– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
राष्ट्रीय गौरव के विषयों पर राष्ट्रीय सहमति दिखनी चाहिए अन्यथा देश विरोधी तत्वों को अनावश्यक प्रतिक्रिया देने का अवसर मिलता है। नए संसद भवन के उद्घाटन पर भी विपक्षी नेताओं ने ऐसी ही मानसिकता दिखाई। पुराना संसद भवन ब्रिटिश शासन द्वारा बनाया गया था। नई संसद आत्मनिर्भर भारत की प्रतीक है लेकिन विपक्ष ने अपनी राजनीति को ही महत्व दिया। उन्होंने राष्ट्रीय गौरव के समारोह का बहिष्कार किया। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने अमेरिका जाकर नए संसद भवन की आलोचना की। उनका कहना था कि समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए सरकार ने यह कार्य किया। इस प्रकार विपक्ष ने यहां निर्मिति भारत के गौरवशाली अतीत की कलाकृतियों का भी बहिष्कार किया। इससे पाकिस्तान जैसे देशों का मनोबल बढ़ा। उन्होंने यहां निर्मित अखंड भारत के भित्तिचित्र की निंदा की। इसे भारत की विस्तारवादी मानसिकता मान रहे हैं और इससे भविष्य को लेकर चिंतित हो रहे हैं।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि अखंड भारत का दावा भारत की विस्तारवादी मानसिकता का दिखावा है जो उनके पड़ोसी देशों, धार्मिक अल्पसंख्यकों की विचारधारा और संस्कृति को दबाना चाहती है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने भारत से विस्तारवादी विचारधारा से दूर रहने और शांतिपूर्ण तरीके से अपने पड़ोसी देशों के साथ विवादों का निपटारा करने का आग्रह किया है। नेपाल के पूर्व पीएम बाबूराम भट्टराई ने इस बारे में अपनी चिंता जाहिर करते हुए भारत से स्पष्टीकरण मांगा है। नेपाल के पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली ने भी चिंतित स्वर में इसे अनुचित बताया है। जबकि इस भित्तिचित्र का वर्तमान परिदर्शन से कोई मतलब नहीं है। यह भारत का अतीत है। प्रत्येक देश को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण करने, उनको कलाकृतियों में समेटने का अधिकार है। भारत ने यही किया है। वर्तमान में वह सभी देशों की स्वतंत्रता सम्प्रभुता का सम्मान करता है।
पाकिस्तान ने भारत को विस्तारवादी बताया लेकिन यह वही पाकिस्तान है जिसे भारत ने युद्ध में गई जमीन ताशकंद और शिमला समझौते के तहत वापस कर दी थी। पाकिस्तान का जन्म हुआ था। जन्म लेने वाले देश जब अपने अतीत पर विचार करेंगे, तब उन्हें सच्चाई दिखना शुरू हो जाएगा। नेपाल के दो पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेताओं ने अखंड भारत कलाकृति की आलोचना की है। इनको उसी प्रकार महत्व नहीं देना चाहिए जैसे भारत के विपक्षी नेताओं के बयानों को विदेशों में कोई महत्व नहीं दिया जाता है। नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री प्रचंड इसी समय पर भारत यात्रा पर आए थे। उन्होंने अखंड भारत की कलाकृति पर बयान नहीं दिया। कहा कि उनकी यात्रा से भारत नेपाल के बीच मित्रता, आपसी समझ और साझेदारी मजबूत हुई है। भारत के नए संसद भवन में लगे अखंड भारत के म्यूरल आर्ट में प्राचीनकाल में भारत के नक्शे को दर्शाया गया है। अखंड भारत के इस नक्शे में वर्तमान का पाकिस्तान, नेपाल अफगानिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, म्यांमार और बांग्लादेश दिखाए गए हैं। पहले ये भारत का हिस्सा थे।
अखण्ड भारत में आज के अफगानिस्थान, पाकिस्तान, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका आते हैं। प्राचीन काल में भारत का साम्राज्य में आज के मलेशिया, फिलीपीन्स, थाईलैण्ड, दक्षिण वियतनाम, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया आदि में सम्मिलित थे। 1857 से 1947 के बीच भारत के कई खंड हुए। कैलाश मानसरोवर से पूर्व में वर्तमान का इंडोनेशिया है। पश्चिम में ईरान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं। श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की तरफ हिंद महासागर इंडोनेशिया ईरान तक ही है। इनके बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान ईरान व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष कहा जाता था।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह सम्राट अशोक के शासनकाल में भारत के मानचित्र को दर्शाता है। भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह मुद्दा एक दिन पहले भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई बैठक में भी नहीं उठा था। यह कलाकृति लोक आधारित शासन व्यवस्था को बताता है। भित्ति चित्र के पास यह जानकारी भी लिखी है। 1937 में अहमदाबाद में हिंदू महासभा के वार्षिक सत्र में भारतीय कार्यकर्ता और हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर ने एक अखंड भारत की धारणा को प्रतिपादित किया कि कश्मीर से रामेश्वरम तक, सिंध से असम तक एक और अविभाज्य रहना चाहिए। उन्होंने कहा था कि सभी नागरिक जो भारतीय राष्ट्र और भारतीय राज्य के प्रति अविभाजित वफादारी और निष्ठा रखते हैं, उनके साथ पूर्ण समानता के साथ व्यवहार किया जाएगा। जाति, पंथ या धर्म के बावजूद कर्तव्यों और दायित्वों को समान रूप से साझा करेंगे, और प्रतिनिधित्व भी करेंगे या तो एक व्यक्ति एक वोट के आधार पर या पृथक निर्वाचक मंडल के मामले में जनसंख्या के अनुपात में और सार्वजनिक सेवाएं अकेले योग्यता के आधार पर होंगी। परतंत्रता काल में कन्हैयालाल मणिक लाल मुन्शी ने अखंड भारत के प्रति समर्थन व्यक्त किया था। इस प्रस्ताव से महात्मा गांधी भी सहमत थे। उनका कहना था कि ब्रिटेन फूट डालो और राज करो की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य को बनाए रखना चाहता है। एकता के बल पर उसके प्रयासों को विफल करना आवश्यक है।
मूल संविधान में प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में चित्रों को सजाया गया था। प्रारंभ में अशोक की लाट का चित्र है। उसके साम्राज्य को अखंड भारत कलाकृति में दिखाया गया। संविधान की प्रस्तावना को सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें मोहन जोदड़ो के घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं। भारतीय संस्कृति के प्रतीक कमल का भी चित्र है। अगले भाग में मोहन जोदड़ो की सील है। इसके बाद वैदिक काल की झलक है। इसमें ऋषि आश्रम में बैठे गुरु, शिष्य और यज्ञशाला है। मूल अधिकार वाले भाग के प्रारंभ में त्रेतायुग है। इसमें भगवान राम रावण को हराकर सीताजी को लंका से वापस ले कर आ रहे हैं। राम धनुष-बाण लेकर आगे बैठे हुए हैं और उनके पीछे लक्ष्मण और हनुमान हैं। नीति निर्देशक के प्रारंभ में श्रीकृष्ण भगवान का गीता उपदेश वाला चित्र है। भारतीय संघ के पांचवें भाग में गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा से जुड़ा एक दृश्य है। संघ और उनका राज्य क्षेत्र एक में भगवान महावीर को समाधि की मुद्रा में दिखाया गया है। आठवें भाग में गुप्तकाल से जुड़ी एक कलाकृति है। दसवें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है। बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति बनाई गई है। तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर है। शेषनाग के साथ अन्य देवी-देवताओं के चित्र हैं। भागीरथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया है। जब इन चित्रों को मूल संविधान में लगाया गया था, तब अखंड भारत की कलाकृतियों को नई संसद में सजाना अनुचित कैसे हो सकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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