कपिल सूर्यवंशी
सीहोर। खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय बढऩे के दावे तो खूब हो रहे हैं। लेकिन किसानों को मंडियों से उनकी उपज के सही दाम नहीं मिल रहे हैं। हालात इस कदर बिगड़े हुए हैं कि किसानों को फसल की लागत तक निकालना मुश्किल हो रहा है। इसका असर यह है कि नगद आय वाली फसलों के रकबे भी कम हो रहे हैं। क्योंकि किसान अब नुकसान नहीं उठाना चाहता है। इसका ही उदाहरण है कि बीते महीनों लहसुन और प्याज कोडिय़ों के दाम बिके, इस कारण से इस बार लहसुन और प्याज की बोवनी कम कर रहे हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार 10 फीसद लहसुन और प्याज का रकबा कम हो सकता है। इससे बीते सालों की तुलना में इस बार उत्पादन प्रभावित होगा।
गौरतलब है कि जिले में रबी की फसल के दौरान गेहूं और चने के साथ बीते कुछ सालों से किसान लहसुन और प्याज की खेती की तरफ भी बढ़े थे, इससे किसानों को आर्थिक लाभ हो सके, लेकिन लहसुन और प्याज की फसल के दाम कम होने से किसानों के लिए यह फसलें घाटे का सौदा साबित होने लगी। वर्तमान समय में मंडियों में लहसुन और प्याज के उचित दाम किसानों को नहीं मिल रहा है। मंगलवार को ही शहर की कृषि उपज मंडी में लहसुन 4 रूपये से लेकर 40 रूपये किलो, प्याज 1 रूपये किलो से लेकर 10 रूपये किलो तक बिका। बीते कुछ महीनों से लहसुन प्याज के भावों में काफी गिरावट दर्ज की जा रही है। बीते कुछ महीने पूर्व ही श्यामपुर तहसील के किसानों ने लहसुन की बोरियां पार्वती नदी में फेंकी थी। ग्राम फूलमोगरा के किसान जमशेद खान ने बताया कि एक एकड़ जमीन में 20 हजार रूपए की लागत आ जाती है लेकिन बीते दो सालों से इन फसलों के सही दाम नही मिल रहे हैं।
जिले में लहसुन प्याज की स्थिति
जिले में लहसुन और प्याज की फसल की बात की जाए तो वर्ष 2017-18 में कुल रकबा 7386 हैक्टेयर, उत्पादन 121553 मेट्रिक टन, वर्ष 2018-19 में 6092 हैक्टेयर, उत्पादन 90083 मेट्रिक टन, वर्ष 2019-20 में 9950 हैक्टेयर, उत्पादन 176913 मेट्रिक टन, वर्ष 2020-21 में रकबा 10321 हैक्टेयर, उत्पादन 180068 मेट्रिक टन रहा है, जबकि वर्ष 2021-22 में रकबा 10361 हैक्टेयर रहा और उत्पादन 180467 मेट्रिक टन रहा है। विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो लहसुन प्याज की फसलों का रकबा और उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, लेकिन इस बार लहसुन और प्याज के रकबे में 10 फीसद तक कमी आ सकती है।
बंद पड़ी है भावांतर योजना
बीते साल लहसुन के काफी कम दाम किसानों को मिले, मंडियों में 50 पैसे से लेकर 6 रूपये प्रति किलो के दाम मिले। इसके साथ ही भावांतर योजना के बंद हो जाने के कारण से किसानों लहसुन की उपज औने पौने दाम पर बेचने के लिए विवश होना पड़ रहा है। भावांतर योजना 2018 से बंद है। इससे किसानों को उपज के भाव का अंतर भी नहीं मिल पा रहा है।
इनका कहना है
जिले में लहसुन प्याज का उत्पादन तो बहुत अच्छा हो रहा है, लेकिन मंडियों में बीते साल दाम किसानों के मन मुताबिक नहीं मिल सके थे, इसलिए इस बार गेहूं ज्यादा बो रहे हैं। इसलिए रकबा कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
राजकुमार सगर, जिला उद्यानिकी अधिकारी सीहोर
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