उज्जैन। इस वर्ष होलिका दहन पर भद्रा का साया रहेगा। इसके चलते संशय की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, ज्योतिर्विदों का कहना है कि भोपाल सहित प्रदेशभर में भद्राव्यापिनी प्रदोषकाल में होलिका दहन 6 मार्च को करना शास्त्र सम्मत है। देश के पूर्वी भाग बिहार, बंगाल, ओडिशा जहां सूर्योदय पहले होता है, वहां 7 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी मनाई जाएगी। दो दिनी फाल्गुन पूर्णिमा में पहले दिन प्रदोषकाल है, जबकि दूसरे दिन उदया तिथि में स्नान-दान किया जाएगा। फाल्गुन पूर्णिमा 6 मार्च सोमवार को शाम 4.18 बजे से अगले दिन 7 मार्च मंगलवार को शाम 6.10 बजे रहेगी। भद्रा 6 मार्च को शाम 4.18 से 7 मार्च को सुबह 5.15 बजे तक रहेगी। 6 मार्च को प्रदोषकाल शाम 6.38 से रात 9.08 बजे तक और भद्रा का पुच्छकाल रात 12.43 से रात 2.01 बजे तक रहेगा। ज्यातिर्विद् विनायक पांडे गुरुजी के अनुसार, भद्रारहित प्रदोषकाल व्यापिनी फाल्गुनी पूर्णिमा में होलिका दहन किया जाता है।
यदि पूर्णिमा तिथि दो दिन हो और दूसरे दिन भी प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि हो तो उस दिन होलिका दहन होना चाहिए। यदि दूसरे दिन पूर्णिमा प्रदोष को स्पर्श न करे तो पहले दिन भद्रा के पुच्छ या भद्रा के मुख को छोड़कर भद्रा में ही होलिका दहन किया जाना चाहिए। इसके चलते इस बार 6 मार्च को होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत है। ज्योतिषाचार्य ने कहा कि होली के आठ दिन पहले होलाष्टक के साथ मांगलिक कार्यों पर विराम लगेगा। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। इस वर्ष अष्टमी तिथि 26 फरवरी को रात 1 बजे से लगेगी। इन आठ दिनों में विवाह, मुंडन, सगाई, नवीन वाहन और गृह प्रवेश आदि नहीं किया जाता है। ज्योतिर्विद के अनुसार, यदि भद्रा निशीथ के बाद समाप्त हो रही है तो भद्रा के मुख को छोड़कर होलिका दहन किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रदोष में भद्रामुख हो तो भद्रा के बाद अथवा प्रदोष के बाद होलिका दहन किया जाना चाहिए। दोनों दिन प्रदोष में पूर्णिमा स्पर्श न करे तो पहले दिन ही भद्रा पुच्छ में होली जलाएं।
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