उज्जैन। इस बार नवरात्रि 8 दिन की है। इसमें से नवरात्रि के 3 दिन गुजर गए हैं। आज चौथा दिन है। धीरे-धीरे अब प्रतिबंधों के बीच छोटे गरबा स्थानों पर डांडिये का रंग जमने लगा है। रात 10 बजे तक की सीमा प्रशासन ने तय की है। इसके चलते लोग शाम ढलते ही कार्यक्रम शुरु कर रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले नवरात्रि उत्सव में इस बार जिला प्रशासन ने कोरोना गाईड लाईन में कुछ छूट दी है लेकिन इस बार भी नवरात्रि महोत्सव में सार्वजनिक स्थानों तथा विशेषकर बड़े पांडालों में गरबा आयोजन की अनुमति नहीं दी है। कॉलोनी और मोहल्ला स्तर पर इस तरह के आयोजनों को शर्त के साथ मंजूरी दी गई है।
इसमें यह तय किया गया है कि छोटे स्तर पर होने वाले गरबा स्थलों पर भी रात 10 बजे तक ही कार्यक्रम चल सकेंगे और इसी समय तक डीजे का उपयोग किया जा सकेगा। इसके बाद अगर कार्यक्रम जारी रहता पाया गया तो आयोजकों पर धारा 188 में कार्रवाई की जाएगी। यही कारण है कि गरबा आयोजन की समय सीमा रात 10 बजे तक होने के कारण आयोजनों स्थलों पर अब शाम साढ़े 6 बजे से ही माता की आरती के बाद गरबों के आयोजन शुरु हो रहे हैं। पिछले तीन दिनों से आयोजन स्थलों पर इसी समय सीमा में कार्यक्रम चल रहे हैं। आज नवरात्रि का चौथा दिन है। हालांकि देवी मंदिरों में सुबह से लेकर रात 11 बजे तक भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। प्रमुख मंदिरों में भी कोरोना गाईड लाईन का पालन सख्ती से कराया जा रहा है। हरसिद्धि माता, चामुंडा माता मंदिर, नवदुर्गा मंदिर, बिजासन टेकरी, नगर कोट की रानी माता मंदिर, गढ़ कालिका, भूखी माता मंदिर सहित अन्य प्रमुख देवी मंदिरों में सुबह से शाम तक लोग दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं। शाम के समय मंदिरों में भीड़ उमड़ रही है।
उज्जैन के देवी मंदिरों का महत्व-4… नगर की रक्षा करती हैं चौबीस खंबा माता
महाकालेश्वर मंदिर के समीप चौबीस खंबा माता मंदिर 12वीं सदी से स्थापित है। इसे प्राचीनकाल में महाकाल वन का प्रवेश द्वार भी कहा जाता था। द्वार के दोनों ओर महालया और महामाया देवियाँ विराजित हैं। माता के यह दोनों स्वरूप प्राचीनकाल से ही नगरवासियों की रक्षा करते रहे हैं। नवरात्रि की अष्टमी पर पहले राजा महाराजा और बाद में प्रशासन की ओर से नगर पूजा कराने की भी यहाँ प्राचीन परंपरा है। मंदिर परिसर में लगे शिलालेख के मुताबिक मंदिर में 24 खंबे लगे हुए हैं इसलिए नाम 24 खंबा कहा जाने लगा है। यह विशाल द्वार है। यहां महामाया और महालया देवी की पूजा होती है और पूर्व में यहाँ बलि दी जाती थी। हालांकि बाद में यह प्रथा बंद कर दी गई थी। परंतु नगरवासियों की रक्षा के लिए शुरुआत से चली आ रही महाअष्टमी पर नगर पूजा की परंपरा आज भी यथावत जारी है। नवरात्रि की अष्टमी पर हर साल कलेक्टर द्वारा चौबीस खंबा देवियों का विधिवत पूजन अर्चन किया जाता तथा उन्हें मदिरा की धार चढ़ाई जाती है। इसके बाद यात्रा भी निकाली जाती है। नवरात्रि में यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है और पूरे वर्ष दर्शनार्थियों का यहाँ तांता लगा रहता है।
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