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जनरल आसिम मुनीर ने संभाला PAK आर्मी चीफ का पद, सामने होंगी ये चुनौतियां

November 29, 2022

नई दिल्ली: पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने मंगलवार को देश के नए सेना प्रमुख के तौर पर कार्यभार संभाला. मुनीर जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह लेंगे. बाजवा को 2016 में तीन साल के लिए सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था. साल 2019 में उन्हें तीन साल का सेवा विस्तार दिया गया था. मुनीर ने ‘जनरल हैडक्वार्टर’ में आयोजित एक समारोह में कार्यभार संभाला और इसी के साथ वह ‘आर्मी स्टाफ’ के 17वें प्रमुख बन गए.

देश के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने मुनीर को 24 नवंबर को सेना प्रमुख नामित किया था. पाकिस्तान में पूर्व में कई बार तख्तापलट हुआ है, जहां सुरक्षा एवं विदेशी नीति के मामलों में सेना के पास काफी ताकत है. मुनीर पहले ऐसे सेना प्रमुख है, जिन्होंने दो सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) के प्रमुख के रूप में सेवाएं दी हैं. हालांकि वह अब तक सबसे कम समय के लिए आईएसआई प्रमुख रहे.

पाक में ज्यादा समय तक रहा सेना का शासन
आठ महीने के अंदर 2019 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के कहने पर उनकी जगह लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद को आईएसआई प्रमुख नियुक्त किया गया था. पाकिस्तान को अस्तित्व में आए 75 से ज्यादा साल हो चुके हैं और देश में आधे से अधिक समय तक सेना का शासन रहा है. ऐसे में देश के सुरक्षा और विदेश नीति मामलों में सेना का काफी दखल रहा है.


मुनीर ‘फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट’ के जरिए सेना में शामिल हुए थे. जब जनरल बाजवा एक्स कोर के कमांडर थे, तब मुनीर उनके मातहत फोर्स कमान नॉर्दन एरिया में ब्रिगेडियर थे. तब से मुनीर बाजवा के करीबी रहे हैं. बाद में 2017 की शुरुआत में मुनीर को ‘मिलिट्री इंटेलिजेंस’ का प्रमुख नियुक्त किया गया था और उसके अगले साल अक्टूबर में आईएसआई प्रमुख बनाया गया था, लेकिन उन्हें कुछ समय बाद ही इस पद से हटा दिया गया था.

नए सेना प्रमुख के कंधों पर कई जिम्मेदारियां
इसके बाद उन्हें गुजरांवाला कोर कमांडर के तौर पर तैनात किया गया था और वह दो साल इस पद पर रहे. बाद में उन्हें क्वार्टरमास्टर जनरल के तौर पर स्थानांतरित कर दिया गया. वह पहले ऐसे सेना प्रमुख हैं, जिन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया गया है. नए सेना प्रमुख को आतंकवादियों के खतरे समेत कई समस्याओं से निपटना होगा, लेकिन उनकी अहम परीक्षा यह होगी कि वह पूर्व सेना प्रमुख जनरल बाजवा के इस फैसले पर कैसे टिके रह पाते हैं कि सेना राजनीति से दूरी बनाए रखेगी.

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