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    गंगा-जमुनी तहजीब : यूपी के नवाब ने मोहर्रम पर बरसाए थे रंग

  • March 18, 2022

    नई दिल्‍ली। देशभर में होली (Holi) का त्योहार पारंपरिक आस्था (traditional faith) और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। पिछले दो साल कोरोना के हालातों के बाद यह पहला मौका है जब कोरोना की लहर  (corona wave) देश में नहीं, हैं और कोरोना के मामले भी बहुत कम हो चुके हैं। ऐसे में शिथिल हुई पाबंदियों के बीच बेरोकटोक पर्व मनाने का दोगुना उत्साह आमजन में देखा जा रहा है। इस मौके देश के विभिन्न शहरों, गांवों कस्बों में लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर पर्व की खुशियों का इजहार कर रहे हैं।
    भारत में गंगा-जमुनी तहजीब की परंपरा सदियों पुरानी है। इस तहजीब में तब तो और रंग जम जाता है जब अलग-अलग धर्मों के त्‍योहार एक ही दिन पड़ जाते हैं। एक बार जब ऐसा हुआ तो मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मुहर्रम के दिन जमकर होली खेली थी. यह सब नवाब वाजिद अली शाह के होली खेलने के शौक के चलते संभव हुआ था।



    जब मशहूर शायर मीर दिल्ली से लखनऊ आए, तो उन्होंने तत्कालीन नवाब आसफउद्दौला को होली इतने उत्साह से मनाते देखा कि उन्होंने इस पर एक काव्य ही रच दिया। नवाब सादात अली ख़ान के होली समारोह का वर्णन भी अद्भुत है। संग होली में हुज़ूर अपने जो लावे हैं हर रात कन्हैया भएं और सर पे धर लेवें मुकुट। अवध के आख़िरी नवाब वाज़िद अली शाह भी होली खेलने के बेहद शौक़ीन थे. वह न केवल उत्साह से होली खेलते, बल्कि उन्होंने होली पर कई कविताएं भी रची थीं। मोरे कन्हैया जो आए पलट के, अबके होली मैं खेलूँगी डटकेउनके पीछे मैं चुपके से जाके, रंग दूंगी उन्हें भी लिपटके गंगा-जमुनी तहज़ीब के शहर लखनऊ में होली मनाने की कुछ यही भावना थी।

    अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को होली खेलने का बहुत शौक था. वे बहुत उत्‍साह से होली खेलते थे, साथ ही भाईचारे को बढ़ावा देने में मजबूत भरोसा रखते थे. नवाब शाह के शासन के दौरान एक बार ऐसा संयोग हुआ कि होली और मुहर्रम एक ही दिन पड़ गए. यह बड़ी अजीब स्थिति थी क्‍योंकि हिंदुआ का त्‍योहार होली जहां उल्‍लास का पर्व होता है वहीं मुस्लिमों का मोहर्रम मातम का मौका होता है. ऐसे में हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का ख्‍याल करते हुए उस साल होली न मनाने का फैसला कर लिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब इसकी सूचना नवाब वाजिद अली शाह को मिली तो उन्‍होंने पूरा मामला ही पलट दिया।
    नवाब वाजिद अली शाह ने जब देखा कि हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान किया है तो उन्‍होंने कहा कि अब ये मुसलमानों का फर्ज है कि वो भी हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करें। इसके बाद उन्‍होंने घोषणा की कि पूरे अवध में उस दिन होली खेली जाएगी और वो खुद भी होली खेलेंगे। उनके साथ-साथ समुदाय के कई लोगों ने भी मुहर्रम के दिन होली खेली थी।
    विदित हो कि नवाब शाह ने होली पर ठुमरी भी लिखी है, उन्‍हें ‘ठुमरी’ संगीत विधा का जन्मदाता भी माना जाता है। उन्‍होंने कई बेहतरीन ठुमरियां रचीं। जब अंग्रेजों ने अवध पर कब्‍जा जमाकर उन्‍हें देश निकाला दिया था, तो उन्‍होंने उस पर भी ठुमरी लिखी थी।

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