उज्जैन (Ujjain)। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी (Ganadheep Sankashti Chaturthi) कहा जाता है. इस पवित्र महीने में पड़ने वाला यह त्योहार विशेष महत्व वाला होता है. माना जाता है कि गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
इस बार गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन 3 शुभ योग बन रहे हैं. गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का दिन बेहद खास है, क्योंकि आज दोपहर 03 बजकर 01 मिनट से सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. अगले दिन यानी शुक्रवार सुबह 06 बजकर 56 मिनट तक रहेगा. गुरुवार यानी आज शुभ योग प्रात:काल से लेकर रात 08 बजकर 15 मिनट तक है, वहीं शुक्ल योग रात 08:15 बजे से लेकर शुक्रवार रात 08:04 बजे तक है.
संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर भगवान गणेश की पूजा अर्चना के अलावा चंद्रमा की पूजा करने का विधान है. इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है. व्रत करने वाले लोग चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पारण करके व्रत पूरा करते हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं कि गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त कब है, चंद्रोदय समय क्या है और इसकी पूजा किस तरह करनी चाहिए.
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की पूजा सुबह की जाएगी. आज दिन का चौघड़िया शुभ-उत्तम मुहूर्त सुबह 06:55 बजे से सुबह 08:14 बजे तक है. लाभ-उन्नति मुहूर्त दोपहर 12:10 बजे से दोपहर 01:28 बजे तक और अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त दोपहर 01:28 बजे से दोपहर 02:47 बजे तक है. गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की रात चंद्रोदय शाम 07 बजकर 54 मिनट पर होगा. इस समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत को पूरा किया जााएगा. उसके बाद पारण होगा.
इस तरह करें गणाधिप संकष्टी चुतुर्थी की पूजा
गणाधिप संकष्टी चुतुर्थी की पूजा करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और अपने दैनिक कार्यों से निवृत होकर स्नान कर लें. इसके बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान गणेश जी की पूजा और व्रत का संकल्प लें. फिर एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वर को रख दें. इसके बाद आप भगवान गणेश की मूर्ति पर अक्षत, कुमकुम, दूर्वा, रोली, इत्र, मैवे-मिष्ठान अर्पित करें. व्रत की कथा पढ़ें और इस दौरान आप धूपबत्ती जलाएं. आखिर में आप गणेश जी की आरती करें. आरती के बाद गणेश जी को उनके प्रिय मोदक का भोग लगाएं. रात के वक्त चंद्रमा निकलते ही अर्घ्य देकर अपने व्रत को पूरा कर लें. बाद में आप पारण कर लें. इस तरह आपका व्रत पूरा हो जाएगा.
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