डेस्क: विशाखापत्नम में एक स्वयं सेवी संस्था ने गांजा उगाने की अनुमति मांगी है. इस संबंध में संस्था की ओर से जिला प्रशासन को पत्र लिखा गया है. संस्था जन जागरण समिति की ओर से भांग की इस प्रतिबंधित खेती के लिए अनुमति मांगने से हर कोई हैरत में है. हालांकि संस्था का दावा है कि इससे आदिवासी समाज के लोगों के आय में वृद्धि होगी. कहा कि अब तक सरकार युवाओं को गांजा की लत से दूर नहीं कर पायी है. वहीं दूसरी ओर, जो आदिवासी हालतक गांजे की खेती करते थे, इस खेती को बंद कराने के बाद उन्हें रोजी रोटी का कोई विकल्प नहीं दिया गया.
संस्था ने इन्हीं तर्कों के साथ डीएम के जरिए सरकार से आग्रह किया है कि राज्य में गांजी की खेती के लिए अनुमति दी जानी चाहिए. भले ही इसके लिए लाइसेंस जैसी व्यवस्था हो जाए. समिति ने बताया है कि राज्य में हर साल कम से कम 15 हजार एकड़ में गांजे की खेती होती है. इसमें प्रति एकड़ 4 लाख रुपये का निवेश भी होता है, लेकिन कमाई 40 लाख रुपये से अधिक होती है. यही कारण है कि इस फसल को सर्वाधिक आय वाली फसल की श्रेणी में रखा गया है.
संस्था प्रबंधक के मुताबिक इसमें होने वाली आय को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को भांग उगाने के लिए प्रोत्साहित करती है. कहा जाता है कि इस खेती से वह कर्ज से मुक्ति पा सकती हैं. आंध्र प्रदेश में भी भांग की खेती को उन्नत करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. इसमें ऑपरेशन ट्रांसफॉर्मेशन भी शामिल है. इसमें आदिवासियों को शिक्षित किया जा रहा है कि वह खुद गांजा की फसल को नष्ट करें और भांग से कमाई करें. ऐसे में इस संस्था द्वारा गांजा की खेती के लिए अनुमति की मांग इस समय काफी चर्चा में है.
बता दें कि गांजा भी भांग की ही प्रजाति का पौधा होता है. हालांकि इसके वर्गीकरण के लिए जीव विज्ञानियों ने बताया है कि भांग नर प्रजाति है और गांजा मादा प्रजाति है. गांजे का इस्तेमाल औषधि के रूप में होता है, कुछ लोग इसकी पत्तियों को सूखा कर नशे के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं. जबकि गांजे में ऐसा नहीं है. गांजे को केवल नशे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए गांजे की मंजरी को सूखाकर चीलम में सुलगाया जाता है. इसके अलावा भांग की पत्तिया पतली और लंबी होती हैं, जबकि गांजे की पत्तियां चौड़ी और छोटी होती हैं.
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