मुंबई। मुंबई के अधिकांश इलाकों में सोमवार सुबह 10 बजे के आसपास बिजली चली गई। कभी न रुकने वाली मुंबई के कदम थम गए। लोकल ट्रेनें पटरियों पर रुक गईं, यात्री पैदल ही ट्रैक पर निकल पड़े, अस्पतालों में डॉक्टर मोबाइल की रोशनी में काम करने को मजबूर हुए, वर्क फ्रॉम होम करने वालों को भी अचानक आई इस मुसीबत का सामना करना पड़ा। आई जानते हैं इसके पहले भी भारत में कब और कितने क्षेत्र में Blackout हुआ।
30 और 31 जुलाई 2012, देश के उत्तरी और पूर्वी हिस्से (North & East India) में इतिहास के सबसे बड़े ब्लैकआउट (Blackout) की तारीखें हैं। 30 जुलाई को 40 करोड़ और 31 जुलाई को हुए ब्लैक आउट में 62 करोड़ से ज़्यादा की आबादी अंधेरे से जूझी थी। 62 करोड़ लोग यानी उस समय दुनिया की करीब 10 फीसदी आबादी और हिंदुस्तान की आधी से ज़्यादा। देश के 22 राज्य इस ब्लैक आउट की चपेट में आए थे और 32 गीगावॉट की बिजली उत्पादन (Electricity Production Capacity) क्षमता ऑफलाइन हो गई थी। आखिरकार, 1 अगस्त 2012 तक बिजली सप्लाई बहाल हो पाई थी।
देश के इतिहास (History) के सबसे बड़े ब्लैक आउट की पूरी कहानी में कई महत्वपूर्ण बातें अब भी इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि मुंबई में सोमवार को जो ब्लैक आउट हुआ, उसकी वजह भी तकनीकी फॉल्ट रहा। यानी बीते समय से सबक लेकर हमारे यहां इलेक्ट्रिसिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर अब भी सवालों के घेरे में बना हुआ है। 2 करोड़ की आबादी के लिए ट्रेनें, एग्ज़ाम और जनजीवन दो घंटे से ज़्यादा के लिए रोक देने वाले मुंबई ब्लैक आउट के बहाने जानिए कि देश का सबसे बड़ा ब्लैक आउट क्या था, कैसा था और क्यों।
क्या हुआ था 30 जुलाई 12 को?
400 किलोवॉट की बीना ग्वालियर लाइन ट्रिप हुई और सर्किट ब्रेक हुआ। चूंकि इस लाइन से आगरा बरेली ट्रांसमिशन सेक्शन को बिजली मिलती थी, पूरे रूट के सभी प्रमुख पावर स्टेशन शट डाउन कर दिए गए। अंजाम यह हुआ कि 32 गीगावॉट की अनुमानित शॉर्टेज हुई। जानकारों ने इसे दशक का सबसे खबरा फेलियर करार दिया। उस वक्त ऊर्जा मंत्री सुशील शिंदे ने कहा था कि कुछ राज्य शायद परमिट से ज़्यादा बिजली खींच रहे थे।
दूसरी तरफ, पावरग्रिड कॉर्पोरेशन (PGCIL) और उत्तरी लोड डिस्पैच सेंटर ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा को इस ब्लैक आउट के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था। एक पावर कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने इस ब्रेकडाउन को भारत के ग्रिड सिस्टम में भारी तकनीकी फॉल्ट होने की पोल खोलने वाली घटना कहा था।
भारत की एक चौथाई आबादी अंधेरे में थी। रेलवे और कुछ हवाई अड्डे घंटों तक ठप पड़े रहे थे। दिल्ली एयरपोर्ट हालांकि 15 सेकंड में बैकअप पावर के सहारे चलता रहा था। ट्रेनें तीन से पांच घंटों तक पूरे उत्तर भारत में ठप रही थीं। स्वास्थ्य सेवाएं, पानी ट्रीटमेंट प्लांट, तेल रिफाइनरियां और कई सेक्टर बुरी तरह प्रभावित थे। ASSOCHAM ने कहा था कि कई कारोबार घंटों तक ठप रहे। वहीं, पानीपत, मथुरा और बठिंडा में रिफाइनरियां ठप नहीं हुई थीं क्योंकि इनके अपने पावर स्टेशन थे और ये ग्रिड पर निर्भर नहीं थीं। करीब 15 घंटों बाद 80 फीसदी बिजली सेवा बहाल हो सकी थी. अब जानिए अगले दिन इससे भी बड़ा फेलियर कैसे हुआ था।
दूसरा झटका 31 जुलाई को लगा
आगरा में ताज महल के पास रिले समस्या के कारण दोपहर करीब एक बजे सिस्टम फिर फेल हुआ। नतीजा वही, कि फिर देश भर के प्रभावित इलाकों के पावर स्टेशन फिर ऑफलाइन हो गए। 28 में 22 राज्यों की करीब 60 करोड़ की आबादी अंधेरे के संकट में आ गई और एनटीपीसी लिमिटेड की बिजली उत्पादन क्षमता 38 फीसदी रुक गई। 300 से ज़्यादा पैसेंजर ट्रेनें और लाइनें शटडाउन की शिकार हुईं।
इस बार उत्तरी, उत्तर मध्य, पूर्व मध्य और पूर्वी तटीय रेलवे ज़ोन सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए। पूर्वी, दक्षिण पूर्वी और पश्चिमी मध्य ज़ोन कम प्रभावित रहे। दिल्ली मेट्रो की सभी छह लाइनें थम गईं और जो मेट्रो चलते चलते रास्ते में रुक गई थीं, किसी तरह उनमें से यात्रियों को निकाला जा सका। पूर्वी भारत में पावर फेलियर से खदानों के भीतर 200 मज़दूर फंस गए थे। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरुणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा राज्य ग्रिड फेलियर से बुरी तरह प्रभावित बताए गए थे। देश के बड़े हिस्से में बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर घंटों तक ठप रहा था।
क्या भरोसेमंद नहीं रहा देश का पावर सेक्टर?
इस त्रासदी से पहले प्राइवेट सेक्टर ने 29 अरब डॉलर की लागत से अपना खुद के स्वतंत्र पावर स्टेशन बनाए थे ताकि उनकी फैक्टरियों को भरोसेमंद ढंग से बिजली सप्लाई मिलती रहे। भारतीय कंपनियों के पास प्राइवेट ऑफ ग्रिड के तौर पर 35 गीगावॉट की उत्पादन क्षमता है और इसके अलावा क्षमता को और 33 गीगावॉट तक बढ़ाने की कोशिशें जारी हैं। यानी निजी सेक्टर ने देश के ग्रिड सिस्टम भरोसेमंद माना ही नहीं।
क्यों चिंता की बात है भरोसेमंद सिस्टम न होना?
अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक और उपभोक्ता देश भारत है। इसके बावजूद यहां बिजली के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सवाल खड़े होते रहे हैं। 2001 में जब उत्तरी ग्रिड फेल हुई थी, तब भी बड़ा हंगामा और नुकसान हुआ था लेकिन 2012 की त्रासदी से साबित हुआ कि भारत ने 11 साल में कुछ नहीं सीखा था। अब फिर मुंबई ब्लैक आउट यही संकेत दे रहा है कि जल्द कारगर कदम नहीं उठाए गए तो भारत किसी भी दिन फिर अंधेरे में डूब सकता है। वैसे, अगले ब्लैक आउट का खतरा पंजाब पर बताया गया है।
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