भोपाल। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (Full moon of Jyeshtha Shukla Paksha) गुरुवार, 24 जून को है और इस दिन शाम को आसमान में चंद्रमा विशाल आकार में दिखाई देखा। शाम लगभग 7 बजे पूर्व दिशा में जब चंद्रमा उदित हो रहा होगा तब उसका आकार सामान्य पूर्णिमा के चंद्रमा (full moon moon) की तुलना में बड़ा होगा और उसकी चमक भी सामान्य से अधिक होगी। भोपाल की राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बुधवार को इसकी जानकारी देते हुए बताया कि यह खगोलीय घटना सुपरमून कहलाती है। यह इस साल का तीसरा सुपरमून होगा। विज्ञान प्रसारक सारिका ने बताया कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के इस मून को पश्चिमी देशों में स्ट्राबेरी की हार्वेस्टिंग का मौसम होने के कारण स्ट्राबेरी मून नाम दिया गया है। इसे हनी मून भी कहते हैं, क्योंकि इस समय वहां हनी हार्वेस्ट करने के लिये तैयार हो जाता है। यूरोपीय देशों में जून्स फुलमून भी नाम दिया जाता है। पश्चिमी देशों में इसे रोजमून भी कहा जाता है। इसका यह नाम उदित होते फुलमून के लालिमा के कारण तथा कुछ क्षेत्रों में इस समय खिलने वाले गुलाब के कारण दिया गया है।
सारिका ने बताया कि चद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा अंडाकार पथ पर करते हुये 3 लाख 61 हजार 885 किलोमीटर से कम दूरी पर रहता है तो उस समय पूर्णिमा का चांद सुपरमून कहलाता है। यह माइक्रोमून की तुलना में 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत ज्यादा चमकदार दिखता है। उन्होंने बताया कि सुपरमून को यादगार बनाने क्षितिज से उदित हो रहे चंद्रमा की फोटोग्राफी की जा सकती है। मून इलुजन की घटना के कारण चंद्रमा विशल गोले के रूप में दिखेगा।
क्या होता है सुपरमून-
भारत सरकार का नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा गोलकार पथ में नहीं करता। यह अंडाकार पथ में घूमते हुये जब पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, इसे पेरिजी कहते हैं। जब पूर्णिमा और पेरिजी की घटना एक साथ होती हैं तो वह सुपरमून होता है। पृथ्वी के पास आ जाने के कारण यह अन्य माइक्रोमून पूर्णिमा की तुलना में 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत अधिक चमकदार दिखाई देता है।
सबसे नजदीकी सुपरमून-
सारिका ने बताया कि 1948 को पड़े सुपरमून के बाद चंद्रमा और पृथ्वी के बीच सबसे कम दूरी का अनुभव करने के लिये 25 नवम्बर 2034 तक का इंतजार करना होगा।