भोपाल। जबलपुर पुलिस द्वारा फर्जी जमानतदार गिरोह का भंडाफोड़ करने के बाद प्रदेशभर में ऐसे गिरोह की पड़ताल शुरू हो गई है। राजधानी में भी फर्जी जमानतदारों का गिरोह सक्रिय है। पिछले साल जुलाई में क्राइम ब्रांच ने एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया था। सूत्रों का कहना है की भोपाल में कई ऐसे गिरोह सक्रिय हैं जो फर्जी तरीके से जमानत कराता है। गौरतलब है कि जबलपुर पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का भांडाफोड़ किया, जो जाली बही के जरिए आरोपियों को जमानत दिलाता था। पुलिस ने गिरोह के 7 सदस्यों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से नकली बही, सील, कंप्यूटर और प्रिंटर जब्त किया है। पकड़े गए आरोपी महज एक से डेढ़ हजार रुपए में ही जाली बही और आधार कार्ड बनवाकर लोगों की कोर्ट से जमानत करवा देते थे। उस जमानत के एवज में आरोपियों के परिवार से मोटी रकम वसूला करते थे।
एक से डेढ़ हजार मे तैयार करते हैं बही
लंबे समय से जबलपुर पुलिस को शिकायत मिल रही थी कि कोर्ट में ऐसा गिरोह सक्रिय है जो जाली बही और अन्य दस्तावेजों के आधार पर जमानत करवाता है। पुलिस के मुताबिक गिरोह का सरगना और मास्टर माइंड मुन्ना उर्फ शौकत गोहलपुर थाने का निगरानी शुदा बदमाश है। शौकत को सिविल लाइंस पुलिस ने जाली जमानत मामले में 2015 में गिरफ्तार भी किया था। इतना ही नहीं आरोपी शौकत के खिलाफ नरसिंहपुर जिले के कोतवाली में भी 2017 में इसी तरह का एक मामला दर्ज है, जिसमे शौकत फरार चल रहा था।
पिछले वर्ष राजधानी में पकड़ाए थे 10 आरोपी
गौरतलब है कि भोपाल की क्राइम ब्रांच पुलिस ने पिछले साल जुलाई में फर्जी जमानतदार गिरोह का भंडाफोड़ किया था। गिरोह के 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर उनसे भारी मात्रा में जाली ऋण पुस्तिका (बही), सील और मुद्रा जब्त की थी। पुलिस को सूचना मिली थी कि कुछ लोग भोपाल जिला अदालत के बाहर फर्जी जमानत का काम कर रहे हैं। उसके बाद पुलिस ने विशेष अभियान के तहत कोर्ट के बाहर अवैध तरीके से जमानत कराने वाले गिरोह के लोगों को पकड़ा। इसमें 2 महिला और 8 पुरुष थे, जो सड़क किनारे बैठे अपना धंधा चला रहे थे। इनसे जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि आरोपी या उसके परिवार को जब जमानत की जरूरत पड़ती थी तो वह फर्जी बही लेकर जमानत कराते थे। इसका उन्हें पैसा मिलता है।
कैसे करते हैं काम
फर्जी जमानतदार सुनियोजित तरीके से काम करते हैं। केस आने के बाद पहले तय किया जाता है कि जमानतदार कौन बनेगा। जब यह तय हो जाता है कि यह काम कौन करेगा, उसके बाद जिस आरोपी की जमानत लेना है उसके परिवार वालों से मिलवाया जाता है और जिसकी जमानत लेना है उसके बारे में उसके परिवार से पूरी जानकारी ली जाती है। जानकारी लेने के बाद जमानतदार, जिसकी जमानत लेना होती है उसका रिश्तेदार या पारिवारिक संबंध वाला बन जाता है। ये गिरोह इस काम की बकायदा वहीं रिहर्सल करता है। जब पूरी तरह से जमानतदार और परिवार वाले आपस में मिल जाते हैं उसके बाद कोर्ट में जमानत के लिए खड़े होते हैं। वो इस तरीके का व्यवहार करते हैं जिससे सभी को यह विश्वास हो जाए कि जमानतदार और परिवार वाले एक दूसरे को बहुत अच्छे से जानते हैं। इस तरह की वार्तालाप से सभी को यह यकीन हो जाता है कि वास्तव में यह इनका हिमायती है। वास्तविक रूप से एक दूसरे को न ये जानते हैं और न ही पहचानते हैं। कोर्ट के बाहर निकलकर ये मनमाने पैसे परिवार वालों से वसूलते हैं।
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