज़र्स के डेटा को सुरक्षित रखने के लिए लाखों डॉलर का निवेश किया है, जबकि भारत सरकार के पास अभी तक ऐसा कोई भी विशेष क़ानून नहीं है, जो डेटा प्रोटेक्शन सुनिश्चित करता हो।
एक सवाल यह भी है कि यूज़र डेटा की कमान किसके हाथ में होगी और इसका क्या किया जायेगा?
पाहवा ने बताया कि “भारत सरकार के पास सिक्योरिटी सुनिश्चित करने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं है। एक ऐसा ऐप स्टोर जिसे सरकार चलाती हो, वो स्टोर अपने यूज़र्स का निजी डेटा सरकार को बड़ी आसानी से दे सकता है। और सरकार इस डेटा का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कर सकती है।
भारत के सॉलिसिटर जनरल मुकुल रोहतगी ने 2015 में कहा था कि निजता का अधिकार, संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकारों में नहीं आता है। इस नज़रिये को सुप्रीम कोर्ट ने दो साल बाद पूर्णत: खारिज कर दिया था।
कोटस्थाने के अनुसार, हमारे पास अपने डेटा को लेकर सरकार पर भरोसा करने की कोई वजह नहीं है। हमें डेटा प्रोटेक्शन क़ानून चाहिए।
डिजिटल इंडिया पर गूगल की पकड़
गूगल पहले ही भारत में बहुत सारी जाँचों का सामना कर रहा है और इसी महीने अमेरिकी सरकार ने भी ग़ैर-प्रतिद्वंद्वी निर्णयों के लिए गूगल पर एक केस किया है।
फिर भी भारत सरकार के लिए या फिर स्थानीय स्टार्ट-अप्स के लिए गूगल को पीछे छोड़ पाना आसान नहीं होगा जो न सिर्फ़ इस देश के डिजिटल उद्योग पर काफ़ी प्रभाव रखता है और साथ ही साथ अपनी पहुँच लगातार बढ़ा भी रहा है।
जुलाई में गूगल ने भारत में अगले सात साल में दस बिलियन डॉलर निवेश करने का वादा किया है जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी ‘डिजिटल इंडिया’ प्रोग्राम बड़ा सहयोग मिलने की संभावना है।
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