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    ग्लोबल टाइम्स कहता है कि भारत चीन के बीच संघर्ष होना तय है

  • July 08, 2020

    – बिक्रम उपाध्याय

    चीन गलवान घाटी में पीछे हट रहा है। हालांकि अभीतक वह स्थिति बहाल नहीं हुई है जो मई के पहले सप्ताह में थी। यही चीन की रणनीति रही है। वह अपनी विस्तारवादी नीति के तहत पहले तो काफी आगे तक अतिक्रमण करता है और फिर कुछ पीछे हट जाता है। इसबार भारत ने उसका यह चेहरा दुनिया में सबके सामने लाने के साथ ही जिस तरह से प्रतिरोध किया, उससे चीन को यकीन नहीं है कि भारत के साथ सीमा पर कोई स्थाई शांति स्थापित हो पाएगी। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भले ही 5 जुलाई को स्टेट काउंसलर और उनके विदेश मंत्री वांग यी और भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बीच बातचीत के बाद एक सहमति के तहत दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट रही हैं लेकिन लगता नहीं कि यह सहमति लंबे समय तक बनी रहेगी। ग्लोबल टाइम्स ने दोबारा फिर झड़प होने की संभावना का कारण भारत के राष्ट्रवाद को बताया है और कहा है कि जिस तरह भारतीय सेना को यह महसूस हो रहा है कि उन्होंने गलवान घाटी में कुछ खो दिया है और जो उनका व्यवहार चीन के प्रति है, उससे लगता है कि लड़ाई फिर छिड़ सकती है।

    ग्लोबल टाइम्स ने अपने दो विशेषज्ञों की राय भी प्रकाशित की है। सरकारी मीडिया होने के कारण ग्लोबल टाइम्स की हमेशा से कोशिश रहती है कि वह सारे विवाद का ठीकरा भारत पर फोड़ दे, पर इस चीनी सरकारी भोंपू की बात पर कोई यकीन नहीं करता। हालांकि इसपर विशेषज्ञ टिप्पणियों और लेखों से अनुमान लगाया जा सकता है कि चीन किस दिशा में सोच रहा है। वह चीनी जनता सहित पूरे विश्व समुदाय को धोखे में रखने और एक वातावरण निर्माण की योजना में लगा है। चीन के सामरिक मामलों के अनुभवी विशेषज्ञ और टीवी कमेंट्रेटर सांग झानपिंग का कहना है कि चीन सैन्य शक्ति के मामले में भारत से काफी मजबूत है इसलिए यदि कोई युद्ध छिड़ा है तो चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी आसानी से भारत को हरा देगी। झानपिंग का कहना है कि दोनों देशों ने आपसी सहमति के आधार पर सैनिकों को पीछे भेजने का फैसला किया है, किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि चीन ने कमज़ोरी के कारण पीछे हटना मंजूर किया है। चीन हमेशा अपने पड़ोसियों से दोस्ताना संबंध रखना चाहता है। उम्मीद है कि भारत भी इस द्विपक्षीय विवाद पर संयम के साथ पेश आएगा।

    झानपिंग का यह भी कहना है कि भारत में लगातार राष्ट्रवाद की भावना बढ़ रही है। आजादी के समय से ही भारत अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के प्रयास में है। सेना के प्रति अंधविश्वास भारत में कूट-कूट कर भरा है। कुछ पूरब व पश्चिम के देश. हथियारों के जरिए भारत के साथ नजदीकी संबंध बनाए हुए हैं लेकिन वे सिर्फ अपने हथियार बेच रहे हैं, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं कर रहे हैं, जिसके कारण भारत की सैन्य क्षमता नहीं बढ़ रही है। झानपिंग ने ‘बायकाट चाइना’ पर भी रोष जताया है। उनका कहना है कि कुछ लोग बहुत पहले से चीन के सामान पर प्रतिबंध लगाने की सोच रहे थे लेकिन उन्हें मौका नहीं मिल रहा था। इस सीमा विवाद के बाद उनको अवसर मिल गया लेकिन इस तरह भारत न तो अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा सकता है और न सैन्य ताकत हासिल कर सकता है। वह चीन के सामने तो टिक ही नहीं सकता।

    अपने विचार के अंत में झानपिंग ने कहा है कि इस समय दोनों पक्षों ने सीमा विवाद से निपटने पर सहमति बनाई है लेकिन सच तो यह है कि दोनों के बीच आपसी विश्वास काफी कम हो गया है। भारतीय सेना को लगता है कि उन्हें गलवान घाटी के संघर्ष में काफी कुछ खोना पड़ा है। यदि यही भावना लंबे समय तक रही तो भारत-चीन के बीच सैन्य संबंधों में फिर से तनाव उत्पन्न हो सकता है। भारत लगातार हथियार खरीद रहा है और सीमा के पास सुविधाओं का निर्माण व विस्तार करता जा रहा है। वास्तव में भारत चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता है। भारत की यह कल्पना दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को बिगाड़ने का काम करेगी। उम्मीद है कि भारत भी अपनी ओर से सकारात्मक पहल दिखाएगा।

    चीन के एक और विशेषज्ञ लैन झिआनसे, जो चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एशिया पैसेफिक विभाग के डायरेक्टर हैं, ने भी यही आशंका जताई है कि भारत और चीन के बीच विवाद सुलझाने का यह फैसला लंबे समय तक बरकरार नहीं रह पाएगा। उन्होंने ग्लोबल टाइम्स में अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत और चीन मिलिट्री और डिप्लोमेटिक चैनलों के जरिए लंबे समय से बात करते आ रहे हैं लेकिन अभी यह देखना बाकी है कि क्या वाकई सीमा पर तनाव कम हो गया। इस समय तो ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि सीमा पर कहीं भी तनाव कम हुए हैं।

    झियानसे का कहना है कि भारत में चीन विरोधी भावना चरम पर है। चीन के सामान के बहिष्कार की आवाज़ काफी प्रबल है। इससे दोनों देशों के बीच विश्वास के माहौल को बनने में काफी कठिनाई आ सकती है। नई दिल्ली ने बीजिंग के साथ दूरियां बढ़ाने के प्रयास किए हैं। उसने सीमा पर टकराव बढ़ाया है और अब अन्य क्षेत्रों में भी चीन के साथ संबंधों को बिगाड़ने में लगा है। इससे सीमा पर तनाव कम करने में परेशानी होगी। अब नई दिल्ली को यह ज़िम्मेदारी लेनी है कि आगे कोई उकसावे वाली कार्रवाई न करे जिससे चीन और भारत के संबंध पूरी तरह से बिगड़ जाएं।झिआनसे ने चीन को भी यह सुझाव दिया है कि वह शांत व स्थिर रहे। भारत के साथ किसी विवाद पर जुबानी जंग के बजाय चीन को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह बताना चाहिए कि क्या सही है व क्या गलत और यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि टकराव भारत के कारण उत्पन्न हो रहा है। चीन को विवादित क्षेत्र से अपने सैनिकों को पूरी तरह हटा लेना चाहिए लेकिन इस बीच चीन को सजग और तैयार रहना चाहिए कि यदि भारत कोई हिमाकत करता है तो उसे भरपूर जवाब दिया जाए, खासकर तब जब भारत ने सीमा पर टकराव की स्थिति में नियम को बदल दिया है। यानी अपने सैनिकों को गोली चलाने का भी आदेश दे दिया है।

    झिआनसे ने अंत में कहा है कि यह भारत को निर्णय करना है कि उसे तनाव बढ़ाना या घटाना है। इस चीनी एक्सपर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अप्रैल 2018 में हिंदुस्तान टाइम्स में छपे उस इंटरव्यू का हवाला दिया है, जिसमें मोदी ने कहा था- एलएसी को लेकर कुछ भ्रम के चलते कई बार सीमा पर भारत और चीन के बीच छोटी-मोटी झड़पें हुई हैं लेकिन दोनों देश मिलिट्री या डिप्लोमैटिक चैनलों के जरिए आपसी बातचीत से मामले को सुलझा लेते हैं। इससे पता चलता है कि दोनों देशों के नेता परिपक्व हैं, आपस में शांतिपूर्ण तरीके से मामले को सुलझाने में सक्षम हैं।’ चीन के इस एक्सपर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी से अपेक्षा की है कि वे अपने बयान पर कायम रहेंगे।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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