नई दिल्ली (New Delhi) । गीता प्रेस गोरखपुर (Geeta Press Gorakhpur) को इस बार वर्ष 2021 के गांधी शांति पुरस्कार (Gandhi Peace Prize) के लिए चुना गया. संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) ने इस चयन को लेकर कुछ दिनों पहले ही घोषणा की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अध्यक्षता में विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता के रूप में चुनने का फैसला किया गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी. उन्होंने ट्वीट कर लिखा, ‘गीता प्रेस ने 100 साल में लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में काफी सराहनीय काम किया है.’
बता दें कि गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित संस्था या व्यक्ति को एक करोड़ की राशि भी दी जाती है. गीता प्रेस अपनी परंपरा के मुताबिक, किसी भी सम्मान को स्वीकार नहीं करता है. हालांकि, बोर्ड मीटिंग में तय हुआ है कि परंपरा को तोड़ते हुए पुरस्कार स्वीकार किया जाएगा, लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं ली जाएगी.
कांग्रेस ने किया विरोध
इस पुरस्कार की घोषणा होने के बाद कांग्रेस ने इसका विरोध किया है. इसे लेकर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना गोडसे और सावरकर को सम्मान देने जैसा है. इस पर बीजेपी ने पलटवार किया है. जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि गीता प्रेस गोरखपुर को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार दिया गया है, जो इस साल अपना अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. अक्षय मुकुल ने इस प्रेस को लेकर 2015 में एक बहुत ही बेहतरीन जीवनी लिखी है, जिसमें उन्होंने महात्मा के साथ इस प्रेस के संबंध, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर चल रहे संघर्ष का जिक्र किया है. गीता प्रेस को पुरस्कार देने का फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर-गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.
पुरस्कार राशि नहीं लेगा प्रेस
गांधी पुरस्कार पर चौतरफा राजनीतिक बयानों के तीर चले तो गीता प्रेस ने ये कहकर चौंका दिया कि गांधी पुरस्कार की धनराशि वो नहीं ले रहे हैं. गीता प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने बताया कि ये फैसला किसी दबाव में नहीं लिया गया बल्कि प्रेस की पंरपरा रही है.
‘क्यों कर रहे हैं विरोध?’
वहीं व्यक्तिगत टिप्पणी करते हुए देवी दयाल ने कहा कि विरोध करने वाले ही बताएं कि वह क्यों विरोध कर रहे हैं? अगर सनातन का विरोध हिंदू ही करेगा तो फिर क्या कहेंगे?
गांधी पर कुछ न कहने के सवाल पर देवी दयाल ने कहा कि दरअसल गीता प्रेस ने गांधी पर कई अंक प्रकाशित किए हैं. देवी का ये भी दावा है कि गीता प्रेस के कल्याण पत्रिका के संपादक रहे हनुमान प्रसाद पोद्दार उर्फ भाई जी को भारत रत्न देने का प्रस्ताव तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की ओर से रखा गया तो तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत गोरखपुर में भाई जी से मिलकर भारत रत्न देने का प्रस्ताव रखा तो उन्होने प्रस्ताव को ठुकरा दिया था.
भाजपा ने कांग्रेस पर साथा निशाना
वहीं भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पर जमकर भड़ास निकाली. इसके अलावा कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि BJP चाहती है कि कांग्रेस हिंदू विरोधी साबित हो जाए और वही काम कांग्रेस के कुछ नेता जाने अंजाने कर रहे हैं. उन्होंने कहा, मैं नहीं मानता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस बयान से सहमत नहीं हो सकता है. कांग्रेस महत्मा गांधी के पद चिन्हों पर चलने वाली पार्टी है.
सम्मान स्वीकारेंगे लेकिन राशि नहीं
गीता प्रेस गोरखपुर को लागत से कम मूल्य में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए जाना जाता है. ऐसा बीते 100 साल से होता आ रहा है. गीता प्रेस गोरखपुर की बोर्ड मीटिंग में तय हुआ है कि इस बार परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान स्वीकार किया जाएगा, लेकिन पुरस्कार के साथ मिलने वाली धनराशि नहीं ली जाएगी. जानकारी के मुताबिक, बोर्ड की बैठक में तय हुआ है कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि गीता प्रेस स्वीकार नहीं करेगा.
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