नई दिल्ली (New Delhi)। संयुक्त राष्ट्र की स्टेट ऑफ पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023 में भारत में महिलाओं को मिल रहे शिक्षा, प्रजनन स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, यौन संबंधों, शिक्षा के हालात बताए गए। इनमें से कुछ मामलों जैसे शिक्षा, सेहत की देखभाल, यौन संबंध बनाने में रजामंदी आदि में भारत का प्रदर्शन वैश्विक औसत से बेहतर रहा। वहीं, कुछ में हमारा देश पीछे भी रहा। हालांकि, इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन पॉपुलेशन एंड डवलपमेंट (आईसीपीडी) के इन लक्ष्यों के तहत हालात को मापा गया तो कुछ ऐसी तस्वीर बनी…
15 से 19 वर्ष की 1,000 में से 11 लड़कियां बनीं मां
2006 से 2022 के समय में 23 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की होने तक कर दी गई। इस मामले में वैश्विक औसत 21 प्रतिशत मिला।
2020-21 में 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की हर 1,000 लड़कियों में से 11 लड़कियां मां बनीं। कम उम्र में मां बनना लड़कियों व शिशु की सेहत के लिए नुकसानदेह माना जाता है। यहां वैश्विक औसत 41 मिला, जो भारत से कहीं खराब रहा।
साल 2018 में 18% महिलाओं ने अपने साथी से बीते 12 महीनों में हिंसा सही। वैश्विक आंकड़ा 13% रहा।
प्रजनन स्वास्थ्य : 2007 से 2022 के दौरान
83 प्रतिशत महिलाओं को यौन संबंध बनाने के निर्णय में शामिल किया गया। यहां भारतीय महिलाओं की स्थिति कई देशों की तुलना में कुछ बेहतर रही, लेकिन 17 प्रतिशत का निर्णय में शामिल नहीं होना बड़ी संख्या है।
66 प्रतिशत महिलाएं अपने यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकार पर निर्णय लेने में शामिल थीं। विश्व में भी यह आंकड़ा 66 प्रतिशत मिला।
82 प्रतिशत अपनी सेहत की देखभाल से जुड़े निर्णय में शामिल हुईं। बाकी दुनिया में यह 75 प्रतिशत रहा।
92 प्रतिशत गर्भनिरोधक उपयोग के निर्णय लेने में शामिल रहीं। दुनिया का औसत 89, यानी भारत से पीछे रहा।
शिक्षा : 2010 से 2022 के बीच
86 प्रतिशत लड़कियों का नामांकन हुआ सेकंडरी से निचले स्तर पर, विश्व में भी यह औसत 85 प्रतिशत मिला।
हर 1 लड़के पर लड़कियों का अनुपात 1.03 रहा इस स्तर पर, वैश्विक अनुपात 1 ही है।
59 प्रतिशत का नामांकन 12वीं तक की शिक्षा में हुआ, यहां वैश्विक प्रतिशत 67, यानी अधिक रहा।
बाकी विश्व की स्थिति : संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक डॉ. नटालिया कानेम के अनुसार यह चिंता की बात है कि 25.7 करोड़ महिलाओं को दुनिया भर में सुरक्षित गर्भनिरोधक साधन हासिल नहीं हैं।
नटालिया ने कहा कि 24 प्रतिशत महिलाएं यौन संबंध बनाते समय इन्कार नहीं कर सकतीं, तो वहीं करीब 44 प्रतिशत को उनके ही शरीर से जुड़े मामलों में निर्णय में शामिल नहीं किया जा रहा।
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