नई दिल्ली (New Delhi)। वायु प्रदूषण (Air pollution) के कारण बच्चियों (Girls are becoming young early) में समय से पहले ही युवा होने के लक्षण सामने आ रहे हैं, जो बेहद चिंताजनक (Very worrying) है। एमोरी और हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Emory and Harvard Universities) के वैज्ञानिकों के अध्ययन में यह सामने आया है। 10 से 17 वर्ष की आयु की 5,200 से ज्यादा बच्चियों के बारे में प्राप्त जानकारी के आधार पर किए अध्ययन में पता चला कि जहां हवा में प्रदूषण का स्तर बेहद ज्यादा (Air pollution level is very high) था, वहां बच्चियों में माहवारी की शुरुआत कम उम्र में हुई।
प्रतिष्ठित जर्नल एनवायरनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकशित अध्ययन (Study published in Environmental Health Perspectives) के अनुसार, बच्चियों में पहली बार माहवारी का अनुभव 12 साल 3 माह की उम्र में हुआ था। जो बच्चियां जन्म से पहले या बचपन में चार माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा अतिरिक्त पीएम 2.5 कणों के संपर्क में आईं, उनमें समय से पहले माहवारी की शुरुआत होने की दर अधिक पाई गई। अध्ययन के दौरान ये बच्चियां 4.8 से 32.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 के संपर्क में थीं। वहीं, पीएम 10 का औसत स्तर 21.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था।
बड़े होने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक
अध्ययन में यह भी पता चला है कि जिन बच्चियों में माहवारी की शुरुआत जल्द हो जाती है, उनमें बड़ी होने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होने की कहीं ज्यादा आशंका रहती है। अध्ययन के नतीजे ये दर्शाते हैं कि इसकी वजह से इन बच्चियों में आगे चलकर गायनिक बीमारियां, हृदय संबंधी रोग, मधुमेह और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
यह है वजह
वरिष्ठ शोधकर्ता प्रो. ऑड्रे गास्किन्स के मुताबिक, जब बच्चियां छोटी होती हैं तो प्रदूषण उन पर गंभीर असर डालता है। वे तेजी से हो रहे रसायनिक बदलाव के कारण वातावरण में जो अनुभव करती हैं, वह वास्तव में यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण हो सकता है कि वे कितनी तेजी से बढ़ती हैं। यानी यह इनके शारीरिक विकास की गति को प्रभावित करता है।
ज्यादा प्रभावित हो सकता है भारत
अध्ययन अमेरिका में बच्चियों पर किए शोध पर आधारित है, लेकिन भारत, बांग्लादेश जैसे देशों में जहां वायु प्रदूषण बेहद विकट है, वहां बच्चियों की सेहत को कहीं ज्यादा प्रभावित कर सकता है। ऐसे में बढ़ते प्रदूषण पर गंभीरता से विचार की जरूरत है, क्योंकि अब भारत जैसे देशों में जो प्रदूषण शहरों की समस्या था, उसने गांवों व छोटे शहरों का रुख कर लिया है।
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