जयपुर (Jaipur) । राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) के सियासी युद्ध में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सचिन पायलट (Sachin Pilot) पर एक बार फिर 20 साबित हुए। सचिन पायलट को 10 महीने में दो बार भले ही प्रमोशन मिल गया हो, लेकिन गहलोत सचिन पायलट को राजस्थान से बाहर निकालने में कामयाब रहे है। गहलोत ने अपनी जादूगरी चला दी है। मतलब साफ है जब कांग्रेस की सरकार बनेगी तो गहलोत ही सीएम के दावेदार रहेंगे। गहलोत को राजस्थान से बाहर नहीं करने के यही संकेत मिले रहे है। कांग्रेस ने सचिन पायलट को पार्टी महासचिव की जिम्मेदारी देकर नए सियासी संकेत दे दिए है। मतलब साफ है कि आगामी चुनाव में सचिन पायलट की दखल बहुत कम रह जाएगी।
निकाले जा रहे हैं सियासी मायने
कांग्रेस ने सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ के प्रभारी महासचिव की नई जिम्मेदारी दी है। अभी तक पायलट कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य थे। अब उन्हें राजस्थान के बाहर जिम्मेदारी दी गई है। इससे पहले फऱवरी 2023 में सचिन पायलट को एआईसीसी सदस्य बनाया गया था। कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी महासचिव बनाकर राजस्थान की राजनीति में सियासी संतुलन बनाने की कोशिश की है। सियासी जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट नेता प्रतिक्ष और पीसीसी चीफ नहीं बनेंगे। रेस से बाहर हो चुके है। सियासी जानकारों का कहना है कि करीब 10 महीने में कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट का कद बढ़ाकर सियासी संकेत दिए है। कांग्रेस ने यह मान लिया है कि अशोक गहलोत के बाद सबसे बड़ा नेता सचिन पायलट ही है। ऐसे में सीएम रेस के प्रबल दावेदार बने रहेंगे। सचिन पायलट को राजस्थान की राजनीति से दूर कर गुटबाजी को थामने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।
राजस्थान में रिवाज बरकरार
राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार भी रिवाज बरकरार रहा। हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन होने के ट्रेंड में कोई बदलाव नहीं आया है। कांग्रेस सरकार रिपीट नहीं हो पाई है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को चुप रहने की हिदायत दी थी। पायलट चुनाव के दौरान चुप रहे। लेकिन पायलट के मुंह बंद करने का कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिला। कांग्रेस चुनाव हार गई। सचिन पायलट के गुर्जर वोटर भी कांग्रेस को पूरे नहीं मिले। सचिन पायलट के गढ़ दौसा में कांग्रेस को पांच में से सिर्फ एक सीट मिली। ऐसे में चर्चा थी कि सचिन पायलट को कांग्रेस एक बार फिर राजस्थान में बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। सचिन पायलट को राजस्थान से बाहर कांग्रेस आलाकमान ने साफ सियासी मैसैज दे दिया है कि राजस्थान की राजनीति से पायलट खुद के दूर करें। हालांकि, सचिन पायलट के लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावनाएं न के बराबर है। यदि ऐसा होता पायलट विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ते। सियासी जानकारों का कहना है एक लिहाज से देखा जाए तो सचिन पायलट का कद बढ़ा है। 10 महीने में ही पार्टी ने दो प्रमोशन दे दिए है।
नेता प्रतिपक्ष की रेस से सचिन पायलट हुए बाहर
सियासी जानकारों का यह भी कहना है कि सचिन पायलट को राजस्थान से बाहर करने के पीछे गहलोत की रणनीति है। गहलोत अब अपने किसी समर्थक विधायक को नेता प्रतिपक्ष का पद देने की पैरवी कर सकते है। पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा गहलोत समर्थक माने जाते हैं। ऐसे में प्रबल संभावना यह है कि गहलोत का दबदबा राजस्थान में कायम रहेगा। नेता प्रतिपक्ष वहीं बनेगा, जिसे अशोक गहलोत पसंद करता हो। राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष के की रेस में आधा दर्जन नाम शामिल है। इनमें पंजाब के पूर्व प्रभारी हरीश चौधरी, राजेंद्र पारीक, रामेकश मीणा, महेंद्र जीत सिंह मालवीया और नरेंद्र बुढ़ानिया के नाम शामिल है। सियासी जानकारों का कहना है कि हरीश चौधरी नेता प्रतिपक्ष की रेस से बाहर हो सकते है। क्योंकि गहलोत विरोधी बयान देते रहे हैं। एक बार केसी वेणुगोपाल को हरीश चौधरी को हिदायत देनी पड़ी थी। ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान किसी एसटी-एससी विधायक को नेता प्रतिपक्ष बना सकता है। क्योंकि पीसीसी चीफ डोटासरा जाट है। ऐसे में दोनों ही पद एक समुदाय को देने से दूसरे समुदाय नाराज हो सकते है।
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