पेरिस। पेरिस ओलंपिक का समापन रविवार को हो गया। करीब दो सप्ताह से अधिक समय तक चलने वाला खेलों का महाकुंभ भारत के लिए अच्छा और बुरा दोनों रहा। भारत ने एक रजत और पांच कांस्य सहित कुल छह पदक अपने नाम किए। हालांकि, भारत इन खेलों में एक भी स्वर्ण पदक हासिल नहीं कर सका। भारत के लिए पेरिस ओलंपिक मनु भाकर की उपलब्धियों से लेकर विनेश फोगाट के विवाद के लिए याद किया जाएगा। टोक्यो में भारत ने अपने इतिहास का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था और एक स्वर्ण, दो रजत, चार कांस्य सहित कुल सात पदक जीते थे। भारत टोक्यो में 48वें स्थान पर रहा था, लेकिन इस बार वह पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहा।
पेरिस ओलंपिक में भाला फेंक सुपरस्टार नीरज चोपड़ा का रजत पदक उम्मीदों से कमतर रहा, जबकि विनेश फोगाट का फाइनल से पहले अयोग्य ठहराया जाना निराशाजनक रहा जिसमें छह खिलाड़ियों के चौथे स्थान नासूर रहे। ओलंपिक के शुरू में पदक तालिका में दोहरे पदकों तक पहुंचना बहुत महत्वाकांक्षी लग रहा था लेकिन कई खिलाड़ियों के करीब से चूकने का काफी असर पड़ा। इन सभी चीजों ने काफी सवाल खड़े किए क्योंकि इस बार देश को एथलीटों से दोहरे अंक में पदक लाने की उम्मीद थी, लेकिन भारतीय दल टोक्यो ओलंपिक के प्रदर्शन की भी बराबरी नहीं कर सका।
भारत की झोली में कुछ और पदक आ सकते थे, लेकिन छह खिलाड़ी चौथे स्थान पर रहे और देश के लिए कांस्य लाने से चूक गए। बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन कांस्य पदक मैच में हार गए थे, जूबकि मीराबाई चानू सिर्फ एक किलोग्राम से कांस्य पदक लाने से चूक गई थीं। किसी को उम्मीद नहीं थी कि सात्विकसाईराज रेंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी पदक के बिना विदा होंगे। देश के 117 सदस्यीय दल में महज छह पदक आना आदर्श नहीं हैं लेकिन भारत के लिए इस दौरान खुशी, उम्मीद, निराशा और दुख के पल भी आए। अगर चौथे स्थान पर रहने वाले छह खिलाड़ी पदक जीतने में सफल रहते तो तालिका में दोहरे पदकों की संख्या संभव थी।
पुरुष हॉकी टीम के ओलंपिक में लगातार दूसरा पदक जीतने की क्षमता पर सवाल बने हुए थे। टीम टोक्यो में जीते गए पदक के रंग को बेहतर नहीं कर सकी, लेकिन जिस तरह से उसने ऑस्ट्रेलिया को हराया, बेल्जियम के खिलाफ मुकाबला खेला और जर्मनी और ब्रिटेन के खिलाफ दबाव झेला, उससे पता चलता है कि हरमनप्रीत सिंह की अगुआई वाली यह टीम मानसिक रूप से कितनी मजबूत हो गई है। भारतीय टीम अंडरडॉग की तरह शामिल हुई लेकिन चैंपियन की तरह खेली। गोलकीपर पीआर श्रीजेश के लिए संन्यास लेने के लिए यह बिलकुल सही समय था, जिन्होंने टोक्यो कांस्य से पहले अपनी पहचान हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे खेल के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भाग्य ने श्रीजेश को शानदार विदाई दी, लेकिन पहलवान विनेश फोगाट अपनी आत्मा पर कभी नहीं भरने वाला घाव लेकर मंच से चली गईं। एक मुश्किल मुकाबले के बाद एक मामूली हार और एक चुनौतीपूर्ण हार दोनों ही हो सकती है, लेकिन उनके मामले में वह जीतने के बावजूद हार गईं। यह उनकी काबिलियत या कौशल का सवाल नहीं था बल्कि तकनीकी पक्ष था जिसने उनसे पदक छीन लिया। उनकी वापसी में न तो कम तैयारी और न ही युई सुसाकी बाधा बन सकीं लेकिन उनका अपना 100 ग्राम का वजन इन सब पर पानी फेर गया। विनेश ने इस घटना के बाद खेल से संन्यास की घोषणा कर दी और अब वह अयोग्य ठहराए जाने के खिलाफ अपनी अपील पर फैसले का इंतजार कर रही हैं।
युवा मनु भाकर की अगुआई में निशानेबाजों का प्रदर्शन भारत के लिए राहत भरा रहा क्योंकि छह में से तीन पदक निशानेबाजी से आए। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 22 वर्षीय भाकर ने अपने अभूतपूर्व प्रदर्शन से भारत का मान बचाया। उन्होंने मिश्रित टीम 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में सरबजोत सिंह के साथ मिलकर एक और कांस्य पदक जीता। जब एक पदक भी स्टारडम की गारंटी देता है तो मनु के दोहरे पदक ने उन्हें एक अलग ही श्रेणी में ला खड़ा किया है। बहुत कम लोगों ने कुसाले को स्कीट निशानेबाजी में भारत के लिए पहला पदक जीतने की उम्मीद की होगी।
नीरज ने 89.45 मीटर के सत्र के सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ क्वालिफिकेशन में शीर्ष स्थान प्राप्त करके भारत को एक और स्वर्ण की उम्मीद दी थी। नीरज जांघ की समस्या के बावजूद तैयार थे। पर पाकिस्तान के अरशद नदीम ने 92.97 मीटर का शानदार थ्रो फेंककर सचमुच प्रतियोगिता खत्म कर दी। नीरज 89.34 मीटर से बेहतर थ्रो नहीं कर पाए। उनसे ऐसी उम्मीदें थीं कि रजत भी हार जैसा लग रहा था।
कोई भी मुक्केबाज पदक दौर में नहीं पहुंच सका लेकिन निशांत देव की हार सबसे ज्यादा खलेगी। एक अन्य दावेदार निकहत जरीन भी रो पड़ीं। हालांकि पहलवान अमन सहरावत ने सुनिश्चित किया कि कुश्ती से पदक मिले। टीम में शामिल एकमात्र भारतीय पुरुष पहलवान उम्मीदों पर खरा उतरा। 57 किग्रा वर्ग में रवि दहिया की जगह लेने के पीछे भी कुछ कारण था और उन्होंने इसे साबित भी किया। कुश्ती ने लगातार पांचवें ओलंपिक में पदक जीता। सबसे निराशाजनक प्रदर्शन अंतिम पंघाल और अंशु मलिक का रहा। उनकी फिटनेस हमेशा संदेह के घेरे में रही।
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