– अरविन्द मिश्रा
कुछ दिन पहले ही मध्य प्रदेश के रीवा में शहर नियोजन के क्षेत्र में एक ऐसा कदम बढ़ाया गया, जो यह बताने के लिए काफी है कि हमारे शहरों के विकास की प्राथमिकताएं बदल रही हैं। दरअसल यहां स्थापित किए जा रहे कचरा संग्रहण केंद्र में 6 मेगावाट बिजली उत्पादन संयंत्र का शिलान्यास किया गया है। बताया जा रहा है कि इस कचरा संग्रहण प्लांट में संभाग के 28 नगरी निकायों का कचरा शोधित (रिसाइकिल) किया जाएगा। विशेष बात यह है कि अबतक ऐसे संयंत्रों से जहां खाद ही बनाई जाती थी, वहीं रीवा में स्थापित इस प्लांट से खाद के साथ ही बिजली भी तैयार होगी।
एक अन्य उदाहरण उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से है, जहां शहर को प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए शहर में प्रदूषण नियंत्रण वाहन दौड़ता नजर आता है। यह प्रदूषण नियंत्रण वाहन एसटीपी से एकत्रित (गंदे पानी को शोधित कर) जल का छिड़काव करने के साथ सड़क किनारे पौधों को पानी देने समेत कई बहुउद्देशीय कार्य करता है। इसी प्रकार स्वच्छता की पोटली नामक अभिनव प्रयोग में नागरिकों की सहभागिता बढ़ी है। देखने में इन योजनाओं व प्रयासों का आकार भले ही छोटा नजर आए, लेकिन शहरी नियोजन के नजरिए से ये कुछ इस तरह के प्रयास हैं, जिससे हमारे शहर न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेंगे बल्कि यहां के बुनियादी ढांचे की उर्वरता भी बढ़ेगी। हां, शहरों को आत्मनिर्भर बनाने की इस यात्रा में नीति निर्धारकों, उसके क्रियान्वयन में जुटे प्रशासकों के साथ स्थानीय जनमानस को भी संजीदगी दिखानी होगी। इसी क्रम में एक नए दशक में प्रवेश करते हुए आइए हम कुछ ऐसे मुद्दों को टटोलने का प्रयास करते हैं, जो हमारे और आपके शहर के भविष्य को संवारने के लिए बेहद जरूरी हैं।
दीर्घकालिक योजनाएं बनाएं : शहर के विकास से जुड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाते समय अक्सर स्थानीय निकाय तात्कालिक समस्याओं अथवा आगामी चार-छह वर्षों का ही आकलन करते हैं। बुनियादी अधोसंरचनाओं के विकास को मूर्त रूप देते समय यदि दो-चार दशक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाए तो वह नियोजन कहीं अधिक टिकाऊ होगा। योजनाएं जब दीर्घकालिक नहीं होती हैं, तो वह किस तरह जनजीवन को प्रभावित करती है, उसके सबसे ज्वलंत उदाहरण हमारे और आपके शहर की मुख्य सड़क, चौक-चौराहे पर हर दिन होने वाला पुनर्निर्माण कार्य है। शायद ही कोई दिन और महीना हो जब हमारे आसपास की सड़कों, जल निकासी व्यवस्थाओं, अंडर ग्राउंड केबल को ठीक करने के लिए व्यापक निर्माण कार्य न चलता हो। बेचारी जनता हर बार यही सोचकर स्थानीय निकायों की लापरवाही से धूल-धुसरित होती है कि आखिर उसके भविष्य की बेहतरी के लिए ही यह कार्य हो रहा है। सवाल है कि हर दिन उन्हीं बुनियादी अधोसंरचनाओं के पुन:र्निर्माण की आवश्यकता क्यों पड़ती है। कहीं ये स्थानीय निकाय, प्रशासन और संबंधित विभागों द्वारा शहर नियोजन के बुनियादी सिद्धातों की अनदेखी का परिणाम तो नहीं।
भू-माफिया से शहर को बचाएं: देश में शायद ही ऐसा कोई शहर हो जहां भू-माफिया शहर की जमीन को अतिक्रमण के जरिए निगल न रहे हों। शहर वासियों को उम्मीद होती है, नेताजी इनसे जनता की रक्षा करेंगे, जबकि अंदरखाने पता चलता है कि नेता और नौकरशाह खुद भू-माफिया के राजनीतिक संरक्षणकर्ता होते हैं। शहरों में अवैध कॉलोनियों में घर कुछ इस तरह बने हैं, जैसे जंगल में खरपतवार। यदि राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति हो तो भू-माफिया से न सिर्फ शहर आजाद होंगे बल्कि सड़क, जल निकासी और यायायात की व्यवस्थाएं भी दुरुस्त हो सकेंगी।
ई-कचरे का निस्तारण : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को जिस प्रकार सामाजिक आह्वान बनाया है, उसका असर जमीन पर दिख रहा है, लेकिन अब कचरा एकत्र करने के साथ उसके निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। शहर से दूर कचरे की रिसाइकिल की व्यवस्था के साथ डंपिंग ग्राउंड का नेटवर्क होना चाहिए। विशेष रूप से ई-कचरा अब नए तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर रहा है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मध्य प्रदेश के इंदौर, छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जैसे नगर निगमों ने कम संसाधनों में प्रदूषण से निजात पाने और कचरा निस्तारण की बेहतरीन व्यवस्था खड़ी की है। इसका अध्ययन किया जाना चाहिए। देश के कुछ हिस्सों में हुए गार्बेज क्लीनिक के सफल प्रयोग को अपनाया जा सकता है।
सीजीडी की तैयारी : शहरों में जीवन स्तर को गुणवत्ता प्रदान करने में ऊर्जा संसाधन और ईंधन की उपलब्धता प्रमुख कारक होती है। महानगरों की तर्ज पर अब छोटे शहरों में भी शहरी गैस वितरण प्रणाली (सीजीडी) का विस्तार किया जा रहा है। देश के 400 से अधिक शहरों में पाइपालइन के जरिए घरों तक एलपीजी की आपूर्ति की व्यवस्था खड़ी की जा रही है। लेकिन ईंधन आपूर्ति की इस व्यवस्था के लिए हमारे शहरों की कॉलोनियां कितनी तैयार हैं, इसकी समीक्षा होनी चाहिए। जिन छोटे शहरों में शहरी गैस वितरण प्रणाली का विस्तार होना है वहां अवैध आवासीय कॉलोनियों इस अधोसंरचना के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
फिट इंडिया : जिस मोहल्ले या कॉलोनी में आप रहते हैं, वहां कितने व्यवस्थित पार्क और सामुदायिक भवन हैं। यह बुनियादी सुविधाएं कैसे हासिल की जा सकती हैं, इसपर विचार करें। फिट इंडिया के मंत्र को साकार करना है तो हर मोहल्ले और कॉलोनी में ओपन एयर जिम और पार्क आदि होने चाहिए। आखिर ऐसा क्यों है कि बड़े महानगरों में जहां भूमि की उपलब्धता कम है और जनसंख्या अधिक है, वहां पार्क और सामुदायिक भवन की संख्या पर्याप्त है, जबकि हमारे छोटे शहरों में इनकी संख्या नगण्य होती है।
म्यूनिसिपल बांड का दौर : विकास की कोई भी योजना आर्थिक संसाधनों के बिना सफल नहीं हो सकती है। हाल ही में देश के 9 बड़े नगर निगमों ने म्यूनिसिपल बांड जारी करने की दिशा में सराहनीय कदम बढ़ाया है। ऐसे उपायों की तैयारी मध्यप्रदेश के स्थानीय निकायों को भी करनी चाहिए। इससे नगरीय निकाय आर्थिक रूप से स्वावलंबी तो होंगे ही योजनाओं की आर्थिक चुनौतियों का भी संधान होगा।
स्वास्थ्य संकट से बचने की तैयारी : किसी जमाने में कॉलेरा और प्लेग जैसी महामारियों से बचने के लिए शहरों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूती दी थी। अब कोरोना जैसे अदृश्य विषाणु एवं जैविक खतरों की चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम व्यवस्था खड़ी करने का वक्त आ गया है। वर्तमान में सरकार जीडीपी का 1.6 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं में खर्च करती है। 2024 तक सरकार जीडीपी का 2.5 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं में समर्पित करेगी। इसे जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी नगरीय निकायों की होगी।
स्थापित हो क्लीन स्ट्रीट फूड जोन : हमारे शहरों में पिछले कुछ वर्षों के भीतर चौपाटी विकसित की गई हैं। इन चौपाटियों को एफएसएसएआई के ईट राइट मूवमेंट से जोड़ना होगा। इससे क्लीन स्ट्रीट फूड जोन (हब) स्थापित करने में मदद मिलेगी, जिसका सीधा फायदा रोजगार और पर्यटन को बढ़ावा देने के रूप में मिलेगा।
रोबोटिक्स और एआई का दौर : हमारे स्थानीय निकायों को अब तकनीक उन्मुख होना पड़ेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स हमारे जीवन का अपरिहार्य हिस्सा बन रहे हैं। अमेरिका और यूरोप होते हुए तकनीकी क्रांति धीरे-धीरे भारत में दस्तक दे रही है। कॉर्पोरेट जगत से सीख लेते हुए स्थानीय निकायों को अब टैक्स कलेक्शन, बिल पेमेंट, सिक्यूरिटी सर्विलांस, रेस्कूय मिशन, फेसियल रिकॉग्निशन, स्कैनिंग, मैपिंग, डिजास्टर और ट्रैफिक मैनेजमेंट समेत अनेक नागरिक सुविधाओं के लिए नवाचार का अनुप्रयोग बढ़ाना होगा।
महानगरों से अधिक प्रदूषण : कभी प्रदूषण के समाचार सिर्फ दिल्ली और बड़े महानगरों से जुड़े होते थे। लेकिन अब आए दिन हमारे अपने शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स दिल्ली को भी पीछे छोड़ता नजर आता है। ये बात सच है कि इसकी बड़ी वजह शहर में चलने वाली विनिर्माण गतिविधियां हैं लेकिन पिछले कुछ सालों में पंजाब और हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में भी पराली (पियरा) जलाने का चलन बढ़ा है। इसका समाधान शीघ्र निकालना होगा।
ये हमारे और आपके शहर से जुड़े कुछ ऐसे बुनियादी मुद्दे हैं, जिनपर हर जनप्रतिनिधि को संजीदा होना होगा। यह तभी मुमकिन है जब शहर को संवारने को लेकर शहर से जुड़ा हर नागरिक न सिर्फ मुखर हो बल्कि बल्कि स्थानीय प्रशासन के साथ जन हित के मुद्दों पर सहयोग और संवाद के क्रम को भी बढ़ाए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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