गीता जयंती के पावन अवसर पर-
– डॉ. पुनीत कुमार द्विवेदी, प्रोफ़ेसर एवं समूह निदेशक- मॉडर्न ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट्स इंदौर
“गीता” भारतीय संस्कृति और धर्म की महानता का प्रतीक है, और उसमें वैज्ञानिक और दार्शनिक तत्त्वों के साथ-साथ ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों की व्यापक चिंतन की चर्चा की गई है। इस महान ग्रंथ में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों के बारे में बताया है और हमें उसकी महत्ता पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है। मुख्यतः, इस ग्रंथ में ब्रह्मांड के सृजन, संरक्षण और संहार के विषय में चर्चा की गई है, जो कि ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों को उद्घाटित करती है।
“गीता” में ब्रह्मांड के सृजन के विषय में बताया गया है कि जब भगवान ने ब्रह्मांड की सृष्टि की तो उन्होंने इसे अपनी महानता और अनंत शक्ति से सृष्टि किया। इस विषय में गीता में कहा गया है कि भगवान ने ब्रह्मांड के सभी जीवों को अपने ही हिस्से के रूप में सृष्टि किया है और सभी जीवों का कर्म और धर्म उनके पूर्व कर्मों और उनकी योग्यता के अनुसार निर्धारित होता है। इससे हम यह समझते हैं कि ब्रह्मांड की सृष्टि, उसका संरक्षण और संहार भगवान के अंतर्निहित शक्ति और उसके विचारों पर निर्भर करते हैं।
गीता में ब्रह्मांड के संरक्षण के विषय में भी चर्चा की गई है, जहां भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे संसार के सभी जीवों का पालन-पोषण करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। उन्होंने अर्जुन को यह भी सिखाया कि संसार के सभी रहस्य केवल भगवान ही जानते हैं और वही उनकी रक्षा करते हैं। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने हमें यह भी सिखाया है कि प्राकृतिक प्रक्रियाओं, सृष्टि, संरक्षण और संहार के पीछे होने वाले रहस्यों को हमसे अधिक महान और बड़े ही शक्तिशाली नियामक शक्तियों ने निर्णय किया है।
गीता में ब्रह्मांड के संहार के बारे में भी चर्चा की गई है, जहां भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वह ब्रह्मांड के समस्त संहार करने वाले हैं और जिस भगवान की उपस्थिति में ब्रह्मांड सृष्टि की अवधि के अंत के बाद समाप्त होती है। इससे हम यह समझते हैं कि ब्रह्मांड की सृष्टि, संरक्षण और संहार केवल भगवान के हाथ में है और हमारी जिम्मेदारी यह है कि हम उनके दिशा निर्देशों का पालन करें और उनके मार्ग पर चलें।
इस प्रकार, “गीता” ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों को उद्घाटित करती है और हमें यह बताती है कि हमारा जीवन ब्रह्मांड के नियमों और शक्तियों से जुड़ा हुआ है। हमें यह समझना चाहिए कि हम ब्रह्मांड का हिस्सा हैं और हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे समझें और उसके नियमों का पालन करें। इसके अलावा, इस पुस्तक में हमें ब्रह्मांड के अनगिनत रहस्यों के बारे में सोचने के लिए उत्तेजित किया गया है जो कि हमारे जीवन को समृद्धि और महानता के मार्ग पर ले जाता है।
गीता में ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने के लिए कुछ श्लोक हैं जो अध्यन करने चाहिए। उनमें से कुछ हैं: जैसे अध्याय 9, श्लोक 4: “मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना। मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः॥” अध्याय 13, के श्लोक 13: “ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना। अन्ये साङ् ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे॥” और अध्याय 15, श्लोक 6: “न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ् को न पावकः। यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥”
इन श्लोकों में भगवान कृष्ण ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे में ज्ञान देते हैं। इनका ध्यान और अध्ययन करके प्राणी ब्रह्मांड की रहस्यमय व्यवस्था को समझ सकते हैं।
वास्तव में , “गीता” ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों को उद्घाटित करती है और हमें विचार-विमर्श के माध्यम से इन रहस्यों को समझने के लिए प्रेरित करती है। इस पूज्य ग्रंथ का अध्ययन करना हमें ब्रह्मांड के महत्त्वपूर्ण रहस्यों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है और हमें यह सिखाता है कि हमारी असीम संपत्ति और ऐश्वर्य के बीच भी हमें अनन्य भाव से ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज करनी चाहिए।
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