नई दिल्ली. जर्मन डिफेंस मिनिस्टर (german Defense Minister) बोरिस पिस्टोरियस (boris pistorius) काफी मशक्कत कर रहे हैं कि देश में अनिवार्य सैन्य सेवा (military service) शुरू हो जाए. कुछ दिनों पहले अपने अमेरिकी (American) दौरे के दौरान मंत्री ने माना कि समय बदल चुका है, और अनिवार्य मिलिट्री सेवा पर रोक लगाना एक गलती थी. दुनिया के कई हिस्सों में फिलहाल युद्ध चल रहा है, जिसकी चिंगारी छिटकते हुए जर्मनी तक भी आ सकती है. इसी डर से सरकार सैनिकों की संख्या बढ़ाना चाह रही है. लेकिन समस्या ये है कि युवा (youth) सेना की नौकरी में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे. बोरिस पिस्टोरियस ने जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में कहा कि मुझे यकीन हो चुका है कि जर्मनी को अनिवार्य मिलिट्री सेवा की जरूरत है. समय बदल चुका है.
अभी कितने सैनिक है इस देश के पास
इस देश में 1 लाख 80 सैनिक हैं, जो फिलहाल के हालात देखते हुए कम माने जा रहे हैं. सरकार सेना को वॉर-रेडी बनाने की तैयारी में है. मतलब युद्ध की नौबत आने से पहले ही उसके लिए रेडी रहना. इसमें युद्ध की प्रैक्टिस, हथियार, गोले-बारूद रखने के अलावा सैनिकों की संख्या बढ़ाना भी शामिल है.
देश को इसके लिए कम से कम 2 लाख 3 हजार सैनिक चाहिए. इसके साथ ही जरूरी है कि हर साल 20 हजार नए सैनिकों की भर्ती हो सके ताकि छोड़कर जा रहे सैनिकों की जगह खाली न रहे. जर्मनी जीडीपी का 2 फीसदी सेना पर खर्च करने की सोच रही है. साल 2022 में ये 1.39 फीसदी था. यहां तक कि मुख्य विपक्षी दल क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन ने अगले साल चुनाव जीतने पर अनिवार्य सैनिक सेवा लागू करने का वादा किया है. ये सेवा सालभर के लिए होगी, और सेना के अलावा सोशल वर्क में भी हो सकती है.
तब कहां हो रही मुश्किल
जर्मन सेना, जिसे बुंडेसवेयर भी कहते हैं, एक समय पर यूरोप की सबसे बड़ी सैन्य ताकत रही. लेकिन अब इसके साथ कई दिक्कतें हैं. जैसे हर साल के साथ वहां के युवा सेना में भर्ती से बच रहे हैं. खुद जर्मन डिफेंस मिनिस्टर ने बताया था कि साल 2022 के मुकाबले बीते साल 7 फीसदी कम आवेद आए. वहीं ट्रेनिंग के दौरान सर्विस छोड़कर जाने वालों की दर करीब 30 फीसदी है. इससे जर्मन सेना का साइज नहीं बढ़ पा रहा.
क्यों बच रहे सेना में भर्ती से युवा
इसकी कई वजहें हैं. जर्मन मीडिया में छपी रिपोर्ट्स कहती हैं कि सैन्य बैरकों की हालत खराब है. बहुत से क्वार्टरों में इंटरनेट तक नहीं, न ही टॉयलेट की ठीकठाक सुविधा है. जर्मन युवा अब वर्क-लाइफ बैलेंस चाहते हैं जो कि सेना में कम ही संभव है.
स्वीडन की तर्ज पर काम कर सकता है जर्मनी
डिफेंस मिनिस्टर ने जिस तरह से अमेरिका जाकर ये बात कही, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्द ही देश में आर्मी सर्विस में नई तरह की भर्ती शुरू की जा सकती है. वहां के मीडिया डॉयचे वेले के अनुसार, ये स्वीडिश मॉडल पर काम कर सकता है. स्वीडन में भी महिला-पुरुष दोनों के लिए आर्मी में सेवा देना जरूरी है. इसके लिए 18 साल का होते ही एक प्रश्वावली भराई जाती है, जिसमें कद, वजन और फिटनेस की बात रहती है. साथ ही ये सवाल होता है कि क्या वे वॉलंटरी मिलिट्री सर्विस देना चाहेंगे. आगे चलकर सबसे बेहतर कैंडिडेट्स को संपर्क किया जाता है. हर साल हजारों लोगों को ट्रेनिंग मिलती है.
लगभग पूरे यूरोप में ही सेना घट रही
जर्मनी ही नहीं, ज्यादातर यूरोपियन देशों के यही हाल हैं. दूसरा वर्ल्ड वॉर खत्म होने के बाद अधिकतर देशों ने सेना में नई भर्ती पर ध्यान देना कम कर दिया. नाटो भी इसकी एक वजह थी, यानी सम्मिलित सेना, जो मिलकर मुकाबला करने का वादा करती रही. स्थिति ये हुई कि नब्बे से अगले 10 सालों के भीतर डिफेंस पर खर्च का औसत 2.4% से कम होकर 1.6% रह गया.
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज की साल 2020 की रिपोर्ट कहती है कि नब्बे में अकेले वेस्ट जर्मनी किसी भी समय सवा 2 सौ बटालियन खड़े कर सकती थी. एक बटालियन में औसतन कुछ सौ सैनिक होते हैं. 2015 में पूरे देश का औसत घटकर 34 रह गया. ब्रिटिश और इटालियन बटालियन भी आधी रह गईं. यहां तक कि अमेरिका, जिसने यूरोप में अपने सैनिक तैनात कर रखे थे, उसकी भी संख्या 99 से 14 रह गई. ये आंकड़ा कुछ पुराना है, यानी इसमें और कमी हो सकती है.
किन देशों में जरूरी है सैन्य सर्विस
– इजरायल में 18 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को 2 साल, जबकि पुरुषों को लगभग तीन साल आर्मी को देने होते हैं.
– साउथ कोरिया में 18 से 35 साल के पुरुषों को डेढ़ साल आर्मी को देना पड़ता है.
– रूस में वयस्क पुरुषों के लिए सालभर तक सैन्य सर्विस जरूरी है. सोशल सर्विस भी एक विकल्प है.
– सिंगापुर में दो साल नेशनल सर्विस के अलावा 50 साल की उम्र तक सालाना 40 दिन सोशल सर्विस करनी होती है.
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