नई दिल्ली। ‘जी20’ शिखर सम्मेलन (‘G20’ summit) में मौजूद विश्व की पांच महाशक्तियों (world’s five superpowers) के बीच जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने अपनी एक गारंटी पूरी की तो इसे कूटनीतिक मोर्चे (diplomatic front) पर भारत की एक बड़ी जीत बताया गया है। एक गारंटी के माध्यम से अब ‘भारत’, दुनिया को साधने के करीब पहुंच गया है। अफ्रीकन यूनियन ‘एयू’ को जी20 की सदस्यता दिलाना आसान नहीं था, लेकिन भारत की अध्यक्षता में पांचों महाशक्तियों, अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस की मौजूदगी में पीएम मोदी ने जब ‘अफ्रीकन यूनियन’ को ‘जी20’ की सदस्यता देने की घोषणा की तो इसे कूटनीतिक मोर्चे पर एक बड़ा कदम माना गया। इस कूटनीतिक जीत का फायदा आने वाले समय में भारत को मिल सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की ‘सुरक्षा परिषद’ में भारत के लिए स्थायी सदस्यता की दावेदारी अब और ज्यादा मजबूत हो जाएगी।
दरअसल, शनिवार को ‘जी20’ शिखर सम्मलेन के पहले दिन जब ‘नई दिल्ली डिक्लेरेशन’ के स्वीकार होने की घोषणा हुई तो विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने ‘मोदी की गारंटी’ का खुलासा किया था। उनसे सवाल पूछा गया था कि अफ्रीकन यूनियन को जी20 में शामिल करने के दौरान किस तरह की दिक्कतें सामने आईं थी। डॉ. जयशंकर का कहना था, गत वर्ष इंडोनेशिया में हुए सम्मेलन में अफ्रीकन यूनियन ने पीएम मोदी से आग्रह किया था कि उसे भी समूह का सदस्य बनाया जाए। इस पर पीएम मोदी ने उन्हें गारंटी दी थी कि वे अफ़्रीकन यूनियन को जी20 का सदस्य बनवाएंगे। अब पीएम मोदी ने वह गारंटी पूरी कर दी है।
जानकारों का कहना है, ‘एयू’ को जी20 की स्थायी सदस्यता दिलाना आसान नहीं था। इस बाबत रूस और चीन का रूख कुछ अलग था। चीन को ‘जी20’ का विस्तार पसंद नहीं था। वजह, इससे ग्लोबल साउथ में उसका कद प्रभावित होता है। करीब एक दशक से चीन का फोकस ऐसे देशों पर रहा है जो अमेरिका, ब्रिटेन या भारत के ज्यादा करीब नहीं हैं। ऐसे देशों को चीन उन समूहों का सदस्य बनवाने की कोशिश कर रहा है, जो उसके प्रभाव में हैं। भारत ने यहीं पर कूटनीतिक दांव चला और एयू को जी20 का सदस्य बनवा दिया। चीन का प्रयास था कि वह अफ्रीकी संघ के देशों में भारी निवेश के माध्यम से अपने आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति करे। अब चीन उन देशों का शोषण करने की साजिश में सफल नहीं हो सकेगा। एयू के 55 देशों के प्राकृतिक संसाधन, चीन के प्रभाव में आने से बच जाएंगे।
चीन इस कोशिश में लगा है कि ब्रिक्स का विस्तार किया जाए। इसी के चलते अब इस संगठन में मिस्र, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इथियोपिया और अर्जेंटीना को शामिल करने का रास्ता साफ हो गया है। मध्य-पूर्व, अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका में इस समूह का प्रतिनिधित्व बढ़ जाएगा। इन देशों की सदस्यता 1 जनवरी, 2024 से प्रभावी होगी। अभी तक ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। ‘ब्रिक्स’ के तहत आने वाले विश्व के पांच सबसे बड़े विकासशील देशों में वैश्विक आबादी का 41 प्रतिशत हिस्सा है। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार का 16 फीसदी प्रतिनिधित्व है। दूसरी तरफ चीन, जी20 के विस्तार के हक में नहीं था। वजह, यहां पर कई बड़े देश उसे टक्कर दे सकते हैं। चीन की इस नीति को समझते हुए भारत ने ‘एयू’ को जी20 का स्थायी सदस्य बनवाया है। जी20 देश, अब विश्व की अर्थव्यवस्था में लगभग अस्सी फीसदी की हिस्सेदारी रखेंगे। जी20 शिखर सम्मेलन में पहले कहा जा रहा था कि ‘नई दिल्ली डिक्लेरेशन’ की घोषणा अटक सकती है, लेकिन पीएम मोदी ने 112 मुद्दों पर सहमति बनाकर दुनिया को चौंका दिया है। भारत ने अपनी कूटनीति से जहां अफ्रीकी देशों में चीन की साजिश को तोड़ने का प्रयास किया है, रूस-यूक्रेन युद्ध की छाया के बीच ‘नई दिल्ली डिक्लेरेशन’ पर सहमति का रास्ता भी निकाल लिया।
सूत्रों के मुताबिक, जी20 में ‘नई दिल्ली डिक्लेरेशन’ का स्वीकार होना, यह कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की बड़ी जीत है। वजह, जी20 में सभी महाशक्तियां शामिल हैं। उनकी मौजूदगी में भारत ने सहमति का रास्ता निकाला है। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और जापान ने भी ‘एयू’ को स्थायी सदस्य बनाने के मामले में बाधा खड़ी नहीं की। घोषणापत्र के नौवें पहरे में लिखा था, हम इस बात की पुष्टि करते हैं कि जी20, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए एक प्रमुख मंच है। यह समूह भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है।हालाँकि हम स्वीकार करते हैं कि इन मुद्दों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण परिणाम हो सकता है। भारत ने यह बात कह कर चीन और रूस, दोनों को संदेश दे दिया। हालांकि चीन का कहीं नाम नहीं लिया।
‘नई दिल्ली डिक्लेरेशन’ के 13वें पहरे में लिखा है, हम सभी राज्यों से क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को, अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के मुताबिक, बनाए रखने की अपील करते हैं। मानवीय कानून, शांति और स्थिरता की रक्षा करने वाली बहुपक्षीय प्रणाली सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने का आह्वान करते हैं। विभिन्न देशों के मध्य संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान और संकटों के हल के हल के लिए प्रयास करने के साथ ही कूटनीति और संवाद महत्वपूर्ण हैं। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था पर युद्ध के प्रतिकूल प्रभाव को संबोधित करने के अपने प्रयास में एकजुट होंगे। यूक्रेन में व्यापक एवं न्यायसंगत और टिकाऊ शांति का समर्थन करने वाली सभी प्रासंगिक और रचनात्मक पहलों का स्वागत करेंगे। बशर्ते, ये सभी पहल, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सभी उद्देश्यों और सिद्धांतों को कायम रखें। एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य की भावना से राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण और अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा देना होगा। भारत ने ऐसा कर ‘रूस और यूक्रेन’ के लिए एक संदेश और जी20 का स्टैंड क्लीयर कर दिया।
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने शनिवार को ‘जी20’ की बैठक को सफल करार दिया है। पीएम मोदी के साथ सेल्फी लेने के बाद उन्होंने कहा, भारत और आस्ट्रेलिया के बीच अच्छी द्विपक्षीय चर्चा हुई है। दोनों राष्ट्रों के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) को लेकर सार्थक नीति बनी है। गत मई में पीएम मोदी, ऑस्ट्रेलिया गए थे। तब भी दोनों देशों ने ‘निवेश’ की संभावनाएं तलाशी थी। अल्बनीज का कहना था, भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई समुदाय के योगदान की वजह से ऑस्ट्रेलिया एक बेहतर जगह है। दोनों देश, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा, भारत पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक एकीकरण का प्रभावी माध्यम होगा। यह पूरे विश्व में कनेक्टिविटी और विकास को सस्टेनेबल दिशा प्रदान करेगा।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप शिपिंग और रेलवे कनेक्टिविटी कॉरिडोर की घोषणा को एक बड़ी बात करार देते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, अगले दशक में, भागीदार देश निम्न-मध्यम आय वाले देशों में बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करेंगे। बाइडेन ने कहा, मैं प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं। एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य, यही इस जी20 शिखर सम्मेलन का फोकस है। पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (पीजीआईआई) और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी व संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े कनेक्टिविटी एवं बुनियादी ढांचे के विकास में सहयोग पर एक ऐतिहासिक पहल है।
सउदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान ने कहा, इकानॉमिक कॉरिडोर की पहल, जिसके बारे में जी20 की बैठक के दौरान घोषणा की गई है, इसके लिए मैं उनको धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने इसके लिए काम किया है। यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष, प्रेसीडेंट उर्सुला वॉन डेर लेन ने कहा, अर्थव्यवस्थाओं के इन्फ्रास्ट्रक्चर में इनवेस्टमेंट मिडिल इनकम वाले देशों की जरूरत है। इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकॉनामिक कॉरिडोर, ऐतिहासिक है। यह इंडिया, अरेबियन गल्फ और यूरोप के बीच सीधा संपर्क बनाने वाला है।
इसके चलते भारत और यूरोप के बीच व्यापार में 40 प्रतिशत की तेजी आएगी। यह महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच ग्रीन एंड डिजिटल ब्रिज होगा। ट्रांस अफ्रीकन कॉरिडोर, यह घोषणा भी बड़े स्तर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश की पहल है। इसका लाभ सभी सदस्यों को होगा। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, ये एक बहुत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। सभी सदस्य देश, लंबी अवधि के लिए निवेश करने के प्रतिबद्ध हैं। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने भी इसे एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट करार दिया है। इसमें जर्मनी 3500 मिलियन यूरो का वर्ल्ड बैंक के साथ अतिरिक्त निवेश करेगा।
मई में क्वाड देशों का दूसरा शिखर सम्मेलन, जापान में आयोजित किया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जापान के हिरोशिमा में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन के साथ व्यक्तिगत उपस्थिति वाले तीसरे क्वाड राजनेता शिखर सम्मेलन में भाग लिया था।
पीएम मोदी ने समुद्र में केबल के डिजाइन, निर्माण, बिछाने और रखरखाव में क्वाड की सामूहिक विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए ‘केबल संचार-संपर्क और सहनीयता के लिए साझेदारी पर बल दिया था। राजनेताओं ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में विकास के बारे में महत्वपूर्ण बातचीत की। एक मुक्त, खुले और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपने दृष्टिकोण के तहत, इन नेताओं ने संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व को दोहराया।
बैठक के बाद क्वाड राजनेता दृष्टिपत्र वक्तव्य-‘भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए स्थायी भागीदार’ जारी किया गया, जो उनके सैद्धांतिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। जानकारों का कहना है कि चीन के साथ जारी सीमा विवाद के मद्देनजर, भारत अब ‘क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डॉयलॉग’ में अपनी सक्रिय भागेदारी से चीन को घेरने की कोशिश करेगा। वजह, इस समूह में अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान जैसे मजबूत राष्ट्र हैं। भारत, पिछले कई वर्षों से जापान के साथ, तकनीक से जुड़े कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहा है। दूसरी तरफ अमेरिका के साथ भी कई तरह के सैन्य उपकरणों से संबंधित वार्ता चल रही हैं।
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