अब शर्म करें… मन-मसोसकर खामोश रहें या विद्रोह की अग्नि के साथ जलते रहें…क्योंकि अब तक जिस धरोहर पर हमें गर्व था, गुमान था… जो धरोहर शहर का मान थी, वो बेची जा रही है…गुलामी के काल में जिसे हमारे पूर्वजों के हाथों ने बनाया… आजादी के बाद जिस धरोहर पर से हमने अंग्रेजों का नाम हटाया और देश को आजादी दिलाने वाले बापू के नाम पर जिस धरोहर को हमने संजोया, उसे धनपतियों की भेंट चढ़ाया जा रहा है…बड़ा नाज हुआ था जब प्रदेश की सरकार ने इस धरोहर के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया…इसके बूढ़े होते शरीर को पैरों पर खड़ा करने के लिए इसकी आंतरिक मजबूती का संकल्प लिया गया… इसके चेहरे को निखारा… रोशन बनाया, लेकिन क्या पता था कि बकरे की तरह हमारी धरोहर को बलि देने के लिए सजाया जा रहा है…हमारी संवेदनाओं को चोट पहुंचाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है…हमारी आन, बान और शान को दौलत से तौला जा रहा है… जिस तरह नाकारा बुजुर्ग को नालायक बेटे घर से निकाल देते हैं…दो समय की रोटी तक की मोहताजी के लिए दर पर ला देते हैं, उसी तरह नगर निगम ने गांधी हॉल को न सिर्फ गैरों के हाथों में थमाने की हिमाकत की… बल्कि उसे बिकाऊ मॉल तक बना दिया…क्योंकि उनकी सोच सो गई है, उनकी संवेदनाएं मर गई हैं…वो विचारों का फर्क मिटा चुके हैं…वो अपनत्व के भाव को मार चुके हैं…वो न व्यापारी बन पा रहे हैं, न संस्कारी रह पा रहे हैं…यदि बनियाबुद्धि भी लगाते तो इतने सस्ते में हमारी धरोहर की बोली न लगाते… जिस गांधी हॉल के जीर्णोद्धार में 9 करोड़ खर्च कर डाले उस धन का ब्याज ही करीब 1 करोड़ रुपए साल होता है… उसे मात्र 50 लाख रुपए साल के किराए पर दे डाला… इस नीलामी से लगाई रकम ही 18 सालों में वापस आएगी तो ब्याज की रकम वसूलने में सदियां लग जाएंगी…यानी इस मोल-भाव में जहां बेईमानी की बू आती है, वहीं संवेदनाओं की कीमत तो लगाई ही नहीं जा सकती है…जिस सरकार ने शहर की संस्कृति के लिए हाथ जोडक़र वोट मांगे, वो ही नगर सरकार वोट के बदले चोट देने जा रही है…जो सांसद संस्कारों के लिए लोक संस्कृति का मेला लगाते हैं, वो खामोश बैठे हैं…जो संघ विचारों के लिए सूर्य नमस्कार करवाता है… गुड़ी पड़वा मनाता है… सूर्य को अघ्र्य चढ़वाता है… वो बेदम होकर धरोहर की मौत का साक्षी रहा…भला हो हमारी पूर्व सांसद ताई सुमित्रा महाजन का, जिन्होंने आवाज उठाई और ऐलान किया कि यदि कोई गांधी हॉल की धरोहर को बचाना चाहता है तो मैं साथ देने को तैयार हूं…हमने चीख-चीखकर राजबाड़ा बचाया… अब गांधी हॉल पुकार रहा है…जो इस शहर से सरोकार रखते हैं… इसे अपना समझते हैं, वो आवाज उठाएं और निगम की मरी संवेदनाओं को जगाएं… गांधी ने देश बचाया, हम कम से कम उनके नाम को तो बचाएं…
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