नई दिल्ली। आज गांधी जयंती है। महिलाओं की सुरक्षा के प्रति बापू बहुत चिंतित थे। आज के वक्त जब महिलाओं के खिलाफ अपराध इतने ज्यादा बढ़ गए हैं, बापू की बातों को समझकर उन्हें आत्मसात करने की जरूरत ज्यादा मालूम होती है। बापू महिलाओं को समान अधिकारों की पुरजोर वकालत करते थे। महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर भी बापू के विचार स्पष्ट थे। एक पत्र में उन्होंने महिलाओं को ‘आत्मरक्षा’ के लिए जो बन पड़े, वो करने की सलाह दी है। वह मानते थे कि बलात्कार का शिकार हुई स्त्री का किसी भी लिहाज से तिरस्कार नहीं होना चाहिए। वह ताउम्र अपने बेटों को भी महिलाओं से तमीज से पेश आने की सीख देते रहे। बेटों को लिखी चिट्ठियों में बापू उन्हें साफ ताकीद करते नजर आते हैं कि मर्यादा का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
‘द माइंड ऑफ महात्मा गांधी’ किताब में दुराचार और महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर विचार गांधीजी के संकलित किए गए हैं। इसके अनुसार गांधीजी ने कहा है कि अगर महिला हमलावर की शारीरिक ताकत का मुकाबला नहीं कर सकती तो उसकी पवित्रता उसकी ताकत बनती है। सीता का उदाहरण लीजिए। शारीरिक रूप से वह रावण के आगे कमजोर थीं लेकिन उनकी पवित्रता उसके बाहुबल से कहीं ज्यादा थी। उसने कई प्रलोभनों से उन्हें जीतना चाहा लेकिन अपनी पूरी ताकत के बावजूद वह सीता को हाथ नहीं लगा सका। मेरा मानना है कि एक निडर महिला जो यह जानती है कि उसकी पवित्रता उसकी सबसे बड़ी ढाल है, उसका कभी शीलभंग नहीं हो सकता। चाहे जितना ही वहशी मनुष्य क्यों न हो, वह उसकी पवित्रता की अग्नि के आगे शर्मिंदा हो जाएगा।’
‘आत्मरक्षा में जो बन पड़े, वो करें महिलाएं’
बापू से एक महिला ने बलात्कार के बारे में तीन सवाल पूछे थे।
1. यदि कोई राक्षस-रूपी मनुष्य राह चलती किसी बहन पर हमला करे और उससे बलात्कार करने में सफल हो जाए, तो उस बहन का शील-भंग हुआ माना जाएगा या नहीं?
2. क्या वो बहन तिरस्कार की पात्र है? क्या उसका बहिष्कार किया जा सकता है?
3. ऐसी स्थिति में पड़ी हुई बहन और जनता को क्या करना चाहिए?
जवाब में बापू ने ‘हरिजनबंधु’ नाम की गुजराती पत्रिका में मार्च 1942 में लिखा, “जिस पर बलात्कार हुआ हो, वह स्त्री किसी भी प्रकार से तिरस्कार या बहिष्कार की पात्र नहीं है। वह तो दया की पात्र है। ऐसी स्त्री तो घायल हुई है, इसलिए हम जिस तरह घायलों की सेवा करते हैं, उसी तरह हमें उसकी सेवा करनी चाहिए। वास्तविक शील-भंग तो उस स्त्री का होता है जो उसके लिए सहमत हो जाती है। लेकिन जो उसका विरोध करने के बावजूद घायल हो जाती है, उसके संदर्भ में शील-भंग की अपेक्षा यह कहना अधिक उचित है कि उस पर बलात्कार हुआ। ‘शील-भंग’ शब्द बदनामी का सूचक है और इस तरह वह ‘बलात्कार’ का पर्याय नहीं माना जा सकता है।”
बेटों से कहा था, बहू संग जबर्दस्ती मत करना
बेटों को लिखे खतों में महात्मा गांधी ने कई बार महिलाओं का सम्मान करने की सीख दी। एक खत में महात्मा गांधी ने अपने बेटों से मैरिटल रेप (पत्नी से बलात्कार) से दूर रहने के लिए भी कहा है और बताया है कि सिर्फ रजामंदी से ही संबंध होने चाहिए। उन्होंने अपने दूसरे बेटे मणिलाल को खत में लिखा है- ‘तुम्हारी सहमति से मैं चाहता हूं कि तुम एक प्रतिज्ञा करो। तुम सुशीला की आजादी कायम रखोगे। तुम अपनी शारीरिक इच्छाओं के लिए उसका रेप नहीं करोगे और सिर्फ सहमति से ही शारीरिक संबंध बनाओगे।’ महात्मा गांधी महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने के मुखर प्रवक्ता थे। उन्होंने मणिलाल से कहा था कि वह अपनी पत्नी से गुलाम नहीं, पार्टनर की तरह पेश आएं। महात्मा गांधी के ये खत उनकी परपोती नीलम पारिख की किताब में शामिल हैं।
अपनी पोती मनु की सगाई अपने साथी किशोरीलाल के भतीजे सुरेंद्र से होने पर उन्होंने इस जोड़े से कहा था- ‘आप दोनों एक दूसरे के दोस्त और साथी बनने जा रहे हैं। लड़कियों आपसे इसलिए नहीं जुड़ती हैं ताकि आप उन पर हुकुम चला सकें या कड़ी मेहनत कराएं। यह आप दोनों को पूरा करने के लिए होता है। दोनों साथियों को दिल, दिमाग और आत्मा की समानता महसूस होती है। कभी एक-दूसरे को नीचा न दिखाएं बल्कि खुद को पूरा करें।’
महात्मा गांधी ने अपने बड़े बेटे हरिलाल को कई बार समझाने की कोशिश की थी। 1935 में गुजराती भाषा में लिखे इन पत्रों में मनु (दादा संग साबरमती आश्रम में रहने आई) का जिक्र करते हुए गांधी ने लिखा है कि ‘तुम्हारी समस्या मेरे लिए हमारे देश की स्वतंत्रता से भी अधिक मुश्किल हो गई है।’ गांधीजी लिखते हैं, ‘मनु तुम्हारे बारे में कई खतरनाक चीजें कह रही हैं। वे कहती हैं कि तुमने 8 वर्ष पहले उससे बलात्कार किया था तथा उससे वे इस कदर आहत हुई थीं कि उसे चिकित्सा उपचार कराना पड़ा था।’ हरिलाल ने 1911 में परिवार से सभी संबंध तोड़ लिए थे मगर पिता संग उनका मनमुटाव ताउम्र रहा।
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