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    मप्र में लोकार्पण के बाद गौशालाएं पड़ी बंद

  • September 20, 2020

    • उपचुनाव में गाय बनी राजनीति का केंद्र, प्रदेशभर में सड़कों पर गौवंश का लगा रहता है मजमा

    भोपाल। मप्र में गाय हमेशा राजनीति का केंद्र बनी रहती है। उपचुनाव में भी गाय का मुद्दा गरम है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने प्रदेशभर में 1000 गौशालाएं बनाने की घोषणा की थी। उनमें से 700 गौशाला तैयार हैं। लेकिन लोकार्पण के बाद भी गौशालाएं बंद पड़ी हैं। इस कारण गौवंश का सड़कों पर मजमा लगा हुआ है।
    प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के पहले एक बार फिर गाय और गौशाला भाजपा और कांग्रेस की प्राथमिकता में आ गए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा की सरकार में गायों की दुर्दशा हो रही है और भाजपा का दावा है कि वह गौशालाओं के लिए कांग्रेस सरकार से भी ज्यादा संवेदनशील है। लेकिन प्रदेश में अब भी गायों को सड़कों से गौशाला तक पहुंचाने की व्यवस्था नहीं हो पाई है। कमलनाथ सरकार के 15 महीने के कार्यकाल में प्रदेश में बनी करीब सात सौ गौशालाओं में से कुछ में ही गायों को रखने की व्यवस्था हो पाई है। ज्यादातर गौशालाओं पर लोकार्पण के इंतजार में ताला लटका है।

    भाजपा के लिए गाय चुनावी मुद्दा
    पूर्व पशुपालन मंत्री लाखन सिंह यादव कहते हैं कि हमने एक हजार गौशाला बना दी थी। ज्यादातर का लोकार्पण हो चुका था। तीन हजार गौशाला और प्रस्तावित थी। हमने प्रति गाय रोजाना 20 रुपए के हिसाब से 132 करोड़ का बजट मंजूर किया था। लेकिन भाजपा की इस सरकार ने तो महज 11 करोड़ का बजट रखा है। इतने में तो कुछ भी नहीं होगा। इससे साफ है कि भाजपा सिर्फ चुनाव के लिए गाय का इस्तेमाल करती है। वे गौशालाएं तक बंद कर दी हैं, जो हमारे समय में पूरी तरह से चालू हो गई थीं।

    मवेशी बढ़ेंगे तो बजट भी बढ़ जाएगा
    पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल कहते हैं कि कांग्रेस सरकार में एक हजार गौशालाएं बनी ही नहीं हैं। कमलनाथ की सरकार ने सिर्फ सात सौ गौशालाएं बनाई हैं। हमने गौशालाएं जल्द बनाने के लिए अफसरों को निर्देश दिए हैं। जहां तक बजट कम करने की बात है तो बजट तो घटता-बढ़ता रहता है। मवेशी गौशालाओं में बढेंगे तो बजट भी बढ़ जाएगा। हमारी सरकार लगातार गाय का ध्यान रखती है। जो गौशालाएं चालू थीं, उनमें से कोई बंद नहीं हुई है।

    कागजों में अब भी चल रही हैं गौशालाएं
    जिन गौशालाओं में लोकार्पण के बाद गायों (निराश्रित गोवंश) को रखना शुरू कर दिया था, उनमें से भी कई अब बंद हो गई हैं। लेकिन ये बंद गौशाला कागजों में अब भी चल रही हैं। कुछ जगह गौशाला बजट न होने के कारण बंद हो गईं तो कुछ स्वसहायता समूहों के रूचि न लेने से। इस बीच सरकार ने गायों की खुराक बीस रुपए प्रतिदिन से घटाकर 1.60 रुपए कर दी है। इससे जो गौशाला अभी चल भी रही हैं, उन्हें आगे चलकर दिक्कत होनी तय है। मालूम हो कि पूरे प्रदेश में सात लाख निराश्रित गोवंश है। इनमें से करीब बीस हजार गोवंश ही गौशालाओं में पहुंच पाया है। कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे लाखन सिंह भले एक हजार गौशालाएं पूरा होने का दावा कर रहे हों लेकिन हकीकत में अभी सात सौ गौशालाएं ही पूरी हुई हैं। तीन सौ अभी पेंडिंग हैं। पिछली सरकार ने 132 करोड़ रुपए गौशालाओं में गोवंश के चारे-पानी के लिए मंजूर किए थे। लेकिन भाजपा की वर्तमान सरकार ने इसके लिए महज 11 करोड़ का बजट रखा है। यानी भाजपा ने बजट 90 प्रतिशत तक घटा दिया।

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